विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) की आज जारी रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के कारण हुई औद्योगिक मंदी ने ग्रीनहाउस गैसों के रिकॉर्ड स्तर पर कोई अंकुश नहीं लगाया है। ये गैसें, जो वातावरण में गर्मी को बढ़ा रहीं हैं, अधिक चरम मौसम, बर्फ के पिघलने, समुद्र के स्तर में वृद्धि और महासागरीय अम्लीकरण के संचालन के लिए ज़िम्मेदार हैं।
लॉकडाउन ने कार्बन डाइऑक्साइड जैसे कई प्रदूषकों के उत्सर्जन में तो कटौती की, लेकिन CO2 सांद्रता पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। डब्लूएमओ ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में 2019 में तो वृद्धि बनी ही रही, वो वृद्धि 2020 में भी जारी है।
ALSO READ: जलवायु परिवर्तन: जीवाश्म ईंधन को, 2030 तक, ब्रिटेन कर देगा बे‘कार’!
2019 में CO2 की वृद्धि वार्षिक वैश्विक औसत 410 अंश प्रति मिलियन की महत्वपूर्ण सीमा को पार कर गयी। 1990 के बाद से, कुल रेडिएटिव फोर्सिंग में 45% की वृद्धि हुई है। अपनी प्रतिक्रिया देते हुए डब्लूएमओ महासचिव प्रोफेसर पेट्ट्री तालास ने कहा, “कार्बन डाइऑक्साइड सदियों के लिए वायुमंडल और समुद्र में बस जाता है। पिछली बार पृथ्वी को CO2 की तुलनात्मक एकाग्रता का अनुभव 3-5 मिलियन साल पहले हुआ था, जब तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था और समुद्र का स्तर अब से 10-20 मीटर अधिक था। लेकिन तब धरती पर 7.7 बिलियन लोग नहीं थे।”
वो आगे कहते हैं, “हमने 2015 में 400 अंश प्रति मिलियन की वैश्विक सीमा का उल्लंघन किया। और सिर्फ चार साल बाद, हमने 410 ppm (पीपीएम) को पार कर लिया। इस तरह का वृद्धि दर हमारे रिकॉर्ड के इतिहास में कभी नहीं देखा गया है। लॉकडाउन से उत्सर्जन में आयी गिरावट बस एक छोटी सी चमक भर थी। इसे हमें मेंटेन करना है।”
ALSO READ: जलवायु परिवर्तन संबंधी मुक़दमे में फ़्रांसिसी अदालत ने लिया क्रन्तिकारी फ़ैसला
पर्यावरण या जलवायु को कोविड-19 महामारी के प्रभावों से किसी तरह का कोई समाधान नहीं मिल रहा है। लेकिन हाँ, यह हमारे औद्योगिक, ऊर्जा और परिवहन प्रणालियों के पूर्ण रूप से पुनरावलोकन और एक महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के लिए एक मंच ज़रूर प्रदान करता है।
प्रोफेसर पेट्ट्री तालास आगे कहते हैं, “कई देशों और कंपनियों ने खुद को कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए प्रतिबद्ध किया है और यह स्वागत योग्य कदम है। वैसे भी अब खोने के लिए कोई समय नहीं है।” ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट ने अनुमान लगाया कि शटडाउन की सबसे तीव्र अवधि के दौरान, दुनिया भर में दैनिक CO2 उत्सर्जन आबादी के कारावास की वजह से 17% तक कम हुआ है। क्योंकि लॉकडाउन की अवधि और गंभीरता अस्पष्ट हैं, इसलिए 2020 में कुल वार्षिक उत्सर्जन में कमी की भविष्यवाणी बहुत अनिश्चित है। यह ताज़ा रिपोर्ट ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच और पार्टनर नेटवर्क से टिप्पणियों और मापों पर आधारित है, जिसमें दूरस्थ ध्रुवीय (पोलर) क्षेत्रों, ऊंचे पहाड़ों और उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) द्वीपों में वायुमंडलीय निगरानी स्टेशन शामिल हैं।
ALSO READ: ज़ख्म भरने से पहले ही खुरच रहे हैं, जी 20 देश कुछ ऐसे निवेश कर रहे हैं!
अब इन गैसों के बारे में अलग अलग बात कर ली जाए। सबसे पहले बात कार्बन डाइऑक्साइड की करें मानव गतिविधियों से संबंधित वायुमंडल में एकल सबसे महत्वपूर्ण लंबे समय तक रहने वाली ग्रीनहाउस गैस है, जो दो तिहाई रेडिएटिवे फोर्सिंग के लिए ज़िम्मेदार है।
दूसरी महत्वपूर्ण गैस है मीथेन, जो लगभग एक दशक के लिए वायुमंडल में बसी रहती है। मीथेन लंबे समय तक रहने वाले ग्रीनहाउस गैसों द्वारा रेडिएटिव फोर्सिंग के लगभग 16% का योगदान देता है। लगभग 40% मीथेन प्राकृतिक स्रोतों (जैसे, आर्द्रभूमि और दीमक) द्वारा वातावरण में उत्सर्जित होती है, और लगभग 60% मानवजनित स्रोतों से आती है (जैसे, जुगाली, चावल की कृषि, जीवाश्म ईंधन का दोहन, लैंडफिल और बायोमास जलाना)। अब बात नाइट्रस ऑक्साइड की करें तो, ये एक ग्रीनहाउस गैस और ओजोन क्षयकारी रसायन, दोनों है।
इन सभी गैसों की सांद्रता में फ़िलहाल कोई कमी नहीं आयी है और अंततः इस पूरी रिपोर्ट से हमें पता चलता है कि सब उतना अच्छा नहीं जितना प्रतीत होता है। जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अभी करने को बहुत है।
Contributor: Nishant, a Lucknow-based journalist and environment enthusiast working towards prioritization of issues like climate change and environment in Hindi and vernacular media.
Ground Report के साथ फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं और अपनी राय हमें [email protected] पर मेल कर सकते हैं।