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लाख के कीड़े: मानव सभ्यता के नन्हे हमसफर

झारखंड और छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश देश का तीसरा सबसे बड़ा लाख उत्पादक राज्य है। देश का 14 प्रतिशत लाख उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है।

By Chandrapratap Tiwari
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toy making

बुधनी का एक कारीगर लाख से बने जैविक रंग से खिलौने को रंगता हुआ Photograph: (Ground Report)

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कितना रोचक ख्याल है कि कुछ कीड़े जंगल के एक ख़ास पेड़ को अपना बसेरा चुनते हैं। वे इस पेड़ में ही अपना जीवन बिताते हैं और मर जाते हैं। उनके जीवन के परिणाम में इंसानी कौम को एक चीज मिलती है लाख। रेशम की तरह लाख के कीड़े भी अंततः अपनी उत्पत्ति में ही मर जाते हैं। लाख एक ऐसा वन उत्पाद है जो मानव सभ्यता की यात्रा में लगातार मौजूद रहा है। पहले जहां लाख से गहने, बर्तन और सजावट के सामान बनते थे वहीं अब इससे पेंट, एल्क्ट्रिक इंसुलेटर इत्यादि बन रहे हैं। आज भी भारत की 50 फीसदी आदिवासी घरों की आय का एक बड़ा जरिया लाख है। आइये इस लेख के जरिये जानते हैं लाख के बारे में और समझते हैं भारत में इसकी स्थिति। 

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क्या है लाख 

लाख एक खास तरह के कीड़े, स्केल कीट (लैसिफर लैका) होते हैं। ये कुछ चुनिंदा पेड़ों पर निश्चित समय पर अपना घर बनाते हैं, जिन्हें लाख का होस्ट ट्री कहा जाता है। इन पेड़ों पर ये कीड़े स्त्रावण करते हैं। जब यह स्त्रावण सूखता है तब इसे खुरच कर निकाला जाता है जिसे आम बोलचाल में लाख या रेसिन कहा जाता है।  

केवल 1 किलोग्राम लाख राल का उत्पादन करने के लिए लगभग 3 लाख नन्हे कीड़े अपनी जान गंवा देते हैं। दुनिया भर में इन कीड़ों की 2 हजार से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हे सम्मिलित रूप से लाख का कीड़ा कहा जाता है। ये कीड़े बहुत ही महीन आकार के होते हैं। लाख का नर कीड़ा (Laccifer lacca) लगभग 1.2 से 1.5 मिमी लंबा होता है, जबकि मादा कीट (Kerria lacca) बड़ी होती है, जो 4 से 5 मिमी के माप की होती है।

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यूं तो लाख का उत्पादन मादा कीड़ों के स्त्रावण से ही होता है, लेकिन ये प्रक्रिया बिना नर कीड़ों के अधूरी होती है। आमतौर पर मादा पेड़ों पे चिपक जाती है और वहां से अपने जीवन काल में दोबारा नहीं हिलती। इस दौरान वह लाख का गाढ़ा स्रावण करती है। इस प्रक्रिया में मादा अपनी आंख पेअर और पंख खो देती है। वो इस स्त्रावण के अंदर ही अपने अंडे डालती है। इन अंडों से निकलने वाले कीड़े इसी स्त्रावण से पोषण पाते हैं। 

Life Cycle of Lac Insect
लाख के कीड़े का जीवन चक्र  Photograph: (Ground Report)

 

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जब ये कीड़े बड़े हो जाते हैं तो लाख के इस आवरण से बाहर निकलते हैं। इनमें से सामान्यतः लाल रंग के दिखने वाले नर कीड़े भोजन लेना बंद कर चुके होते हैं क्यूंकि वयस्क होने तक वे मुंह खो चुके होते हैं। बाहर निकलने के बाद नर कीड़े वापस निषेचन की प्रक्रिया में जुट जाते हैं और यह चक्र चलता रहता है। फिर एक दिन एक आदिवासी युवती जंगल जाती है और पलाश या किसी अन्य पेड़ में चिपकी लाख को निकाल अपने घर लाती है और इनसे कई तरह की चीजें बनाती है। 

