Loksabha Election 2024: सतना लोकसभा विंध्य की बहुत ही खास सीट है। सतना में मैहर और चित्रकूट जैसे धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हैं। सतना लोकसभा सीट भी उतनी ही ऐतिहासिक रही है। सतना चुनाव जीतने वाले आखिरी कांग्रेसी अर्जुन सिंह थे, उन्होंने 1991 में यह चुनाव जीता था। सतना से कांग्रेस को 2 बार बहुत बुरी हार का सामना करना पड़ा है। 1996 और 2009 के चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवार चौथे नंबर पर आए थे। आइये जानते इस बार कैसा है सतना का सियासी माहौल, और क्या हैं जनता के मुद्दे।
क्या है सतना के जातीय समीकरण
सतना लोकसभा में कुल 7 विधानसभाएं आती हैं, जिनमें से 5 भाजपा के कब्जे में है और 2 कांग्रेस के। सतना की 78 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। सतना में अनुसूचित जाति के मतदाता 17.9 फीसदी हैं और 14.3 प्रतिशत आदिवासी मतदाता हैं।
सतना के चुनाव में ओबीसी, विशेषकर कुर्मी और ब्राम्हण वोट निर्णायक रहे हैं। सतना में 10 प्रतिशत कुर्मी वोटर और 20 प्रतिशत ब्राम्हण वोटर हैं, लेकिन सतना की कहानी इतनी सरल नहीं है। अगर 1962 के चुनाव में शिव दत्त उपाध्याय का उदाहरण छोड़ दें तो उसके बाद कोई भी ब्राम्हण नहीं जीता है। सतना से 1996 से लगातार ओबीसी या कुर्मी प्रत्याशी ही जीतते आ रहे हैं।
कौन है आमने सामने
भाजपा ने अपने 2004 से जीतते आ रहे प्रत्याशी गणेश सिंह पर एक बार फिर से भरोसा जताया है। गणेश सिंह, अजय सिंह राहुल जैसे दिग्गजों को हरा चुके हैं। 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने गणेश सिंह को सतना से विधानसभा का चुनाव लड़ाया। इस चुनाव में गणेश सिंह, कांग्रेस के सिद्धार्थ सिंह 'डब्बू' से हार गए। इस हार ने ये तो स्पष्ट कर दिया की जनता गणेश सिंह से नाखुश है। हालांकि 6 महीने के भीतर ही भाजपा ने गणेश सिंह को फिर से जनता के सामने पेश कर दिया है।
गणेश सिंह की काट के तौर पर कांग्रेस ने वर्तमान सतना विधायक सिद्धार्थ सिंह डब्बू को उतारा है। सिद्धार्थ सिंह ने ही विधानसभा चुनाव में गणेश सिंह को हराया था। सिद्धार्थ सिंह के पिता सुखलाल कुशवाहा, 1996 में बसपा से सतना के सांसद बने थे। सुखलाल कुशवाहा ने 1996 के चुनाव में एक साथ 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों, अर्जुन सिंह और वीरेंद्र सकलेचा को हराया था।
इस लोकसभा में एक मोड़ और आ गया है। मैहर के पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी सतना से बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि नारायण त्रिपाठी लगभग हर पार्टी के सदस्य रह चुके हैं, और अपना विधानसभा का चुनाव भी हार चुके हैं। नारायण त्रिपाठी अगर भाजपा को बड़ा नुकसान नहीं भी पहुंचाते है तो भी, बीजेपी के ब्राम्हण वोटों पर थोड़ा डेन्ट तो करेंगे ही।
क्या हैं सतना की जनता के मुद्दे
सतना की जनता के पास यूं तो कई सुविधाएं हैं। सतना से देश भर के लिए ट्रेन हैं। सतना में मेडिकल कॉलेज है। सतना उन चुनिंदा शहरों में से है जिन्हे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है। इन सब के बाद भी सतना में कई ऐसी चीजें हैं जो होनी रह गई हैं।
