/ground-report/media/media_files/YPXDHWVg6uDs2pRozd73.jpg)
पूरे विश्व में लगभग 24 करोड़ बच्चे का स्कूल जलवायु परिवर्तन के खतरों की वजह बाधित हुआ है।
जलवायु परिवर्तन भारत में बच्चों का भविष्य अंधेरे में धकेल रहा है। साल 2024 में इसके चलते भारत के लगभग साढ़े 5 करोड़ बच्चों का स्कूल बाधित हुआ है। भारत में लू की चपेट से सबसे अधिक बच्चे प्रभावित हुए हैं। पूरे विश्व में लगभग 24 करोड़ बच्चे का स्कूल जलवायु परिवर्तन के खतरों की वजह बाधित हुआ है। ये पूर्व प्राथमिक और उत्तर माध्यमिक स्तर के बच्चे हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक औसत के अनुसार 7 में 1 बच्चा स्कूली शिक्षा में बाधाओं का सामना कर रहा है।
हाल ही में आई यूनिसेफ की रिपोर्ट (UNICEF) के मुताबिक 85 देशों में स्कूली शिक्षा बाधित हुई है। जबकि 23 देशों में एक बार से अधिक स्कूलों को बंद करना पड़ा है। तो वहीं 20 देशों में सभी स्कूलों को बंद करना पड़ा है। वैश्विक स्तर पर प्रभावित बच्चों को देखें तो 74 प्रतिशत बच्चे निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देश से आते हैं। बच्चों का चिल्ड्रन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में खतरे का औसत 10 में से 7 है।
दक्षिण एशिया सबसे अधिक प्रभावित हिस्सा है जहां 12.8 करोड़ बच्चों का स्कूल जलवायु परिवर्तन के खतरों से प्रभावित हुआ है। इसके बाद पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में 5 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा अफ्रीका में 10.7 करोड़ बच्चे पहले ही स्कूल से बाहर थे और अब 2 करोड़ अतिरिक्त बच्चों पर स्कूल छोड़ने का खतरा मंडरा रहा है।
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में बच्चों की स्कूली शिक्षा में बाधा का कारण लू रही है। जबकि चीन में उष्णकटिबंधीय चक्रवात और नेपाल में बाढ़ सबसे बड़ा कारण उभरकर सामने आया है। अगर आंकड़ों की बात करें तो भारत में करीब 5.5 करोड़, पाकिस्तान में 2.5 करोड़, चीन में 2 करोड़, बांग्लादेश में 3.5 करोड़, अफगानिस्तान में 1 करोड़ और नेपाल में 23 हजार बच्चों की स्कूली शिक्षा में कठिनाईयों के पीछे जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा कारण रहा है।
साल 2024 में मध्य प्रदेश में 1 मई से 15 जून तक गर्मियों की छुट्टी की वजह से स्कूल बंद रखे गए। इसके बाद 15 जून के आस पास पारा 40 डिग्री रहा तो कक्षा 1 से 5 तक के स्कूलों को 30 जून तक के लिए फिर बंद कर दिया गया था। जबकि 6 से 8 के बच्चों का स्कूल सुबह के समय शुरू किया गया था। चूंकि नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क 2023 के अनुसार साल में स्कूलों द्वारा सभी छुट्टियों को हटाकर बच्चों को 220 कक्षाएं पढ़ाना अनिवार्य होता है। इस प्रकार मध्य प्रदेश के सभी प्राथमिक विद्यालय 20 दिन ज्यादा बंद रहे और लू की वजह से बच्चों की स्कूली शिक्षा बाधित हुई थी।
2024 में जलवायु परिवर्तन के कारकों में सबसे अधिक प्रभावित करने वाला कारक लू है जिसने कुल 17 करोड़ बच्चों को प्रभावित किया है। जबकि अप्रैल में सबसे अधिक संख्या में स्कूल बंद किए गए थे। और सितम्बर के महीने में यागी तूफान के चलते बार- बार किसी एक माह में सबसे ज्यादावार स्कूल बंद करने पड़े थे।
इसी रिपोर्ट में यूनिसेफ के शिक्षा एवं किशोर विकास निदेशक प्रिया रेबेलो ब्रिट्टो कहते हैं
दुनिया दो परस्पर चुनौतियों से जूझ रही है- जलवायु परिवर्तन और शैक्षिक व्यवधान। जो दोनों परस्पर एक- दूसरे को मजबूत करते हैं। दोनों पर एक साथ ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
भारत जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील है। यूनिसेफ चिल्ड्रन क्लाइमेंट इंडेक्स 2021 में भारत 163 देशों की सूची में 26 वें स्थान पर है। बाढ़, भूस्खलन और साइक्लोन जैसे तेजी से आने वाले खतरे स्कूलों को बार- बार नुकसान पहुंचा रहे हैं। वहीं तेज धूप, वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरा बने हुए हैं जिससे स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति और सीखना दोनों कम हुआ है।
कैसे निपटा जाए?
इस समस्या से निपटने के लिए यूनिसेफ के सहयोग से सरकार ने जलवायु परिवर्तन को शिक्षा के पाठ्यक्रम शामिल करना शुरू कर दिया है। साथ ही राज्यों के पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तक सामग्री और शिक्षण सीखने के तरीकों को लेकर एक राष्ट्रीय दिशा निर्देश जारी किया है।
प्रदेश स्तर पर यूनिसेफ 12 राज्यों में व्यापक स्कूल सुरक्षा प्रोग्राम चलाने के लिए काम कर रहा है। ये कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन के तत्वों को एकत्रित करते हैं। सुरक्षित स्कूलों और सीखने के माहौल पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। और बच्चों को परिवर्तन के एजेंट के रूप में सशक्त बनाते हैं। अकेले 2024 में इन कार्यक्रमों के तहत 1लाख 21 हजार शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है। जलवायु परिवर्तन की शिक्षा में शिक्षकों की क्षमता को बढ़ाने के लिए यूनिसेफ के सहयोग से एक राष्ट्रीय प्रशिक्षण माॅड्यूल को 2025 के मार्च तक शुरू किया जाएगा।
भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट का आर्थिक सहयोग करें।
यह भी पढ़ें
पातालकोट: भारिया जनजाति के पारंपरिक घरों की जगह ले रहे हैं जनमन आवास
‘अस्थमा है दादी को…’: दिल्ली में वायु प्रदूषण से मजदूर वर्ग सबसे ज़्यादा पीड़ित
झाबुआ पॉवर प्लांट, जिसके चलते किसान को मज़दूर बनना पड़ गया
कचरे से बिजली बनाने वाले संयंत्र 'हरित समाधान' या गाढ़ी कमाई का ज़रिया?
पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी ।