जब मैं एक छोटा कश्मीरी बच्चा था तो अपने राज्य कश्मीर में (अब एक केंद्र शासित प्रदेश) लोगों से अक्सर सुना करता था कि कश्मीर के बाहर अन्य राज्यों में किस तरह कश्मीरियों को मुश्किल का सामना करना पड़ता है। आप वहां जाने के बाद लंबी दाढ़ी नहीं रख सकते। वे लोगों के बीच आपसे समान तरह से व्यवहार नहीं करते मानों आप किसी दूसरे देश से आए हुए नागरिक हों।
बचपन से ही इस तरह की बातों को हमारे दिमाग़ में बिठाया गया कि मानो जैसे कश्मीर से बाहर निकलते ही बाहर की प्रकृति में ही सांप्रदायिकता भरी हो जहां लोगों को सिर्फ़ धार्मिक चश्में से ही देखा जाएगा। मैंने लोगों द्वारा बताई गईं उन सभी बातों को हमेशा नज़रअंदाज़ किया और यही माना की हमारा देश भारत एक है जहां सभी के साथ सविंधान के अनुसार एक समान व्यवहार किया जाता है। आज, यह विचार दूर की कौड़ी लगता है। शायद सही कहा है किसी ने जब तक खुद पर नहीं बीतती बात समझ नहीं आती।
कश्मीर से दिल्ली आने के बाद मैं दिल्ली में अपने एक मित्र के रूप पर रह रहा था। दुर्भाग्यवर्ष दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा हो गई। दिल्ली में हुई हिंसा के एक सप्ताह के बाद मेरे दोस्त के किराए के घर से मकान मालिक ने मुझे ये कहते हुए घर से बाहर निकाल दिया कि मैं एक कश्मीरी हूं। घर से निकाले जाने के बाद मैं ठिकाने की तलाश में शहर में पूरा दिन दर-दर भटकता रहा।
मैं हमेशा यही मानता आया कि जो हुआ सो हुआ, मगर इंसानियत के आगे बुराई का क़द बहुत ही बौना होता है। मगर आज मैंने उस विश्वास को खो दिया है । मैंने ऐसा क्या किया था? कि मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिल्ली में सड़क के किनारे बैठने के मजबूर होना पड़ा ? क्या कश्मीरी होना कोई पाप है? यह महज़ पहली घटना नहीं और न ही आख़री जहां कश्मीरियों को अपने ही देश में बाहरी जैसा एहसास हुआ हो। भारतीय लोकतंत्र संविधान का समर्थन करने में हास्यास्पद रूप से विफल दिखाई देता है। मैं अपने प्रश्न को फिर से दोहराता हूं कि कश्मीरी होने में क्या ग़लत है? कश्मीरियों के साथ ग़ैरों जैसा व्यवहार क्यों किया जाता है।
मैं, एक कश्मीरी के तौर पर हमेशा लोगों द्वारा पूछे जाने वाले बेबुनियाद सवालों को लेकर हमेशा परेशान रहता हूं। यहां तक की अजनबी लोग भी मेरी पहचान को लेकर मुझे परेशान करने लगते हैं। शायद उन्हें लगता है कि कश्मीर हिंसा, उग्रवाद का घर है, और हर कश्मीरी भारत विरोधी, पाकिस्तान समर्थक है, जो हिंसा फैलाने और ज़हर फैलाने के लिए दूसरे राज्यों में आ जाते हैं।
मुझे पता है कि वास्तव में जन्नत कहा जाने वाला क्शमीर ऐसा बिल्कुल भी नहीं जैसी इसकी तस्वीर बना कर दिखाई जाती रही है। कुछ दिन पहले मैं अपने घर श्रीनगर से दिल्ली आया। दिल्ली आने के बाद मैं अपने (एक हिंदू) दोस्त के घर पर जाकर रुका जो मुनीरका में जेएनयू के आस-पास रहता था । जब तक घर के मालिक को पता नहीं चला कि मैं कश्मीरी हूं, तब तक सब कुछ सामान्य रहा। कुछ दिनों बाद जैसे ही मुझे ये पता चला कि मकान मालिक ने मेरे दोस्त को ये पूछ-पूछ कर परेशान करना शुरू कर दिया कि मैं घर से कब वापस जाऊंगा। उसी दिन मैंने अपने दोस्त के कमरे को छोड़ने और अपना फ्लैट लेने का फैसला किया।
