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मशरूम की खेती से रोजगार सृजन करती ग्रामीण महिलाएं

मशरूम की खेती:आत्मनिर्भर भारत अभियान की चर्चा हो रही है ताकि लोग न केवल स्वयं रोजगार सृजन कर सकें बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे सकें।

By Charkha Feature
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सामान्य रुप से खेती-बाड़ी में लोग आलू, टमाटर, गेंहू और अन्य मौसमी फलों और सब्जियों को उगाने का काम करते हैं, मगर मशरूम की खेती एक ऐसा निवेश है, जहां पहले खुद की पूंजी लगती है लेकिन इसका लाभ पूरे साल मिलता रहता है।

केंद्र और राज्य सरकार की ओर से सभी लोकल को वोकल बनाने पर बल दिया जा रहा है। साथ ही हर तरफ आत्मनिर्भर भारत अभियान की चर्चा हो रही है ताकि लोग न केवल स्वयं रोजगार सृजन कर सकें बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे सकें। इसके लिए महिलाओं को भी अधिक से अधिक जोड़ने पर बल दिया जा रहा है। ताकि देश की आधी आबादी भी रोजगार से जुड़ कर देश के विकास में अपना योगदान दे सके। 

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दरअसल समय-समय पर परिस्थिति ऐसे कई अवसर भी देती है, जिससे लोग जिंदगी को संवारने का काम कर सकते हैं। महिलाओं के लिए एक बेहतरीन परिस्थिति का मिलना भी एक बहुत बड़ी बात होती है क्योंकि महिलाओं को अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। हालांकि कुछ महिलाओं ने अवसर मिलने पर उसे रोजगार में बदलकर अपनी जीविका चलाने का काम भी किया है और अब लाखों कमाने के साथ-साथ अन्य महिलाओं को भी रोजगार प्रदान कर रही हैं।

सामान्य रुप से खेती-बाड़ी में लोग आलू, टमाटर, गेंहू और अन्य मौसमी फलों और सब्जियों को उगाने का काम करते हैं, मगर मशरूम की खेती एक ऐसा निवेश है, जहां पहले खुद की पूंजी लगती है लेकिन इसका लाभ पूरे साल मिलता रहता है। बिहार के अलग-अलग जिलों में मशरूम की खेती कर महिलाओं ने न सिर्फ खुद को सशक्त बनाने का काम किया है, बल्कि अन्य महिलाओं को प्रोत्साहित भी किया है कि वह भी अपने कदम घरों से बाहर निकालें और अपने हिस्से का आसमान अपने कदमों में भर सकें। ऐसे भी आमतौर पर खेती को लेकर जब बात होती है, तब सबसे पहले एक पुरुष का चेहरा ही सामने आता है मगर बदलते समय के साथ अब महिलाएं भी खेती द्वारा अपनी पहचान बना रही हैं।

इसकी सशक्त मिसाल बिहार की कुछ महिलाएं हैं। जिन्होंने मशरूम की खेती के माध्यम से न केवल आत्मनिर्भर हो रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी उदाहरण बन रही हैं। बिहार की राजधानी पटना स्थित बोरिंग रोड के पास आनंदपुरी की रहने वाली जनक किशोरी पिछले साल हुए लॉकडाउन में डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय से मशरूम की खेती करना सीखा था। उनका मानना है कि मशरूम में प्रोटीन, विटामिन और फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है। इसलिए लोगों के बीच इसकी मांग भी बहुत है। यही सोचकर उन्होंने मशरुम की खेती करने का फैसला किया। उन्होंने वैशाली स्थित अपने ससुराल में इसकी खेती करने का मन बनाया और पटना के विभिन्न होटलों, सप्लायर और जान-पहचान लोगों के बीच इसे उपलब्ध कराने का काम शुरु किया।

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मशरूम की खेती का सेटअप तैयार करने में पहले उन्होंने खुद की पुंजी का निवेश किया, मगर अब महीने के 70 हज़ार रुपयों की आमदनी हो रही है। जनक किशोरी के अनुसार चुंकि बटन मशरूम की बाजार में बहुत ज्यादा मांग है इसलिए वह अभी अपनी जमीन पर ओएटस्टर और बटन मशरूम दोनों को तैयार कर रही हैं। ओएस्टर मशरूम के लिए पीपी बैग तैयार किया जाता है ताकि इसकी मदद से ओएस्टर मशरूम को बढ़ने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल जाता है। जनक किशोरी जल्द ही अपने आस-पास रहने वाली महिलाओं को भी इसका प्रशिक्षण देंगी ताकि वह भी अपने पैरों पर खड़ी हो सकें।

