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मध्यप्रदेश के पास नहीं है अपना कोई 'हीट वेव' एक्शन प्लान

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार इस साल गर्मी का मौसम ज़्यादा तीव्र होगा. ऐसे में हमारे शहर ‘हीट वेव्स’ से निपटने के लिए कितने तैयार है?

By Shishir Agrawal
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Heatwaves Action Plan

मार्च के महीने के अंतिम दिन हैं. दोपहर के 2 बज रहे हैं. मगर मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की सड़कों पर जाने का मन नहीं होता. लेकिन यह केवल भोपाल का हाल नहीं है. भारतीय मौसम विभाग द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार इस साल गर्मी का मौसम ज़्यादा तीव्र होगा. साथ ही हीटवेव (लू) की संख्या भी बढ़ जाएगी. ऐसे में यह देखना ज़रूरी हो जाता है कि हमारे शहर ‘हीट वेव्स’ से निपटने के लिए कितने तैयार है? इस सवाल का जवाब खोजते हुए यह भी देखना अहम् है कि क्या हमारे शहरों के विकसित होने की योजना में इस समस्या का ख्याल रखा गया है?

हीट वेव्स क्या है?

इसे बेहद आसान भाषा में समझें तो बेहद गर्म मौसम में चलने वाली हवाओं को हम हीटवेव या लू कहते हैं. हालाँकि भारत में मैदानी, तटीय और पर्वतीय क्षेत्रों के लिए मौसम के ‘बेहद गर्म’ कहलाने के पैमाने अलग-अलग हैं. भारत के मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा हो जाने पर इस दौरान चलने वाली हवा को हीटवेव्स माना जाता है. वहीं तटीय इलाकों के लिए यह सीमा 37 डिग्री सेल्सियस है और पहाड़ी इलाकों के लिए 30 डिग्री सेल्सियस. 

हीटवेव के दिन घोषित करने के लिए सम्बंधित स्थानों के कम से कम 2 मौसम विज्ञान केंद्र में लगातार 2 दिनों तक उपरोक्त अनुसार तापमान दर्ज होना चाहिए. 

heatwaves
गर्मियों के समय में शहरों में सड़कों पर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है

हीट वेव्स से शहरों का हाल

एक अनुमान के मुताबिक़ इस सदी के मध्य तक इंदौर का (औसत) तापमान अभी की तुलना में 1.3 डिग्री तक बढ़ जाएगा. वहीँ ग्वालियर के लिए यह आँकड़ा 1.5 डिग्री है. ऐसे में शहरों के लिए हीटवेव्स से निपटना एक गंभीर मसला हो जाता है. मध्य प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन के डिप्टी डायरेक्टर सौरभ कुमार कहते हैं,

“शहरों में काम करने वाली ज़्यादातर आबादी गर्म मौसम से सीधे संपर्क में रहती है. ऐसे में यह हीटवेव्स से सीधे प्रभावित होती है.” 

एक अनुमान के अनुसार साल 2030 तक भारत के शहरों में रहने वाली जनसंख्या बढ़कर 590 मिलियन हो जाएगी. साथ ही भारत में शहरी क्षेत्रों द्वारा होने वाला ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन भी लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में भारत के शहर न सिर्फ गर्म हो रहे हैं बल्कि इसके चलते यहाँ हीटवेव्स की तीव्रता भी बढ़ी है. शहरों के विकास ने इस समस्या को और भी गंभीर कर दिया है.

गर्मियों में राहगीरों के लिए ठंडे पानी की व्यवस्था के लिए प्याऊ स्थापित किये जाते हैं
गर्मियों में राहगीरों के लिए ठंडे पानी की व्यवस्था के लिए प्याऊ स्थापित किये जाते हैं

शहरों के विकास का हीटवेव्स से कनेक्शन

बीते अंतरिम बजट को पेश करते हुए केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत अधोसंरचना (Infrastructure) के विकास में 134 बिलियन डॉलर खर्च करेगा. यानि शहरों में कंक्रीट का जंगल और भी सघन हो जाएगा. ज़ाहिर है इस विकास से बनने वाली इमारतें ज़्यादा बिजली का इस्तेमाल भी करेंगी. यानि यह अतिरिक्त ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन भी करेंगी. यूँ भी भारत में 20 प्रतिशत से भी ज़्यादा ऊर्जा उत्सर्जन के लिए निर्माण कार्य सेक्टर ज़िम्मेदार है. 

बढ़ता निर्माण कार्य शहरों में अर्बन हीट आइलैंड (UHI) प्रभाव को बढ़ा देता है. इसे सरल शब्दों में समझें तो कंक्रीट सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा को वापस वातावरण में परावर्तित करने के बजाय इसे सोख लेता है. यह तापमान को और बढ़ा देता है. 

मौसम विज्ञान केंद्र भोपाल की वैज्ञानिक डॉ दिव्या कहती हैं कि बीते 5 सालों में हर साल हीटवेव का असर बढ़ा है. 

“गर्म दिनों की संख्या (number of heat days) और तीव्रता दोनों ही वैश्विक तापमान बढ़ने के चलते बढ़ी है. पहले लगातार 1 या 2 दिन तक हीटवेव्स चलती थीं. फिर इनमें कुछ कमी आती थी. मगर अब यह कम देखने को मिलता है.”

Disaster management Institute Bhopal
आपदा प्रबंधन संस्थान भोपाल

क्या हमारे शहर के पास हीट वेव के लिए कोई प्लान है?

