हरिद्वारा में चल रहे कुंभ 2021 में भारत सरकार द्वारा एक वीडियो प्रतियोगिता आयोजित करवाई जा रही है। जिसमें प्रतिभागियों को वीडियो के माध्यम से कुंभ का सार बताना है। इसके बारे में आप mygov.in. पर जाकर देख सकते हैं। अब यहां सवाल उठता है कि भारत सरकार द्वारा धर्म विशेष के आयोजन में इस तरह प्रतियोगिता आयोजित करवाना कितना उचित है?
पहले थोड़ा कुंभ के बारे में जानते हैं...
कुंभ हिंदुओं के लिए धार्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है। इसका आयोजन चार साल में एक बार किया जाता है। महाकुंभ 12 साल में एक बार होता है। इस वर्ष महाकुंभ हरिद्वारा में आयोजित किया जा रहा है जो अप्रैल के अंत तक चलेगा। ऐतिहासिक तथ्य कुंभ पर्व को डेढ़ से दो ढाई हजार साल पहले शुरू होने की गवाही देते हैं। इससे पहले कुंभ या किसी तरह के बड़े आयोजनों का उल्लेख देखने में नहीं आया।
खैर अब आते हैं मुद्दे पर...
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। भारत का संविधान यह कहता है कि भारत की सरकार किसी धर्म विशेष को बढ़ावा या उसके साथ भेदभाव नहीं कर सकती। हालांकि संविधान को तांक पर रखकर सरकारें धार्मिक तुष्टीकरण करती रहती हैं। इसके अलावा देश में महामारी फैली हुई है। देश में हेल्थ इमरजेंसी जारी है उसके बावजूद इस तरह से एक जगह पर लाखों लोगों की भीड़ को इक्ट्ठा होने देना और सारे नियमों को आंख के सामने तार-तार होते देखना कितना उचित है। रोकना तो दूर सरकार उसे आकर्षक बनाने के लिए प्रचार में जुटी है। आखिर एक धर्म विशेष का वोट लोगों की जान से ज़्यादा कैसे हो सकता है, क्या सरकार ऐसा करके खुद के ही कानून की खिल्ली नहीं उड़ा रही?
धर्म-धर्म में अंतर क्यों?
पिछले वर्ष जब भारत में कोरोना की पहली लहर आई तब लॉकडाउन के दौरान तबलीगी जमात द्वारा आयोजित मरकज़ को भारत में कोरोना विस्फोट का कारण बताया गया। एक धर्म विशेष के लोगों को कोरोना के लिए ज़िम्मेदार ठहराने के लिए पूरा तंत्र एक्टिव हो गया। सरकार के मंत्री और विधायकों ने मुस्लिमों को विलेन बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया। आईटी सेल और मीडिया के ज़रिए प्रोपगैंडा चलाया गया। यह प्रोपगैंडा इस कदर प्रभावी हो गया कि लोगों ने अपनी गली में फल सब्ज़ी बेचने आने वाले मुस्लिमों से सामान तक खरीदना बंद कर दिया था। लोगों को यह यकीन दिलवा दिया गया कि भारत में मुस्लिम ही कोरोना है। कई मीडिया चैनलों ने तो इसे देशद्रोह करार दे दिया।
क्या दूसरी लहर में बदल गए देशद्रोह के मायने?
भारत में दूसरी लहर कहर बरपा रही है। एक दिन में दो लाख तक कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं। हज़ारों लोग अपनी जान गवां रहे हैं। कहीं से वैंटीलेटर की कमी की खबर है, तो कहीं ऑक्सीज़न नहीं है, तो कहीं अस्पताल में जगह नहीं है। इस दौरान प्रधानमंत्री और उनका पूरा मंत्रीमंडल बंगाल में चुनाव प्रचार में व्यस्त है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब, यूपी, मध्यप्रदेश और गुजरात के हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। इतनी भयंकर स्थिति के बाद भी प्रधानमंत्री देश के नाम संबोधन नहीं दे रहे हैं, यह अचरज की बात है। कुंभ मेले को सुपर स्प्रेडर इवेंट की तरह देखा जा रहा है। यहां से लौटे लोग देश भर में कोरोना के मामले बढ़ा सकते हैं। ऐसे में भी सरकार की ओर से कोई सख्ती न किया जाना आश्चर्य में डालता है।
बंगाल में अभी चार चरण के चुनाव बाकि हैं, ममता बनर्जी ने बाकि चरण के चुनाव एक साथ करवाने का सुझाव चुनाव आयोग को दिया है। लेकिन चुनाव आयोग ने लीगल डिफिकल्टी कहकर ऐसा करने से मना कर दिया। बंगाल में कोरोना से होने वाली मृत्यु दर टॉप तीन में पहुंच गई है। ऐसे में कई सवाल सिस्टम की मंशा पर खड़े होते हैं।
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