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क्या है Electricity amendment Bill 2022, क्यों हो रहा है इसका विरोध?

अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने लोकसभा में विद्युत संशोधन विधेयक 2022 पेश किया और कहा कि यह विधेयक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए है।  

By Pallav Jain
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अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने लोकसभा में विद्युत संशोधन विधेयक 2022 पेश किया (Electricity amendment Bill 2022) और कहा कि यह विधेयक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए है।  फिलहाल ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने विधेयक पर चर्चा के लिए इसे संसद की स्थायी समिति को भेजने का अनुरोध किया है।

Read in English: How Modi govt betrayed farmers with Electricity amendment bill 2022?

सरकार का कहना है कि यह (Electricity amendment Bill 2022) पावर सेक्टर में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगा  और बिजली व्यवस्था में सुधार होगा। सरकार कि मानें तो इस बिल के एक्ट बनने के बाद उपभोक्ताओं के पास बेहतर सेवाएं देने वाली बिजली वितरण कंपनी चुनने का विकल्प होगा। वितरण के क्षेत्र में निजी कंपनियों के आने से आपूर्ति बेहतर होगी।

(Electricity amendment Bill 2022) विधेयक की कुछ खास बातें

भारत सरकार ने मूल विद्युत कानून में कुल दस संशोधनों का प्रस्ताव सामने रखा है। इनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित बाते हैं:

  • इसमें विद्युत कानून, 2003 की धारा 14 में संशोधन कर सभी  लाइसेंसधारियों (प्राइवेट कंपनियां भी) को वितरण नेटवर्क का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाएगी। 
  • निजी बिजली कंपनियों को बिजली वितरण का लाइसेंस लेने की अनुमति मिल जाएगी। 
  • केंद्र के पास बिजली नियामक आयोग के गठन के लिए चयन समिति का अधिकार होगा। 
  • अगर वितरण कंपनी तय समय पर भुगतान नहीं करती है तो बिजली आपूर्ति बंद कर दी जाएगी। इन संशोधन के चलते उपभोक्ताओं को ये विकल्प मिलेगा कि वे किस कंपनी से बिजली प्राप्त करना चाहते हैं। 
  • इसके अलावा धारा 142 में संशोधन करने कानून के प्रावधान का उल्लंघन करने पर जुर्माने की दर को बढ़ा ने का प्रावधान किया गया है। 

कैसे होगा 'एक से अधिक लाइसेंसधारियों' का प्रबंधन? 

जो बात इस बिल को खास बनाती है वो ये है कि यह बिल अधिनियम में एक ऐसी धारा जोड़ने का प्रस्ताव देता है जिससे किसी क्षेत्र में कई वितरण लाइसेंसधारी हों तो वहां पर बिजली खरीद का सही से मैनेजमेंट किया जा सके। यह अधिनियम की धारा 26 में भी संशोधन करेगा जिससे राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र के कामकाज को मजबूत किया जा सके। यह ग्रिड की सुरक्षा और देश में बिजली व्यवस्था के कुशल संचालन को सुनिश्चित करेगा। 

(Electricity amendment Bill 2022) बिल का विरोध क्यों?

गुड न्यूज़ टुडे की ख़बर को मानें तो विपक्षी सांसदों ने कहा कि बिजली का विषय समवर्ती सूची में आता है इसलिए, सभी राज्यों और संबंधित पक्षकारों से विचार विमर्श करना जरूरी है, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया है। विपक्ष का आरोप है कि यह निजीकरण की दिशा में एक कदम है। लोकसभा में कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह विधेयक सहकारी संघवाद का उल्लंघन करता है। निजी कंपनियां मात्र कुछ शुल्क देकर मुनाफा कमाएंगी और सरकारी कंपनियां दिवालिया हो जाएंगीएंगी। इस विधेयक के लागू होने के बाद सब्सिडी खत्म हो जाएगी और उपभोक्ताओं को वास्तविक कीमत चुकानी होगी। विपक्ष ने बिजली दर मंहगी होने  की आशंका भी जताई है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपी ईएफ) ने भी कहा कि एक क्षेत्र में एक से अधिक कंपनियों को वितरण लाइसेंस देने से प्राइवेट कंपनियों को फायदा होगा और सरकारी कंपनियों का नुकसान होगा।

क्या कहना है विशेषज्ञों का?