सरकार द्वारा जारी एक डाटा के अनुसार 1992 से लेकर 2015 तक हीट वेव्स के चलते 24 हज़ार 223 मौतें हुई हैं. वहीं एक अन्य आँकड़े के अनुसार साल 2011 से 2018 के बीच 6 हज़ार 187 लोगों की मौत हीट स्ट्रेस के चलते हुई है. पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजीजू ने दिसम्बर 2023 को सदन में दिए एक जवाब में बताया कि भारत के 23 राज्य हीटवेव्स के मामलें में असुरक्षित (vulnarable) हैं. 

इन राज्यों को राज्य और ज़िला स्तर पर हीट एक्शन प्लान बनाने की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार द्वारा दी गई थी. इसके महत्व के बारे में डॉ. दिव्या कहती हैं,

“हर शहर का तापमान और मौसम अलग-अलग होता है. इसलिए हर शहर हीटवेव्स से अलग-अलग तरह से प्रभावित होता है. इसलिए हर शहर का हीट एक्शन प्लान होना बेहद ज़रूरी है.”

मगर मध्यप्रदेश के पास अपना कोई भी ‘हीट वेव एक्शन प्लान’ नहीं है. सौरभ कुमार बताते हैं,

“प्रदेश का हीट एक्शन प्लान लगभग तैयार हो गया है. मगर सम्बंधित अन्य विभागों से मंज़ूरी मिलने के बाद ही इसे जारी किया जा सकेगा.”

ऐसे में अभी हमारे पास ‘प्लान’ के रूप में केवल आपदा प्रबंधन द्वारा जारी ‘एडवाईज़री’ ही है. याद रहे कि यह एडवाईज़री वह हिदायत है जो हर विभाग को उनकी तैयारियों के लिए दी जाती है. मगर खुद नगर निगम के एक कर्मचारी हमसे कहते हैं कि उनके ऑफ़िस में इसे बहुत गंभीरता से तब तक नहीं लिया जाता जब तक लोगों की मौत नहीं होने लगती.

क्यों ज़रूरी है हीटवेव एक्शन प्लान?

साल 2010 में अहमदाबाद अत्यधिक तीव्र हीटवेव का शिकार हुआ. इसके चलते यहाँ करीब 1344 अतिरिक्त मौतें हुईं. साल 2013 में इस शहर ने हीट वेव एक्शन प्लान तैयार किया. अहमदाबाद नगर पालिक के अनुसार इसके कारण वह 2380 लोगों की जान बचा सके. दरअसल हीटवेव एक्शन प्लान अलग-अलग विभागों को हीट वेव से सम्बंधित ज़िम्मेदारियों के बारे में न सिर्फ बताता है बल्कि उन्हें इन्हें निभाने के लिए बाध्य भी करता है. खुद डॉ दिव्या कहती हैं, 

“एडवाईज़री होने के बाद भी हमें हीट वेव एक्शन प्लान की ज़रूरत है क्योंकि यह अलग-अलग विभागों की ज़िम्मेदारियाँ तय करते हुए उन्हें इसे निभाने के लिए बाध्य करता है.” 

अहमदबाद द्वारा तीन चरणों में हीट वेव एक्शन प्लान को लागू किया गया. पहले चरण में हीट अलर्ट सिस्टम और अलग-अलग विभागों के बीच समन्वय के लिए एक नोडल अफसर नियुक्त किया गया. दूसरे चरण में सम्बंधित विभाग प्लान में मौजूद ज़रूरी कदम उठाएँ यह सुनिश्चित किया गया. वहीँ तीसरे चरण में कूल रूफ जैसे प्रोग्राम के ज़रिए हाशिए के तबके के लोगों के घरों को ठंडा करने के लिए सहायता प्रदान की गई. 

इसके अलावा हीट वेव के दौरान अस्पतालों पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य अधिकारियों, पैरा-मेडिकल स्टाफ़ और सामुदायिक स्वास्थ्य तबके के लोगों को प्रशिक्षण दिया गया. 

मगर मध्यप्रदेश द्वारा हीटवेव से निपटने के लिए ऐसा कोई भी प्लान नहीं है. इसका नतीज़ा यह होता है कि विभागों का आपस में समन्वय कम होता है. नगर निगम द्वारा पानी के लिए प्याऊ तो स्थापित किए जाते हैं. मगर प्रदेश के पास कूल रूफ सिस्टम को प्रदेश भर में लागू करने के लिए या फिर ज़िले में भी लागू करने के लिए कोई योजना नहीं है. यही नहीं हमारे शहरों के प्रशासन को यह भी नहीं पता कि शहर के कौन से हिस्से इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे. हमने जब नगर निगम के अधिकारियों से यह सवाल किया तो वह कहते हैं कि सभी हिस्से ही प्रभावित होते हैं. मगर टीन के शेड वाली झुग्गियाँ एसी कमरों से सजी कोठियों की तुलना में ज़्यादा ‘वल्नरेबल’ हैं. इसके अलावा बढ़ते शहरीकरण और कटते पेड़ों के बीच कूलिंग सेंटर बनाने के ‘सस्टेनेबल’ रास्ते लगातार बंद होते जा रहे हैं. 

हीट वेव एक्शन प्लान की अपनी खामियां हैं. अतः यह अंतिम समाधान नहीं है. मगर इसे बेहतर किया जा सकता है. उसके लिए भी ज़रूरी है कि शहरों के पास अपना एक हीटएक्शन प्लान हो. विभाग अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति बाध्य हों और उनके बीच समन्वय के लिए भी अधिकारी हो.

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