मुस्लिमों का सबसे पवित्र महीना रमज़ान है। दुनियाभर के मुसलमान इस महीने का बड़ी बेसब्रसी से इंतज़ार करते हैं। रमज़ान की शुरुआत चांद देखने की बाद होती है। रमज़ान मुस्लिम कैलेंडर का नौवां महीना होता है। रमज़ान में मुस्लिम रोज़ा रखते हैं। जब सूरज निकलता है उस वक़्त से लेकर, जब तक सूरज डूब नहीं जाता। उस वक़्त तक रोज़ा रखने वाले कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं।
पैगंबर मुहम्मद साहब (अल्लाह के दूत) ने फरमाया है कि-‘जब रमज़ान का महीना शुरू होता है तो जहन्नुम (नर्क) के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं।’
दुनियाभर के मुसलमान इस महीने में इबादत करते हैं। मुस्लिम रोज़ा रखने के अलावा कुरान की तिलावत (पढ़ते) हैं। इस महीने में कुरान पढ़ने में अधिक सवाब होगा। गुनाह माफ़ होंगे और जन्नत के हकदार बनेंगे। रोज़ा इस्लाम के फाइव पिलर में से एक है। जो सभी बालिग़ पर वाजिब है। यानी उन्हें पूरे महीने के रोज़े रखने ही रखने हैं।
रमज़ान में सहरी और इफ्तार क्या होता है ?
कुरान जो मुस्लिमों का धर्मग्रंथ है, वो भी इसी महीने में नाज़िल (दुनिया में आया) है। मुसलमानों के मुताबिक जिस रात कुरान की आयत आई उसे अरबी में ‘लैलातुल क़द्र’ यानी ‘द नाईट ऑफ़ पावर’ कहा जाता है।
रोज़े 30 दिन के भी हो सकते हैं और 29 दिन के भी। ये बात भी चांद पर ही डिपेंड करती है कि वो कब अपना दीदार कराता है। जिस रात को चांद दिखता है उससे अगली सुबह ईद का दिन होता है।
जब शाम को सूरज डूबता है। तब खाने पकाने के इंतजाम सवेरे से ही होने लगते हैं। चाट-पकौड़ियां। तरह तरह के लज़ीज़ खाने। शाम को अगर दस्तरख्वान देखा जाए तो दिल ललचा जाए। तड़के में जब खाते हैं तो उसे ‘सहरी’ और जब शाम को खाया जाता है तो उसे ‘इफ्तार’ कहा जाता है।
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