लाख की उपयोगिता 

लाख के कई घटक होते हैं जिनसे कई तरह के पदार्थ निकलते हैं। उदाहरण के तौर पर लाख में सर्वाधिक रेजिन 68 से 90 फीसदी तक होता है जो की इसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है। इसके अलावा लाख में 2 से 10 फीसदी तक रंग , 5 से 6 फीसदी मोम, एल्ब्यूमिनस पदार्थ, और पानी होता है। इन घटकों का संतुलन लाख की गुणवत्ता और उसकी विभिन्न उत्पादों में उपयोगिता को प्रभावित करता है।

लाख का उपयोग आज विभिन्न उद्योगों में किया जाता है। इसे खिलौने, गहने, और सजावटी वस्तुओं के बनाने में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, ऑइल और पेंट बनाने के लिए भी लाख का इस्तेमाल होता है, क्योंकि यह एक अच्छा चिपकने वाला और सुरक्षा प्रदान करने वाला उपाय है। इन सब के अतिरिक्त लाख का उपयोग नेल पॉलिश, शीशे के पिछले हिस्से को रंगने इत्यादि में भी किया जाता है। 

मध्य प्रदेश में लाख की खेती 

अगर मध्यप्रदेश के आलोक में देखा जाए तो यहां लाख की दो प्रजातियां पाई जाती हैं, रंगिनी और कुसुमी। रंगीनी प्रजाति की खेती मुख्य रूप से कुसुम के अलावा अन्य मेज़बानों पर की जाती है। मध्य प्रदेश में लाख उत्पादन का लगभग 90 फीसदी हिस्सा इसी प्रजाति का होता है। प्रदेश में इसकी मुख्यतः दो फ़सलें होती हैं। इन्हें कातकी और बैशाखी फ़सल कहा जाता है। कातकी को आम तौर पर कार्तिक यानी अक्टूबर के महीने में और बैशाखी को मई-जून के दौरान निकाला जाता है। 

दूसरी ओर, कुसुमी प्रजाति मुख्य रूप से कुसुम के पेड़ों पर उगाई जाती है और कुल लाख उत्पादन में लगभग 10 फीसदी का योगदान देती है। यह प्रजाति अपनी बेहतरीन गुणवत्ता के लिए मशहूर है। कुसुमी जेठवी और अगहनी नामक दो फ़सलें पैदा करती है। कुसुमी प्रजाति को जेठवी फ़सल के लिए जून के आसपास और अगहनी फ़सल के लिए दिसंबर से फ़रवरी के दौरान निकाला जाता है। 

कुल मिलाकर, इन प्रजातियों का जीवन चक्र लगभग छह महीने का होता है। प्रदेश में प्राकृतिक और वैज्ञानिक दोनों तरह की खेती के तरीकों का प्रयोग किया जाता है। इनमें न्यूनतम रासायनिक इनपुट वाली पर्यावरण के अनुकूल पारंपरिक प्रथाओं से लेकर मेजबान पौधे के प्रसार, कीट प्रबंधन और नियंत्रित टीकाकरण वाली आधुनिक तकनीकें शामिल हैं।

मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा लाख उत्पादक राज्य है। मध्य प्रदेश में देश के 14 फीसदी लाख का उत्पादन होता है। अगर 2021 में हुए एक शोध को आधार माना जाए तो मध्य प्रदेश में सिवनी में सर्वाधिक, सालाना 900 मीट्रिक टन लाख उत्पादित होता है। सिवनी के बाद बालाघाट, मंडला, छिंदवाड़ा, डिंडौरी, नरसिंहपुर, और नर्मदापुरम में लाख का सर्वाधिक उत्पादन होता है। इन जिलों में राज्य का कुल 80 फीसदी लाख उत्पादित होता है। 

लाख के कीड़ों पर प्रमुख खतरे 

हालांकि लाख का उत्पादन इतना सहज नहीं है जितना प्रतीत होता है। इस पर कई प्राकृतिक, जलवायविक खतरे पैदा कर सकते हैं। एन्टमोलॉजिस्ट इसे मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत करते हैं, कीट और गैर-कीट खतरे। कीट खतरों में वे कीड़े आते हैं जो जो शिकारी और परजीवी के रूप में लाख के इन कीड़ों के जीवन चक्र में बाधा डालते हैं। 

