Radhika Bansal & Lalit Kumar Singh | Ground Report
इलाहबाद हाई कोर्ट(High Court) ने अलीगढ़(Aligarh) में हुए दलित युवती के बलात्कार के अभियुक्त की उम्रकैद की सज़ा को रद्द कर दिया. उच्च न्यायालय ने ये कहते हुए फैसला लिया कि इसका कोई सबूत नहीं है कि दोषी ने बलात्कार सिर्फ पीड़िता के दलित होने की वजह से किया है. यह मामले 15 साल पुराना था और दलित युवती उस समय नौ साल की थी. न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी और पंकज नकवी की खंडपीठ ने इस फैसले में धाराएं कम कर दी.
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इस बेंच ने आईपीसी धारा 376 (बलात्कार) और एससी / एसटी एक्ट की धारा 3(2) (वी) हटाकर अब केवल आईपीसी 376 के तहत अभियुक्त को दोषी ठहराया. अदालत ने 5 जून को दिए एक आदेश में कहा, “वह(दोषी) किसी अन्य मामले में हिरासत में नहीं लिया जाएगा”. दोषी, जो अपराध के समय 20 साल का था, 12 साल से अधिक समय तक, 6 फरवरी, 2008 से जेल में है.
अलीगढ़ के सासनी गेट पुलिस स्टेशन में इस मामले में दर्ज एफआईआर के अनुसार, नौ साल की पीड़िता 16 जनवरी, 2005 को अपने इलाके में खेल रही थी. जब आरोपी ने उसे लालच दिया और अपने खाली घर में बलात्कार किया. सज़ा के खिलाफ अपील करते हुए, आरोपी के वकील ने दावा किया कि ऐसा कहीं रिकॉर्ड नहीं है कि आरोपी ने केवल पीड़िता के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के होने की वजह से बलात्कार किया. यह मामला एक फास्ट ट्रैक ट्रायल कोर्ट द्वारा अप्रैल 15, 2009 के फैसले से संबंधित है, जिसमें आरोपी इरशाद को नाबालिग से बलात्कार का दोषी ठहराया गया था और उम्रकैद की सजा दी गई थी. इसे SC/ST की धारा 3 (2) (V) के तहत आरोपी ठहराया गया था.
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जबकि राज्य के वकील ने तर्क देते हुए कहा कि क्यूंकि आरोपी उस इलाके का निवासी था, इसलिए “अत्यधिक संभावना” थी कि वह पीड़िता की जाति जानता था.
एससी/एसटी एक्ट के तहत दोष सिद्ध होने पर सवाल पर विचार करते हुए अदालत ने कहा, “वर्तमान मामले में, पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए ऐसा कोई सबूत नहीं है जो साबित करता हो कि दोषी ने पीड़िता की जाति की वजह से इस घटना को अंजाम दिया हो”. और क्योंकि आरोपी का पीड़िता के साथ कोई पूर्व परिचित नहीं था”. एससी/एसटी एक्ट के तहत दोष सिद्ध करते हुए अदालत ने खमन सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया है.
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