विशेषज्ञों का मानना है कि इस विधेयक (Electricity amendment Bill 2022) में ऊर्जा की गुणवत्ता और सुरक्षा बिजली दरों को तय करने की सुनिश्चित प्रणाली और दायित्व के अंतरण समेत कई बुनियादी सवालों के जवाब नहीं दिए गए हैं, लिहाजा इस पर सभी पक्षों के साथ गहन विचार-विमर्श की गुंजाइश है।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की लीड कंट्री एनालिस्ट स्वाति डिसूजा ने विद्युत संशोधन विधेयक 2022 के विभिन्न पहलुओं खासकर निजी कंपनियों की आमद का विश्लेषण करते हुए कहा कि वर्ष 2003 में एक संशोधन विधेयक लाकर विद्युत व्यवस्था में निजी पक्षों को लाने का रास्ता साफ किया गया था। एक नजरिया है कि भारत को बिजली क्षेत्र में और अधिक निजी कंपनियों को प्रवेश देना चाहिए लेकिन मेरा मानना है कि यह एक छिछली सोच है क्योंकि इंडियन ऑयल और कोल इंडिया ने कई निजी कंपनियों के मुकाबले कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है।

उन्होंने कहा कि निजी वितरण कंपनियों की आमद इस बात की गारंटी नहीं है कि बिजली के दामों में कमी आएगी या ऊर्जा उत्पादन एवं वितरण दक्षता बढ़ेगी। पिछली 8 अगस्त को संसद में पेश किए गए विद्युत (संशोधन) विधेयक में इस बात का भी जवाब नहीं दिया गया है कि निजी कंपनियां क्रॉस सब्सिडी के रूप में मिलने वाले मुनाफे को सरकारी वितरण कंपनियों के साथ साझा करने को तैयार होंगी या नहीं। मेरी मुख्य चिंता यह है कि इससे वर्टिकली इंटीग्रेटेड सिस्टम पर क्या असर पड़ेगा। क्या हम निजी कंपनियों के संभावित एकाधिकार के समाधान के मुद्दे पर भी सोच रहे हैं। क्या इससे बचने के कुछ उपाय किए गए हैं।
स्वाति ने प्रतिस्पर्धा को बिजली की कीमतों में गिरावट लाने के मुद्दे पर केंद्रित करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि अमेरिका में बिजली उत्पादन और वितरण एक कारोबार है लेकिन वहां प्रतिस्पर्धा इस बात की है कि कैसे अपने टैरिफ को और कम किया जाए।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज में प्रोफेसर डॉक्टर आर. श्रीकांत ने प्रस्तावित विधेयक को छलावा करार देते हुए कहा कि इस बिल में वितरण प्रणाली की समस्याओं को पहचानने की कोशिश नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि पूर्व में पारित प्रस्तावों में स्वतंत्र नियामक का लक्ष्य था लेकिन सच्चाई यह है कि यह नाकाम रहा और पूरा बिजली तंत्र नौकरशाहों की जकड़ में रहा। हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा है कि ऊर्जा मंत्रालय ने केंद्रीय नियामक आयोग को एक बॉस की तरह निर्देश दिए हैं। पिछले दिनों कंपनियों को कोयला आयात बढ़ाने को कहा गया। मुश्किल यह है कि नियामकों की स्वतंत्रता को रोका गया। मुख्य समस्या यह है कि हमारे पास इंडिपेंडेंट रेगुलेशन नहीं है इसी वजह से हम इतनी मुश्किल स्थिति का सामना कर रहे हैं।

प्रोफेसर श्रीकांत ने कहा कि मौजूदा सरकारी वितरण कंपनियां बहुत ही दयनीय स्थिति में हैं। प्रस्तावित विधेयक से उनकी हालत और भी ज्यादा खराब हो जाएगी। इस विधेयक के कानून बनने पर उन्हें अपने तंत्र को निजी कंपनियों के साथ साझा करना पड़ेगा जो सरकारी वितरण कंपनियों को 10 पैसे प्रति यूनिट की दर से कीमत चुका कर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों को नहीं बल्कि सक्षम उपभोक्ताओं को ही बिजली देंगी। सवाल यह है कि इससे बराबरी वाली बात कैसे रहेगी। सरकारी स्वामित्व वाली वितरण कंपनियां गरीब से गरीब उपभोक्ता को भी बिजली दे रही हैं और मध्यम वर्ग तथा उच्च आय वर्ग के उपभोक्ताओं को निजी कंपनियां अपने दायरे में ले लेंगी। ऐसा होने से पहले से ही संकट से गुजर रही सरकारी वितरण कंपनियों के लिए और भी बुरी स्थिति पैदा हो जाएगी और वे धीरे-धीरे करके मर जाएंगी। यह सबसे बेहतरीन टाइम है कि वितरण कंपनियों का पीपीपी मॉडल पर निजीकरण किया जाए।

