Powered by

Advertisment
Home हिंदी

रानी लक्ष्मी बाई: महिला सशक्तिकरण का बेजोड़ उदहारण

भारतवर्ष की सर्वश्रेष्ठ स्वतंत्रता सेनानी रानी लक्ष्मी बाई, "झाँसी की रानी" के नाम से सुप्रसिद्ध महिला सशक्तिकरण का एक बेजोड़ उदहारण हैं.

By Lalit
New Update
रानी लक्ष्मी बाई: महिला सशक्तिकरण का बेजोड़ उदहारण

"खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी" ये पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी जी की कविता से ली गयी हैं। ये पंक्तियाँ आज भी हर किसी की जुबान पर उतने ही उत्साह और आदर के साथ कही जाती है, जितना गर्व हमे रानी लक्ष्मी बाई पर है। भारतवर्ष की सर्वश्रेष्ठ स्वतंत्रता सेनानी रानी लक्ष्मी बाई(Rani Lakshmi Bai), जो "झाँसी की रानी" के नाम से सुप्रसिद्ध हैं। वे महिला सशक्तिकरण का एक बेजोड़ उदहारण हैं। भारत के इतिहास में उनके जैसा प्रसिद्ध, दृढ़ निश्चयी और धैर्यवान दूसरा कोई नहीं हुआ। वे भारत की 'जोन ऑफ आर्क' कहलाईं। स्वतंत्रता की पहली लड़ाई झाँसी की रानी ने ही लड़ी।
भारत के इतिहास में लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से बेहद बहादुरी से लड़ीं, और अपना पथ-तोड़ प्रभाव स्थापित कर गईं।

Advertisment

झाँसी की रानी के बारे में कुछ रोचक बातें :

  • लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी के मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनको प्यार से मनु बुलाया जाता था, हालांकि उनकी जन्मतिथि पर कई सवाल उठते हैं।
  • उनकी शादी कम उम्र में झाँसी के राजा गंगाधर राव नेवलकर से 7 मई 1842 को हुईं और उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा।
  • जब वे 4 वर्ष की थीं तभी उनकी माता का निधन हो गया। उनकी शिक्षा घर पर ही हुईं। निशानेबाजी, तीरंदाजी और घुड़सवारी उनकी शिक्षा के विषय थे।
  • वे अपनी उम्र की बाकी लड़कियों से अधिक स्वतंत्र थी और उनका पालन पोषण एक पुत्र के समान ही हुआ था।
  • वे 18 साल की उम्र में झाँसी की रानी बनी।
  • गंगाधर राव के साथ उनका वैवाहिक जीवन कम था और राज-काज का ज़्यादा अनुभव ना होने के कारण अँग्रेजी अफसरों ने इसका फ़ायदा उठाया और झाँसी को अपने कब्जे में कर लिया। लक्ष्मीबाई को 5000 रुपए की पेंशन देकर किला त्यागने का आदेश दिया।
  • यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मीबाई नहीं चाहती थीं की अंग्रेज़ों के हाथ उनका मृत शरीर भी लगे और इसलिए उन्होंने रणभूमि में आत्मदाह किया।
  • बाद में उनका दाह संस्कार कुछ आम जनता ने किया।
  • 1858 के इस युद्ध की ब्रिटिश रिपोर्ट मे ह्युज रोस (अँग्रेजी सेना के प्रमुख) ने लक्ष्मीबाई को चालाक, सुंदर और चित्ताकर्षक बताया।
  • भारतीय राष्ट्रीय सेना में महिलाओं की एक टुकड़ी का नाम 'झाँसी की रानी' रेजिमेंट भी है।
  • विद्रोही के जन्मदिन के सम्मान में 1957 में, लक्ष्मीबाई के दो पोस्टेज स्टाम्प भी अंकित किए गए थे।

इस लेख को कनिष्ठा सिंह द्वारा लिखा गया है, ये माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की छात्रा हैं. ग्राउंड रिपोर्ट में कनिष्ठा, महिला सशक्तिकरण, राजनीति एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर लिखती हैं.

You can connect with Ground Report on FacebookTwitter and Whatsapp, and mail us at [email protected] to send us your suggestions and writeups.