कहते हैं सच बोलने के लिए क़ीमत चुकानी पड़ती है । आज उसी व्यक्ति की पुण्यतिथि है जिसे सच बोलने के चलते मार डाला गया था । सफ़दर हाशमी (Safdar Hashmi) एक नाटककार, निर्देशक, गीतकार और कलाविद थे । वो समाज में दबे-कुचले और शोषित लोगों की आवाज़ बना करते थे। वो सत्ता में बैठे लोगों को जगाने और उनसे तीखे सवाल करने के महारथी थे । वो अपने नाटकों के माध्यम से समाज को विरोध करने का एक ऐसा तरीक़ा सिखा गए जो आज भी याद किया जाता है । उन्होंने मुखालफ़त के लोकतांत्रिक लेकिन असरदार तरीके से लोगों को वाकिफ़ कराया। उसी सफदर हाशमी को भरी सड़क पर मार ड़ाला गया ।
उसी सफदर हाशमी (Safdar Hashmi ) की आज पुण्यतिथि है । 12 अप्रैल 1954 को पैदा हुए और 2 जनवरी 1989 में एक नाटक करते वक़्त मौत के धाट उतार दिया गया था । भारत के थिएटर इतिहास में जिस शख्स का रुतबा ध्रुव तारे जैसा है, उसी सफ़दर हाशमी को महज़ 34 बरस की उम्र मे ही मार डाला गया था । सफ़दर हाशमी ने बंगाल सरकार में इंफॉर्मेशन ऑफिसर के पद पर काम किया था। लेकिन 1984 में नौकरी छोड़ वह राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्होंने नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से आम लोगों की आवाज़ बुलंद करने का उद्देश्य बना लिया।

बात सन 1989 की है । सफ़दर गाज़ियाबाद में जन नाट्य मंच (जनम), सीपीआई (एम) के उम्मीदवार रामानंद झा के समर्थन में नुक्कड़ नाटक कर रहा थे । गाज़ियाबाद के झंडापुर में आंबेडकर पार्क के नज़दीक सड़क पर नाटक का मंचन हो रहा था। तभी मुकेश शर्मा वहां पर आ पहुंचते हैं । मुकेश शर्मा कांग्रेस पार्टी से उम्मीदवार थे । शर्मा सफ़दर हाशमी से प्ले रोक कर रास्ता देने को कहते हैं मगर हाशमी शर्मा से कहते हैं कि वो कुछ देर रुक जाए या फिर किसी और रास्ते से निकल जाए । शर्मा को इस बात पर ग़ुस्सा आ जाता है और वो उन लोगों ने नाटक-मंडली पर रॉड और अन्य हथियारों से हमला कर देता है । सफ़दर को गंभीर चोटें आती हैं और उन्हें सीटू (CITU) ऑफिस ले जाया जाता है । शर्मा और उसके गुंडे वहां भी घुस आए और दोबारा उन्हें मारते हैं । दूसरे दिन सुबह, तकरीबन 10 बजे, सफ़दर हाशमी दुनिया को अलविदा कह देते हैं ।

सफ़दर हाशमी अपने स्कूली दिनों में ही मार्क्सवाद की तरफ आकर्षित हो गए थे। सफ़दर हाशमी एक संपन्न परिवार से थे, उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य से एमए किया था । सेंट स्टीफ़ेंस में पढ़ाई के दौरान ही उनका जुड़ाव फेडरेशन ऑफ इंडिया की सांस्कृतिक यूनिट और इप्टा से रहा। हाशमी जन नाट्य मंच (Jana Natya Manch) के संस्थापक सदस्य थे। यह संगठन 1973 में इप्टा से अलग होकर बना, सीटू जैसे मजदूर संगठनों के साथ जनम का अभिन्न जुड़ाव रहा। 1975 में आपातकाल के लागू होने के बाद सफदर जनम के साथ नुक्कड़ नाटक करते रहे. जन नाट्य मंच ने छात्रों, महिलाओं और किसानों के आंदोलनो में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई । सफ़दर हाशमी (Safdar Hashmi) के कुछ मशहूर नाटकों में गांव से शहर तक, हत्यारे और अपहरण भाईचारे का, तीन करोड़, औरत और डीटीसी की धांधली शामिल हैं।
सफ़दर की हत्या करने वालों को सजा दिलाने के लिए सफ़दर के परिवार और उनके दोस्तों को 14 साल का लंबा संघर्ष करना पड़ा था। सफदर हाशमी और मजदूर राम बहादुर की हत्या के जुर्म में कांग्रेसी नेता मुकेश शर्मा और उसके नौ साथियों को आजीवन कारावास और 25-25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई थी । सफ़दर के अंतिम संस्कार में 15 हजार से ज्यादा लोग सड़कों पर उतर आए थे। सफ़दर हाशमी की मां क़मर हाशमी ने अपनी किताब, ‘दी फिफ्थ फ्लेम: दी स्टोरी ऑफ़ सफ़दर हाशमी’ में लिखा कि, “कॉमरेड सफ़दर, हम आपका मातम नहीं करते, हम आपकी याद का जश्न मनाते हैं।”