लीगल इनीशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरमेंट की सीनियर एडवाइजर अश्विनी चिटनिस ने कहा कि (Electricity amendment Bill 2022) में स्पष्टता की बहुत कमी है। यह बिल संघीय ढांचे की भावना के अनुरूप भी नहीं है। इसमें मल्टीपल लाइसेंसिंग की बात कही जा रही है लेकिन इस बात को लेकर स्पष्टता नहीं है कि आपूर्ति के क्षेत्र को किस तरह परिभाषित किया जाएगा। इस विधेयक में यह जाने बगैर प्रतिस्पर्धा की बात की जा रही है कि सीलिंग और फ्लोर टैरिफ किस तरह से निर्धारित किए जाएंगे। सरकार कह रही है कि यह सारी चीजें नियमों के मुताबिक निर्धारित की जाएंगी मगर वे नियम क्या होंगे, इसे लेकर अभी कुछ भी साफ नहीं है।

उन्होंने कहा कि अनेक ऐसे बहुत महत्वपूर्ण पहलू हैं जो बेहद बुनियादी हैं लेकिन उन्हें इस विधेयक में अनुत्तरित छोड़ दिया गया है। सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि सरकार वर्ष 2014 से ही यह बदलाव करने पर विचार कर रही थी। ऐसे में इस दशक के अंत तक ही शायद इस बात का अंदाजा लग सके कि इस कदम के क्या प्रभाव पड़ेंगे। इस विधेयक में कारोबार की व्यवहारिकता के मूलभूत मुद्दों को वाजिब तरीके से संबोधित नहीं किया गया है।

वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट के ऊर्जा नीति विभाग के प्रमुख तीर्थंकर मंडल ने कहा कि प्रस्तावित विद्युत संशोधन विधेयक पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत है। लोकसभा में पेश होने के बाद (Electricity amendment Bill 2022) विधेयक को संसद की स्‍थायी समिति के पास भेजा गया है। इस विधेयक पर सभी हितधारकों के साथ बातचीत होनी चाहिये और विभिन्न पक्षों के सुझावों को स्‍थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिए। इस बिल को बिना किसी के साथ बातचीत के पेश कर दिया गया है। जहां तक निजीकरण की बात है तो यह सरकार और निजी पक्षों के बीच खींचतान का मामला नहीं है। हम पूर्व के मामलों को देखें तो पहले भी निजीकरण के प्रयोग अक्सर सफल नहीं हुए हैं। मूलभूत मुद्दा यह है कि कौन लोग इस बिल को पेश कर रहे हैं। क्या वे ऊर्जा रूपांतरण का लक्ष्य रखते हैं। ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे बिजली की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर निर्भर करते हैं। सवाल यह है कि नियमन और नीति को लेकर हमारे पास तंत्र है। क्या यह बिल उसकी सुरक्षा करेगा? नए बिल में बिजली सुरक्षा के मुद्दे को क्या उस तरह से संबोधित किया गया है जैसा किया जाना चाहिए।

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस में एनर्जी इकोनॉमिस्ट विभूति गर्ग ने प्रस्तावित विधेयक के विभिन्न पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा कि प्रस्तावित विधेयक के तहत निजी कंपनियां सरकारी नेटवर्क का कुछ चार्ज देकर इस्तेमाल कर सकेंगे। आपूर्तिकर्ता के पास व्यक्तिगत अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की आजादी होगी। कोई भी आपूर्तिकर्ता सिर्फ एक राज्य तक ही नहीं बल्कि एक से अधिक राज्य में भी सप्लाई कर सकेगा मगर डिस्कॉम को पेमेंट सिक्योरिटी नहीं दी जाएगी।

उन्होंने कहा कि कुछ श्रम संगठनों राजनीतिक दलों और किसानों ने इस प्रस्तावित बिल का विरोध किया है। अनेक निजी कंपनियों की वितरण कंपनियों के बाजार में आने के कारण सब्सिडी खत्म होने के डर से किसान इसका विरोध कर रहे हैं। श्रम संगठन भी निजीकरण के डर से इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे हजारों लोगों की नौकरी छूट जाएगी।

क्‍लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि (Electricity amendment Bill 2022) पर और अधिक विचार-विमर्श की जरूरत है। यह इसलिये भी जरूरी है क्‍योंकि इसका असर देश के तमाम बिजली उपभोक्‍ताओं पर पड़ेगा। देश में उपभोक्‍ताओं के अलग-अलग वर्ग हैं, लिहाजा इस विधेयक में सबके हितों के संरक्षण का तत्‍व शामिल होना जरूरी है।

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