सतना स्मार्ट सिटी का काम काफी धीमा है। अभी वाटर स्काडा, संतोषी माता तालाब, और एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्रों (आईसीसीसी) जैसी कुछ सुविधाएं ही चालू हो पाईं हैं। यहां तक कि स्मार्ट सिटी रैंकिंग में सतना देश भर में 55वें स्थान पर है, और इसके पूर्व सतना 79वें स्थान पर था।
सतना की सड़कों का हाल भी ठीक नहीं है, हल्की सी बारिश सतना के विकास के सारे दावों को धो देती है। सतना की सीवेज सिस्टम भी सही कार्य नहीं करता है, शहर की अधिकांश नालियां खुली हुई हैं।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत वाटर स्काडा (यह पाइपलाइन के माध्यम से लोगों के घरों में पानी पहुँचाने का हाइ-टेक सिस्टम है, इसमें सेंसर होते हैं जो टंकी भरने, लीकेज इत्यादि को सेंस करके नोटिफिकेशन देते हैं) भी आता है, लेकिन सतना में ये सही तरह से कार्य नहीं कर रहा है। आए दिन खबरें आती हैं की लोगों को प्रदूषित पानी की सप्लाई हो रही है, और दूषित जल से लोग बीमार भी पड़ गए हैं।
सतना में साफ सफाई की स्थिति बहुत ही बुरी है। सतना रेल्वे स्टेशन में प्लेटफॉर्म से बाहर आते ही, भयानक बदबू और गंदगी आपका स्वागत करती है। इससे भी बुरा है कि सतना में कभी इस बात को लेकर चर्चा और विरोध नहीं दिखा, मानो सतना की जनता के लिए यह स्थिति सामान्य हो। हाल के स्वच्छता सर्वेक्षण के नतीजों की मानें तो सतना 27 अंक फिसल कर 91वें पायदान पर पहुंच गया है। ये हालत एक स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के जिले की है, जिसमें बेहतर वेस्ट मैनेजमेंट और सीवेज मैनेजमेंट आता है।
सतना में प्रिज्म, मैहर सीमेंट, और बिड़ला जैसे कई सीमेंट उद्योग, और खदानें भी हैं। इन से शहर को नफे तो कई हैं लेकिन एक नुकसान है की इससे शहर का वातावरण बिगड़ता है। सतना का एयर क्वालिटी इंडेक्स 80 है, जो की बहुत अच्छा नहीं है। अक्टूबर 2023 में बिड़ला कंपनी पर 8.4 करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया था क्योंकि, कंपनी ने बिना पर्यवरणीय मंज़ूरी (Environment Clarence) लिए अतिरिक्त चूना पत्थर का उत्पादन किया था।
सतना की इन फैक्ट्रियों से छोड़ी जाने डस्ट ने यहां के लोगों का जीवन कठिन कर दिया है। इन फैक्ट्रियों से निकली डस्ट में आर्सेनिक, एल्यूमीनियम, कैडमियम, ज़िंक और आयरन जैसे प्रदूषक होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इस कारण से यहां के लोगों में दमा व सांस की अन्य शिकायतें आम हो गई है। आर्सेनिक के कारण कई लोगों को कैंसर तक की बीमारियां भी हुई हैं।
सीमेंट उद्योगों ने एक तो यहां के स्थानीय लोगों को बीमार किया और बदले में स्थायी रोजगार देने से भी मुंह फेर लिया। ग्राउंड रिपोर्ट को यहां के लोगों ने बताया कि, कम्पनी जमीन लेते वक्त उनसे वादा किया था की उनके परिवार जनों को नौकरी देंगे, और उद्योग लगने के बाद वे अपने वादे से मुकर गए। सतना के सीमेंट उद्योग ने यहां के आम निवासी को बदले में बीमारियां दी, लेकिन रोजगार देने से रह गए।
सतना में मतदान दूसरे चरण में यानी 26 अप्रैल को है, और जनादेश 4 जून को आना है। हालांकि सतना की जनता ने गणेश सिंह को अपना फैसला 2023 में ही सुनाया था, जिसे बीते अभी थोड़ा ही वक्त हुआ है। एक सांसद जो विधायक का चुनाव हार गया हो, उसे उसी सीट से कुछ समय बाद ही सांसद का टिकट देना जनादेश की तौहीन है या नहीं, ये लोकतांत्रिक चिंतन का विषय है।
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