सऊदी अरब की तेल कंम्पनी आरामको पर हुए ड्रोन हमलों के बाद ईरान और सऊदी के बीच काफ़ी तनातनी होती दिख रही है. अमेरिका ने इस हमले को लेकर सीधे तौर पर ईरान को ज़िम्मेदार ठहराया है. दूसरी तरफ़ अमेरिका, ईरान से युद्ध करने के इस मसले का हल नहीं मान रहा. वहीं ईरान ने इस मसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम अमेरिका से वार्ता नहीं करने वाले न द्वीपक्षीय और न ही बहुपक्षीय.
अमेरिका की नीतियां धोका देने वालीं हैं
ईरान के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने मंगलवार को एक धार्मिक शिक्षा सत्र के दौरान दिए भाषण में अपने शिष्यों से अमेरिका से वार्ता का मुद्दा उठाए जाने का उल्लेख किया और इसे अमेरिका का हथकंडा बताया ताकि अमेरिका यह साबित कर सके कि ईरान पर अधिकतम दबाव की नीति सफल रही है. वरिष्ठ नेता ने अमेरिकी अधिकारियों के रुख का उल्लेख करते हुए कहा कि कभी वह कहते हैं कि बिना शर्त की बात-चीत करेंगे और कभी बात-चीत के लिए 12 शर्तें पेश करते हैं, इस प्रकार की बातें धूर्तता और धोखा देने के लिए की जाती हैं किंतु हम धोखा नहीं खाएंगे क्योंकि हमारा रास्ता पूरी तरह से स्पष्ट है और हमें पता है कि हमें क्या करना है.
ईरान किसी भी हालात में झुकने वाला नहीं
ख़ामेनई ने कहा कि गत 40 वर्षों के दौरान इस्लामी गणतंत्र ईरान विभिन्न हथकंडों का सामना करता रहा है लेकिन दुश्मन हमारे देश को झुकाने में सफल नहीं हो पाया और दुश्मनों की नीतियां एक-एक करके ईरान की नीतियों के सामने विफल साबित होती रहीं और भविष्य में भी ईश्वर की कृपा से उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर कर देगा. वरिष्ठ नेता ख़ामेनई ने कहा कि इस प्रकार की वार्ता के लिए अमरीकियों को उन लोगों के पास जाना चाहिए जो उन के लिए दुधारु गाय बने हुए हैं, इस्लामी गणतंत्र ईरान, धर्म पर आस्था रखने वालों, अल्लाह के सामने शीश झुकाने वाले मुसलमानों और प्रतिष्ठा रखने वाला देश है.
किंतु हमें यह साबित करना है कि ईरानी राष्ट्र के सामने अधिकतम दबाव की नीति किसी काम की नहीं है. अमेरिका से वार्ता के बारे में ख़ामेनई ने अपनी बातों को दो बिन्दुओं में संक्षिप्त रूप से बयान किया पहला यह कि अमेरिका से वार्ता का अर्थ, ईरान पर अमेरिका की मांगों को थोपा जाएगा. दूसरा यह कि ईरान पर अधिकतम दबाव की नीति प्रभावी है.
तेहरान टाईम्स में छपी एक रिपोर्टस के अनुसार..