Powered by

Home Hindi

उत्तराखंड : इंटरनेट के दौर में पीछे रह गया यह गांव

उत्तराखंड : हर तरफ नेटवर्क का जाल बिछा हुआ है, शहर ही नहीं गांव गांव तक ब्रॉडबैंड का कनेक्शन पहुंचाया जा रहा  है, 

By Pallav Jain
New Update
Rural Report

 Rural Report By Chandani from Lamchula village, Garur, उत्तराखंड | संचार क्रांति के इस दौर में आज जब भारत 5जी की टेस्टिंग के अंतिम चरण में पहुंच चुका है और अब 6जी की ओर कदम बढ़ा रहा है, हर तरफ नेटवर्क का जाल बिछा हुआ है, शहर ही नहीं गांव गांव तक ब्रॉडबैंड का कनेक्शन पहुंचाया जा रहा  है, टेक्नोलॉजी के ऐसे युग में हमारे देश में कुछ ग्रामीण क्षेत्र भी हैं जो नेटवर्क कनेक्टिविटी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित हैं. जहां लोगों को अपनों से फोन पर बात करने के लिए भी घर से 5 से 7 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.

यह हकीकत देश के कई ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ उत्तराखंड के दूर दराज़ के गांवों में भी देखने को मिल रहा है. एक तरफ जहां लॉकडाउन के समय देश के बच्चे ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से आसानी से अपनी शिक्षा पूरी कर रहे थे, तो वहीं पहाड़ी क्षेत्र उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक के लमचूला गांव के बच्चे नेटवर्क नहीं होने के कारण इस दौरान लगभग शिक्षा की लौ से कोसों दूर थे. विद्यार्थियों के साथ साथ ग्रामीणों को भी मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था जो आज भी बदस्तूर जारी है.

छात्राएं ही ऑनलाइन क्लासेज़ करने से वंचित रह गईं

करीब सात सौ की आबादी वाले इस गांव में अन्य बुनियादी सुविधाओं के साथ साथ नेटवर्क की भी बड़ी समस्या है, जो काम लोग इंटरनेट के माध्यम से घर बैठे मिनटों में कर सकते हैं, उसके लिए भी यहां के लोगों को या तो शहर अथवा गांव से बहुत दूर एक निश्चित स्थान पर जाना पड़ता है. इस संबंध में गांव की एक किशोरी हेमा का कहना है कि नेटवर्क की समस्या होने के कारण फोन में टावर नहीं आता है, जिससे पूरे लॉकडाउन के दौरान सबसे अधिक हम छात्राएं ही ऑनलाइन क्लासेज़ करने से वंचित रह गईं क्योंकि अच्छी कनेक्टिविटी के लिए गांव से बाहर एक निश्चित ऊंचे स्थान पर जाना पड़ता है, जहां जाने के लिए अभिभावक हमें अनुमति नहीं देते थे.

पिछले दो वर्षों में गांव की छात्राओं पर शिक्षा का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. हेमा ने कहा कि इस दौरान घर के लड़कों की अच्छी शिक्षा के लिए सभी उपाय किये गए, लेकिन लड़कियों की शिक्षा के प्रति किसी ने भी गंभीरता का परिचय नहीं दिया, यदि गांव में नेटवर्क की समस्या नहीं होती तो लड़कियां भी घर बैठ कर क्लासेज कर सकती थीं. वहीं एक अन्य किशोरी दीपा का कहना है कि बच्चों ने लॉकडाउन में घर बैठे पढ़ाई की, परंतु हमारे यहां तो नेटवर्क ही नहीं होता था, ऐसे में हम ऑनलाइन पढ़ाई कहां से करते? ऐसा नहीं है कि यहां के ग्रामीणों ने शासन प्रशासन से नेटवर्क स्थापित करने की मांग न की हो, लेकिन अब तक उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है. ऐसा लगता है कि हम देश के नागरिक नहीं हैं, शायद इसीलिए हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

दैनिक आमदनी राष्ट्रीय औसत से काफी कम

नेटवर्क की समस्या से विद्यार्थियों के साथ साथ ग्रामीणों को भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. उन्हें अगर किसी से जरूरी बात करनी हो तो घर से बहुत दूर जाना पड़ता है, जहां इंटरनेट चल पाए और फोन में टावर भी आ जाए, लेकिन वर्षा के दिनों में अथवा बर्फ़बारी के समय कई बार वहां भी अच्छे से बात नहीं हो पाती है. कोरोना और लॉकडाउन के दौरान जब लोगों का सबसे बड़ा सहारा फोन ही था, ऐसे समय में भी यहां के लोगों को यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी.

इस समय यहां अच्छी कनेक्टिविटी वाले टावर की बहुत आवश्यकता है. आजकल हर कार्य ऑनलाइन करना पड़ता है, लेकिन नेटवर्क नहीं होने के कारण लोगों को अपना छोटा सा काम भी करवाने के लिए बाजार या शहर जाना पड़ता है. ग्रामीणों के अनुसार कई बार आवश्यक कार्य होने पर बैंक वाले फोन करते हैं, लेकिन नेटवर्क की समस्या होने के कारण फोन नहीं लग पाता है, जिससे उनका ज़रूरी कार्य भी रुक जाता है और उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. चूंकि इस गांव की अधिकतर आबादी खेती या मज़दूरी करती है. जिनकी दैनिक आमदनी राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. ऐसे में इन्हें एक दिन का भी नुकसान काफी महंगा साबित होता है.

पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ दिया गया

उत्तराखंड में पिछले वर्ष के अंत में दूरसंचार विभाग द्वारा जारी वर्षांत समीक्षा के अनुसार देश के ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार घनत्व मार्च 2014 के 44 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2021 में 59 प्रतिशत हो गया है. जबकि ब्रॉडबैंड कनेक्शन में 1200 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 6.1 करोड़ की तुलना में 79 करोड़ हो गया है. विभाग के अनुसार नवंबर 2021 तक देश के करीब 1.8 लाख ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ दिया गया है.

यही कारण है कि नेटवर्क रेडीनेस इंडेक्स में भारत 2020 में 88वें स्थान से छलांग लगा कर 2021 में 67वें स्थान पर पहुंच गया है. दूरसंचार विभाग का यह आंकड़ा सुखद ज़रूर है, लेकिन उत्तराखंड का लमचूला और उसके जैसे कई गांव इंटरनेट के इस युग में अभी भी काफी कनेक्टिविटी से बहुत दूर हैं. इसकी बानगी स्वयं यह आलेख है जिसे पाठकों तक पहुंचाने के लिए मुझे गांव से दूर नेटवर्क क्षेत्र में आना पड़ा है. (चरखा फीचर)

You can connect with Ground Report on FacebookTwitterInstagram, and Whatsapp and Subscribe to our YouTube channel. For suggestions and writeups mail us at [email protected]