क्यों आदित्य ठाकरे के लिए महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना इतना आसान नहीं है?
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न्यूज़ डेस्क। ग्राउंड रिपोर्ट
महाराष्ट्र में सियासी सरगर्मी तेज़ हो गई है। इस साल के अंत में महाराष्ट्र एक बार फिर नई सरकार चुनने को तैयार होगा। फिलहाल राज्य में भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में काम कर रही है। विपक्षी मोर्चा कांग्रेस-एनसीपी भी चुनाव की तैयारी में जुटा है, लेकिन इस समय एनसीपी के खेमें में खलबली मची हुई है। क्योंकि भाजपा ने दावा किया की कई एनसीपी विधायक उनके संपर्क में हैं। मुम्बई एनसीपी अध्यक्ष ने हाल ही में शिवसेना का दामन थाम लिया है। तो अगर मौजूदा स्थिति देखी जाए तो फिलहाल महाराष्ट्र में एनडीए का पलड़ा भारी दिख रहा है और शिवसेना-भाजपा नेता भी जीत को लेकर आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं। लेकिन एनडीए में सबकुछ ठीक है यह भी नहीं कहा जा सकता, हम बताते हैं क्यों?

शिवसेना में इस बार उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की मांग ज़ोरों पर है। कई वरिष्ठ शिवसेना नेता खुले तौर पर अपनी इच्छा ज़ाहिर कर चुके हैं। आदित्य ठाकरे फिलहाल शिवसेना की यूथ विंग के अध्यक्ष हैं। लेकिन शिवसेना की राजनीति में वे इस समय मुख्य भूमिका में नज़र आ रहे हैं। वो खुद भी कह चुके हैं कि अगर ज़रुरत पड़ी तो वो मैदान में भी उतरेंगे। आप को यहां बता दें कि शिवसेना में कभी ठाकरे परिवार के किसी सद्स्य ने सीधे तौर पर कोई चुनाव नहीं लड़ा जबकी बाल ठाकरे के समय ही शिवसेना महाराष्ट्र में सरकार बनाने की स्थिति में थी। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने भी परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चुनाव लड़ने से खुद को दूर रखा। लेकिन इस बार पार्टी के सुर बदले हुए हैं। इसमें कोई शक नहीं की शिवसेना महाराष्ट्र में अपना जनाधार बढ़ाने की पुरज़ोर कोशिश कर रही है। फिलहाल महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के जूनियर पार्टनर के रुप में काम कर रही है। ऐसे में शिवसेना के लिए अपनी मर्ज़ी का मुख्यमंत्री बनवा पाना इतना आसान नहीं होगा।

भाजपा कई बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। बतौर मुख्यमंत्री फडणवीस का कार्यकाल काफी साफ-सुथरा रहा है। ऐसे में उन्हे हटाने की कोई वजह मौजूद नहीं दिखती।लेकिन अगर चुनावों के बाद नतीजों में शिवसेना भाजपा से ज़्यादा सीट लाने में कामयाब होती है, तो आदित्य ठाकरे की राह आसान हो सकती है।
पिछले कुछ सालों में शिवसेना कई विषयों पर नर्म होती दिखाई दी है। कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे वाली पार्टी में समावेशी विचारों पर काफी ध्यान दिया गया। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में शिवसेना ने कई मोर्चे पर अपने गठबंधन साथी का विरोध भी किया। इससे इतना साफ है कि शिवसेना अब जूनियर पार्टनर नहीं बल्कि सीनियर पार्टनर बनकर माहाराष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत बनने का सपना संजो रही है।