यूक्रेन में चल रहे युद्ध ने यूके को कोयला निर्यात करने के लिए मजबूर कर दिया है। युद्ध की वजह से बढ़ रही गैस की कीमतों की वजह से यूके ने विंटर्स में एनर्जी क्राईसिस को टैकल करने के लिए कोयला आयात दोगुना कर दिया है। यह फैसला क्लाईमेट चेंज से जूझ रही दुनिया के लिए किसी झटके से कम नहीं है।
कमोडिटी एनालिटिक्स फर्म किपलर के मुताबिक पिछले महीने 5 लाख 60 हज़ार टन से ज्यादा कोयला ब्रिटेन के तटों पर पहुंचा। वहीं साल 2021 में अक्टूबर माह में यह दो लाख 91 हज़ार टन के आसपास था। ऐसे में यह स्पष्ठ है कि पिछले एक साल में यूके का एक माह के कोयला आयात में 93 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
अक्टूबर माह के कोल इंपोर्ट को देखकर यह अंदाज़ा लगााया जा सकता है कि यूके विंटर में एनर्जी क्राईसिस से निबटने के लिए कोल इंपोर्ट एक्सेलीरेट कर रहा है।
हालांकि आधिकारिक आंकड़ों में कोल इंपोर्ट के केवल 44 फीसदी ही बढ़ा हुआ दिखाया गया है।
बताया जा रहा है कि जो एक्सट्रा कोल यूके में आ रहा है वो थर्मल कोल है जिसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन में किया जाता है।
रुस के गैस पर लगे बैन की वजह से यूके नए साथी तलाश रहा है। मोज़मबिक जहां से कभी यूके ने कोल इंपोर्ट नहीं किया था, अब यूके को कोयला बेचने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है।
पर्यावरणविदों का कहना है कि यूके के पास यह अच्छा मौका था, होम इंसूलेशन और रिन्यूएबल सोर्सेस में इंवेस्ट करने का लेकिन कोयला आयात करके यूके आसान रास्ते तलाश रहा है और पर्यावरण को खतरे में डाल रहा है।
1990 के तुलना में यूके में कोल प्लांट्स की संख्या आधी ही रह गई है। देश में केवल तीन ही थर्मल पावर प्लांट चल रहे हैं। हालांकि गैस पर यूके की निर्भरता ने उसे दोबारा कोयला आयात करने पर मजबूर कर दिया है।
एक तरीके से देखा जाए तो रुस यूक्रेन युद्ध ने पर्यावरण की लड़ाई को कमज़ोर कर दिया है।
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