ग्राउंड रिपोर्ट : ललित कुमार सिंह
बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले को ध्यान में रखते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अडवाइजरी जारी करते हुए ‘दलित’ शब्द का प्रयोग न करने को कहा है। ये नसीहत सभी मीडिया संस्थानों के लिए थी। लेकिन सरकार के इस फैसले से दलित समाज में बेहद रोष देखने को मिला। लेकिन दलित शब्द का इतिहास बेहद पुराना है और दलित शब्द समाज द्वारा स्वीकारा हुआ है।
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धार्मिक शास्त्रों में दलितों को शुद्र और चंडाल के नाम से पुकारा गया है। ब्रिटिश राज में दलितों को अछूत कहा गया, लेकिन आधिकारिक कामो में ‘उदास वर्ग’ यानी अंग्रेजी में ‘डिप्रेस्सड क्लास’ का इस्तेमाल किया गया। जबकि भारतीय समाज में उन्हें अछूत कहा जाता रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस मानसिकता को बदलने के लिए दलितों को भगवान् की संतान ‘हरिजन’ नाम दिया।
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लेकिन दलित समाज ने इसका भरपूर विरोध किया और इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया। दलितों का तर्क था कि नाम बदलने से क्या होगा अगर समाज उन्हें उसी नज़रिए से देख रहा है। नाम बदलना एक तरह का पाखण्ड है। उसके बाद ‘दलित’ शब्द प्रचलित हुआ। दलित शब्द, दलित समाज के द्वारा अपने आप स्वीकारा गया शब्द है।
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किसी भी व्यक्ति ने उन्हें ये नाम नहीं दिया है। दलित शब्द का असल मतलब है, वो लोग जिन्हें रौंद दिया गया हो, कुचल दिया गया हो। ‘दलित’ शब्द से दलितों द्वारा अपनी पहचान वापस पाने के लिए किया गया संघर्ष दिखाई देता है। दलित शब्द उस संघर्ष को दिखता है जो इस समाज ने अपने उन अधिकारों को हासिल करने के लिए किया जिनसे उन्हें सदियों से वंचित रखा गया।
ईस्ट इंडिया कंपनी के आर्मी अफसर जे.जे. मोल्सवर्थ ने 1831 में एक मराठा-इंग्लिश डिक्शनरी में इस शब्द का इस्तेमाल किया था। इसके अलावा दलित उद्धारक महात्मा ज्योतिबा फुले ने इसका इस्तेमाल किया था और फिर ब्रिटिश सरकार ने इसका उल्लेख किया। 1972 में अनुसूचित समाज ने पहली बार अपना नामकरण किया।
उस समय के दलित नेता नामदेव धासल ने ‘दलित पैंथर’ नामक एक सेना की बुनियाद रखी। उस समय अमरीका में अश्वेत लोगो के साथ भेदभाव और हिंसा की जाती थी। ये देखते हुए वहां के अश्वेत लोगो ने इस पर अपना विरोध जताने के लिए और एक आक्रोश भरे रूप से इस भेदभाव का सामना करने के लिए ‘ब्लैक पैंथर’ नाम की एक पार्टी का गठन किया।
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पैंथर का मतलब होता है तेंदुआ। ब्लैक पैंथर का मकसद अमरीका में पुलिस द्वारा अश्वेत लोगो के साथ हो रहे अत्याचार का पुरज़ोर सामना करन था। जिन्होंने हथियारों का भी सहारा लिया। इसी पर विचार करते हुए नामदेव धासल ने दलित पैंथर को और मज़बूत किया और अन्याय को सहने की बजाय संघर्ष के रास्ते पर चलने का फैसला लिया।
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दलित पैंथर का नाम तभी से ज्यादा चलन में आया। पहले दलितों द्वारा आन्दोलन में न्याय की गुहार लगायी जाती थी, अपनी रोज़ी रोटी के लिए प्रार्थना की जाती थी। लेकिन 1972 में दलित पैंथर के आन्दोलन में ये तय हुआ कि दलित भी अमरीका के ‘ब्लैक पैंथर’ की तरह सडको पर घूमकर अपने हक की लडाई लड़ेंगे।
उन्होंने अपने खिलाफ होने वाले हर अत्याचार का सामना करने की ठान ली थी। 1972 में दलित इतिहास में एक नया मोड़ देखने को मिला था। उस समय से दलित शब्द काफी प्रचलित हुआ। अब सरकार द्वारा इस नाम पर रोक लगाना एक बेहद गंभीर मुद्दा है। सरकार इस कदम से दलितों पर अपने विचार थोपने की कोशिश कर रही है।
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