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वन क्षेत्र घटने पर जागा एमपी, गुना में 1435 बीघा वनभूमि से हटा कब्ज़ा

मध्य प्रदेश के गुना जिले में साल 2021 की वन स्थिति रिपोर्ट में 1327 वर्ग किमी वन क्षेत्र था जबकि 2023 की रिपोर्ट में यह घटकर 1275 वर्ग किमी ही रह गया। इसको देखते हुए वन विभाग अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई में जुट गया है।

By Manvendra Singh Yadav
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Forests of Madhya Pradesh

Representational Image: (Ground Report)

गुरुवार 16 जनवरी को मध्य प्रदेश के गुना जिले की चचौड़ा तहसील में वन विभाग ने 900 बीघा वन भूमि से अवैध कब्ज़ा हटाने की कार्रवाई की। वन विभाग की इस ज़मीन पर स्थानीय लोगों ने खेती करना शुरू कर दिया था। 

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अवैध कब्ज़ा हटाने के लिए वन विभाग 60 जेसीबी के साथ 400 कर्मचारियों को लेकर पहुंचा था जिसमें अधिकारी समेत पुलिस विभाग के लोग भी शामिल थे। चचौड़ा में वन विभाग ने कब्ज़ाई जमीन पर जेसीबी चलवाई और बड़े- बड़े गड्ढे कर दिये जिससे कि स्थानीय लोग वापस आकर फसल न बो पाएंं। चचौड़ा में वन विभाग के इस कदम पर दैनिक भास्कर ने लिखा कि बीते कुछ महीनों में ये 13वीं बड़ी कार्रवाई है। जिसमें अब तक वन विभाग ने कुल 1435 बीघा ज़मीन अवैध कब्ज़े से मुक्त करवा ली है। 

कुल कितना वन क्षेत्र है?

दिसम्बर माह में आई वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की भारत वन स्थिति रिपोर्ट में कुल (वन एवं पेड़ों) के द्वारा कवर किया गया क्षेत्रफल (एरिया) 8 लाख 27 हजार वर्ग किमी बताया गया है। जो कि भारत के कुल क्षेत्रफल का 25 प्रतिशत है। वहीं मध्य प्रदेश 77 हजार वर्ग किमी के साथ फाॅरेस्ट कवर के मामले में राज्यों में पहले स्थान पर है। मध्य प्रदेश के बाद सूची में अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं। 

कितनी वन भूमि कब्ज़े से ग्रसित है ? 

वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को लेकर राज्य सभा सांसद नरेश बंसल सरकार से सवाल पूछते हैं। जिसमें बंसल राज्यवार आंकड़े मांगते हैं। तब इस पर सरकार की ओर से वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री रहे अश्विनी कुमार चौबे लिखित में उत्तर देते हैं। जिस उत्तर में राज्यवार आंकड़ें होते हैं जो बताता है कि मध्य प्रदेश में कुल 541 वर्ग किमी (54173 हेक्टेयर) वन भूमि अतिक्रमण या कब्ज़े से जूझ रही है। 

पहले ही भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 में पाया गया था कि पिछले साल (रिपोर्ट 2021) के मुकाबले मध्य प्रदेश में 612 वर्ग किमी वन क्षेत्र की कमी आयी है। जिस प्रकार से मध्य प्रदेश का फाॅरेस्ट एरिया में कमी देखी गई। इसी तरह गुना में साल 2021 की रिपोर्ट में 1327 वर्ग किमी में फाॅरेस्ट एरिया था जबकि 2023 की रिपोर्ट में घटकर 1275 वर्ग किमी ही रह गया है। जिसके बाद गुना के वन विभाग ने वन भूमि के कब्ज़ों को हटाना शुरू कर दिया है।

वन भूमि पर क्यों किया जा रहा कब्ज़ा?

वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन दो चीजों को इसका मुख्य कारण बताती है। पहला जनसंख्या दबाव और दूसरा गरीबी।  जब जनसंख्या बढ़ती है तो उनके निवास स्थानों के लिए अधिक भूमि चाहिए होती है। वहीं बढ़े हुए लोगों के लिए अनाज उगाना होता है जिससे वनभूमि पर खेती शुरू कर दी जाती है। फिर लोगों को जीवनयापन के लिए काम भी चाहिए होता है इसलिए लकड़ी (इमारती और जलाऊ) का उपयोग बढ़ जाता है और यह सिलसिला एक बार शुरू होने पर लगातार चलता रहता है। वनों के क्षरण के लिए संस्था वन विभाग की अक्षमता को भी ज़िम्मेदार मानती है।

वन भूमि से कब्जा हटाना क्यों जरूरी है? 

वन भूमि से कब्ज़ा हटाना इसलिए जरूरी है ताकि हम अपने जंगलों को बचा सकें। जंगलों को बंचाने पर विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकाॅनामिक फाॅरम) बताता है कि लगभग 1.6 बिलियन (160 करोड़) लोग यानी की भारत देश की आबादी से अधिक लोग अपनी जीविका के लिए इन्हीं जंगलों पर निर्भर करते हैं। तो वहीं 80 प्रतिशत स्थलीय प्रजातियां जैसे कीड़े, मकौड़े, जानवर आदि भी जंगलों पर ही आश्रित हैं। और जंगल सबसे जरूरी इसलिए भी हैं ताकि जलवायु परिवर्तन से निपटा जा सके।  

वनों को बचाने के लिए क्या कहते हैं नियम ?

वनभूमि को बचाने के लिए इंडियन फाॅरेस्ट एक्ट 1927 के सेक्शन 66 में प्रावधान है कि यदि कोई सरकारी जंगल की भूमि पर अतिक्रमण करता है तो पुलिस बिना किसी वॉरंट उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है। और यह अपराध गैर ज़मानती है। 

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