हमने कई मकान मालिकों से बात की जो हमें घर किराए पर देने को तैयार थे चाबी देने के लिए तैयार थे जब तक उन्हें ये पता नहीं चला कि मैं एक कश्मीरी हूं। जब एक मकान मालिक ने हमें किराए पर कमरा देने से इनकार कर दिया, तो हम कुछ अन्य स्थानों पर गए। हम मयूर विहार, साउथ एक्सटेंशन, मुनिरका, नोएडा में कई दिनों तक एक कमरे की तलाश में भटकते रहे लेकिन मेरी पहचान की वजह से मुझे कमरा नहीं मिला।
हम किराए के मकान की तालाश में यहां-वहां भटक रहे थे तभी सिविल लाइंस एरियां में पहुंचे तो वहां पर ख़डे लोग हमारी तरफ़ इशारा करते हुए कह रहे थे कि हमारे राज्य में इन कश्मीरियों को रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, पता नहीं कब क्या कर दें।। मेरे लिए यह दिल तोड़ने वाली घटना थी, जहां मुझे एहसास हुआ कि जम्मू-कश्मीर का नागरिक होना क्या इतना बुरा है।
ऐसे लोग आमतौर पर आपको नहीं जानते हैं। वे अधिकांश वही प्रश्न पूछेंगे जिनको सुनना आप पसंद नहीं करते हैं। वे आपसे बे-बुनियाद प्रश्न पूछेंगे। कभी-कभी तो आपको टार्चर भी करने लगेगें। ये वे लोग हैं जो आपको बेवजह परेशान करेंगे आपने कुछ ग़लत किया हो और न किया हो मगर आपको परेशान करते रहेंगे। वे आपके आत्मविश्वास को कुचल देंगे। जब भी मैं उन्हें देखता हूं तो मेरे दिमाग में एक चिंता का अलार्म बजना शुरू हो जाता है।
मेरे कुछ कश्मीरी मित्र जो देश के अन्य राज्यों में रहते हैं, वे मुझे अक्सर बताते हैं कि वे सामाज से कट कर रहते हैं और बहुत ही कम किसी से मिलते-जुलते हैं। राज्य के आम जनमानस से दूरी बनाकर ही रखते हैं। कश्मीर के लोग दो तरफा पिस रहे हैं। एक तरफ विभाजन के बाद से दशकों से पाकिस्तान की गोलियां और सेना द्वारा बरसाए जाते बम और असुरक्षा और महत्वाकांक्षा की भावना है। और दूसरी ओर वह अहंकार है जो दिल्ली के नागरिक में है, जो कश्मीरियों को पाक परस्त समझ हमे नकारने पर तुला हुआ है।
एक कश्मीरी के लिए परिस्थितियों के तहत सबसे समझदार चीज खुद होना है और अनावश्यक भावुकता और तर्कों में नहीं आना है, जो माहौल को खराब कर दे। यह केवल दिल्ली में नहीं है, यदि आप एक कश्मीरी हैं तो आपको राज्य के बाहर के होटलों में कमरे नहीं मिलेंगे क्योंकि आधार यह बताता है कि आप जम्मू-कश्मीर से संबंधित हैं।
मुझे नहीं पता कि लोग हर कश्मीरी को एक आतंकवादी के टैग के साथ क्यों देखा करते हैं, वे नहीं हैं। वे बेहतर अवसरों, बेहतर शिक्षा, बेहतर जीवन स्तर की तलाश में दूसरे शहरों में पहुंचते हैं, न कि नारे बाज़ी के लिए। कुछ लोगों के ग़लत कामों के चलते आप पूरे समुदाय को उसी तरह से आंकने और पूरे राज्य को बदनाम कैसे कर सकते हैं। मेहरबानी करके आप लोग ऐसा न करें। भारत का मतलब ही अनेकता में एकता है और हम कश्मीरी भी उन्हीं में से एक हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि हमारे पास सेब के बेहतर बाग हैं।
(Author is a journalist and working with groundreport.in as Correspondent. He can be reached at bwahid32@gmail.com. The views expressed are the author’s own. Ground Report is not responsible for the same.)
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