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भोपाल की झीलों में सिंघाड़ों की खेती से चलती है मछुआरों की रोज़ी-रोटी

chestnut farming in Bhopal

भोपाल के वेटलैंड्स में नवंबर-दिसंबर के महीने में किसान आपको तालाबों से सिंघाड़े तोड़ते हुए दिख जाएंगे। झीलों की नगरी भोपाल में मछली पालन करने वाले किसानों के लिए सिंघाड़ा आय का एक अच्छा माध्यम है। ग्राउंड रिपोर्ट ने बात की ऐसे ही एक सिंघाड़े की खेती करने वाले किसान से और जाना की सिंघाड़े की खेती आखिर वो कैसे करते हैं।

देव रथ मांझी पीड़ियों से मछली पालन और सिघाड़े की खेती कर रहे हैं। तालाब ही उनकी रोज़ी रोटी का ज़रिया है। मॉनसून के सीज़न में वो बड़ा तालाब के खजूरी तरफ के हिस्से में सिंघाड़े की बोवनी करते हैं। इसके लिए उन्हें नगर निगम की पर्मिशन लेनी होती है।

सिंघाड़े की खेती करने वाले किसान खुद ही तालाब में अपना क्षेत्र चुनते हैं। सितंबर के महीने से लेकर दिसंबर के दूसरे हफ्ते तक सिंघाड़ा बाज़ार में बिकता है। इसी समय ये किसान तालाबों में अपने नांव लेकर जाते हैं और सिंघाड़े तोड़ते हैं।

सिंघाड़ा तोड़ने के लिए आए मज़दूर महेश बताते हैं कि तीन महीने के लिए यही हमारा रोज़गार होता है। यहां मजदूरी ठीक ठाक मिल जाती है तो यही काम कर लेते हैं। दिसंबर के बाद दूसरा काम ढूंढना पड़ेगा।

महेश कहते हैं कि हम नांवों में जाकर सिंघाड़ा तोड़ते हैं और फिर बोरियों में भरकर उन्हें ठेकेदार के गोडाउन तक भेजते हैं।

भोपाल में इस समय दूर दूर तक तालाबों में सिंघाड़े की फसल दिखाई देती है और किनारों पर मज़दूरों का हुजूम जो तैयार हो चुकी फसल को तोड़ने में लगे हुए हैं।

सिंघाड़े की खेती से कितनी होती है आय?

सिंघाड़े की खेती से आय के संबंध में किसान कहते हैं कि “यह एक नगदी फसल है, एक बीघा क्षेत्र से 40-45 हज़ार की आय हो जाती है। यह एक जलीय फसल है, इसके लिए दो से तीन फीट पानी होना अनिवार्य है। इसके बीज शासकीय मंडी से मिल जाते हैं या फिर हम खुद भी फसल की दूसरी तुड़ाई से बीज बचाकर रख लेते हैं। बीज से पौधे तैयार कर रहे हैं तो जनवरी फरवरी के महीने में बीज को बो देते हैं और जब पौध रोपण के लायक हो जाता है तो मई जून के महीने में इनमें से एक एक मीटर लंबी बेल तोड़ कर हम उन्हें तालाब में रोप देते हैं। इस फसल में पूरा 6 महीने का समय लग जाता है।”

सिंघाड़े से प्रदूषित होते तालाब

प्रदूषण के सवाल पर देव रथ मांझी कहते हैं कि “आप देखिए जहां जहां सिंघाड़ा लगा है वहां वहां तालाब साफ दिखाई देगा, और जहां पर नहीं लगा था वहां पर तालाब में गंदगी दिखेगी। हम सिर्फ फसल नहीं उगाते बल्कि तालाब की साफ सफाई का भी ध्यान रखते हैं। हमारे लिए यह रोज़ी रोटी है।”

लेकिन आपको बता दें कि पिछले कुछ सालों में सिंघाड़े की फसल तैयार करने के लिए कई तरह के कीटनाशकों और केमीकल्स का प्रयोग किया जा रहा है जिससे तालाब प्रदूषित हो रहे हैं। ये कैमिकल्स जल में रहने वाले जीव जंतुओं के लिए हानीकारक होते हैं।

यह बात सही है कि अगर पारंपरिक तरीके से जलीय पौधौं की खेती की जाए तो वो पर्यावरण के लिए अच्छे होते हैं। लेकिन ज्यादा मुनाफे के चक्कर में किसान आजकल इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं।

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Author

  • Pallav Jain is co-founder of Ground Report and an independent journalist and visual storyteller based in Madhya Pradesh. He did his PG Diploma in Radio and TV journalism from IIMC 2015-16.