इनमें से सफेद पतंगा (Eublemma amabilis) और काले-धूसर पतंगे (Holococera pulverea) प्रमुख हैं जो लाख के कीटों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये पतंगे लाख के उत्पादन में लगभग 35 फीसदी की कमी ला सकते हैं। इसके अलावा, चेल्सिड्स (Chalcids) जैसे छोटे पंख वाले कीड़े अपने अंडे लाख के कीड़ों के साथ रखते हैं। इन अंडों से निकले कीड़े लाख के कीड़ों को खा जाते हैं और तकरीबन 5 से 10 फीसदी लाख के कीड़ों की मृत्यु की वजह बन सकते हैं। 

दूसरी ओर, नॉन-कीट दुश्मनों में गिलहरियां, बंदर, पक्षी, और चूहे शामिल होते हैं, जो लाख को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, अत्यधिक गर्मी, ठंड, भारी बारिश, या तूफान जैसे पर्यावरणीय कारक भी लाख उत्पादकों के लिए चुनौती बने रहते हैं। अगर लाख पर पढ़ने वाले मौसमी घटनाओं को देखा जाए तो लाख की तकरीबन 50 फीसदी फसल खराब मौसम की वजह से नष्ट हो जाती है। इन सब के अतिरिक्त लगातार हो रहा निर्वनीकरण लाख उत्पादन की राह में सबसे बड़ी चुनौती है। 

लाख के उत्पादन में देखी जा रही लगातार गिरावट 

भारत के लाख उत्पादन में पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। 2007-08 से 2011-12 के दौरान औसत उत्पादन लगभग 16,246 टन दर्ज किया गया, आजादी के बाद 1950 के दशक के मध्य में भारत में लाख का सालाना उत्पादन लगभग 50,000 टन हुआ करता था। लेकिन यह आंकड़ा 2007-8 से 2010-11 के बीच सिमट कर मात्र 16,246 टन रह गया है। वहीं वर्ष 2007-12  के दौरान मध्य प्रदेश में भारत का कुल 13.66 फीसदी लाख उत्पादित हुआ था  जो कि 2012-17 के दौरान 3.20 फीसदी गिर गया। 

lac export
भारत से लाख का निर्यात  Photograph: (Ministry of commerce and industries )

 

चूंकि भारत में लाख उत्पादन के हालिया आंकड़ें सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर उपलबब्ध नहीं इसलिए हम इसे भारत के कुल आयात के जरिये समझने का प्रयास करेंगे। व्यापार एवं वाणिज्य मंत्रालय द्वारा संसद में दिए गए जवाब से पता लगता है कि वर्ष 2004 से भारत का लाख का आयात लगातार कम हुआ है। वहीं हाल के वर्षों में देखा जाए तो जहां वर्ष 2021-22 में भारत का कुल लाख आयात 105 टन था वह वर्ष 2023-24 में घटकर 51 टन यानी तकरीबन आधा हो गया है। 

जहां एक ओर पिछले कुछ दशकों में लगातार लाख का उत्पादन सीमित हुआ है, वहीं भारत भर में प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता जा रहा है। यह बदलाव अर्थशास्त्र का सुविख्यात ‘ग्रेशम का नियम’ याद दिलाता है। अपने इस नियम में ग्रेशम में कहते हैं कि ‘खोटा सिक्का अच्छे सिक्के को बाजार से बाहर कर सकता है, लेकिन अच्छा सिक्का खोटे सिक्के को नहीं।’ यह नियम लाख के मामले में सटीक बैठता है। लाख जो कि एक बायोडिग्रेडेबल और पूर्णतः प्राकृतिक उत्पाद है आज उसकी जगह प्लास्टिक लेता है। यह प्लास्टिक, पर्यावरण के  लिए नए संकट खड़े कर जा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ही लाख के उत्पादन को प्रभावित कर रहा है। 

लाख जो कि एक ‘ईको फ्रेडंली’ उत्पाद है आज तिहरी मार झेल रहा है। एक ओर जहां लाख का उत्पादन दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है वहीं मौसमी दुष्प्रभाव की वजह से लाख की बची खुची संभावना भी गर्त में जा रही है। इन सब के अतरिक्त प्लास्टिक जैसे उत्पाद लाख के बाजार में सेंध लगाते जा रहे हैं।

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