वहीं पटना से करीब 62 किमी दूर नालंदा जिले के चंडीपुर प्रखंड स्थित अनंतपुर गांव की रहने वाली अनीता कुमारी मशरूम लेडी के नाम से मशहूर हैं। अनीता गृह विज्ञान विषय से स्नातक हैं। वह हमेशा से कुछ अलग करना चाहती थीं, जिससे वह अपने परिवार की मदद करने के साथ-साथ अन्य महिलाओं को रोजगार से जोड़ सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अनीता ने 11 साल पहले मशरूम की ट्रेनिंग समस्तीपुर स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और उत्तराखंड के जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी से ली। उनके पति संजय की कपड़े की दुकान थी, जिसमें काफी नुकसान हुआ था। वह समय बहुत कठिन था क्योंकि पैसों की तंगी का पहाड़ सिर पर टूट चुका था। उस वक्त तीन बच्चों की परवरिश और पढ़ाई को लेकर काफी चिंता थी, इसलिए अनीता ने नालंदा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में जाकर वहां के अफसरों से सलाह मांगी, जहां उन्हें मशरूम की खेती शुरू करने की सलाह मिली। इसके बाद उसने कभी पलट कर नहीं देखा।

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आज अनीता हजार से ज्यादा महिलाओं को रोजगार से जोड़ चुकी हैं। वह ओएस्टर मशरूम की खेती कर सालाना तीन से चार लाख कमा रही हैं। साथ ही उन्होंने अपने इस हुनर की मदद से माधोपुर फॉर्मर्स प्रोड्यूसर्स नाम से कंपनी की शुरुआत भी की है। साल 2012 में उन्हें मशरूम लेडी की उपाधि भी मिली। वर्तमान समय में रोजाना उनके सेंटर से 20-25 किलो ओएस्टर मशरूम का उत्पादन हो रहा है, जिसे वह होल सेलर और रिटेलर्स को मुहैय्या करा रही हैं। उनके इस काम के लिए उन्हें विभिन्न कैटेगरी में 19 अवार्ड मिल चुके हैं, जिसमें साल 2014 में जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार, जोनल का सम्मान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था। वहीं साल 2020 में धनुका इनोवेटिव एग्रीकल्चर अवार्ड भी मिला है।

इसके अतिरिक्त सारण जिले के बरेजा गांव की रहने वाली सुनीता प्रसाद भी पिछले पांच सालों में हजार से ज्यादा महिलाओं को मशरूम उपजाने की ट्रेनिंग देकर रोजगार से जोड़ चुकी हैं। सुनीता ने मांझी स्थित किसान विज्ञान केंद्र से मशरूम खेती का प्रशिक्षण लिया था। अब वह सालाना दो लाख रुपये कमा रही हैं। सितंबर से मार्च के महीने तक ओएस्टर मशरूम की खेती होती है। वहीं दुधिया मशरूम की खेती ओएस्टर मशरूम के बाद होती है। लोगों के बीच मशरुम की मांग काफी बढ़ गई है, मगर जब कभी-कभी कम बिक्री होने के कारण मशरूम बच जाता है, तब उसे ड्राइंग मशीन से सुखाकर ऑफ सीजन बेचा जाता है।

गया जिले के मोहनपुर की रहने वाली सुषमा देवी के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, मगर वक्त उनके साथ था। जब सुषमा देवी के घर आर्थिक तंगी का माहौल था, उसी वक्त जीविका की ओर से मशरूम की खेती के लिए दस दिवसीय ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जा रहे थे, जिसमें सुषमा ने भाग लिया था। वह प्रोग्राम सुषमा के लिए वरदान साबित हुआ और अब वह महीने के बीस हजार तक कमा रही हैं। सुषमा ने पिछले साल ही ओएस्टर मशरूम की खेती की थी और इस साल वह बटन मशरूम की खेती कर रही हैं। मशरुम की खेती के बदौलत ही घर की हालात में सुधार हुआ है। सुषमा के अनुसार बाजार में मशरूम की काफी मांग है। साथ ही गांव में होने वाले आयोजनों और आस-पास मौजूद होटलों में भी उनकी ओर से मशरूम डिलीवर किये जाते हैं।

इस संबंध में डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के प्रधान वैज्ञानिक (मशरूम) डॉ दायाराम बताते हैं कि पिछले 20 सालों से जिला और राज्य स्तर पर पुरुषों और महिलाओं को मशरूम की खेती से संबंधित ट्रेनिंग दी जा रही है। अभी कोरोना को देखते हुए ऑनलाइन ट्रेनिंग दी जा रही है लेकिन जल्द ऑफलाइन ट्रेनिंग की शुरुआत भी होगी। हर महीने दो ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें लगभग 80 से ज्यादा ट्रेनी भाग लेते हैं। सालाना 600 से ज्यादा पुरुष और महिलाएं ट्रेनिंग लेते हैं। ट्रेनिंग के दौरान मशरूम को किस वातावरण और कैसे उपजाया जाता है, इसके बारे में बताया जाता है। ट्रेनिंग के बाद सभी को सर्टिफिकेट दिया जाता है। साथ ही ट्रेनिंग 3,7,15 दिनों के अलावा एक महीने की भी होती है। बिहार सरकार की ओर से मशरूम की खेती करने के लिए लोगों को 50 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है। साथ ही मशरूम का उत्पादन विभिन्न तापमान पर पूरे साल भी किया जा रहा है। इनमें 20-30 डिग्री पर ओएस्टर, 15-20 डिग्री टेंप्रेचर पर बटन और 30-38 डिग्री टेंप्रेचर पर मिल्की मशरूम का उत्पादन होता है। डॉ दायाराम के अनुसार साल 2050 तक मशरूम का युग होगा क्योंकि फिलहाल मशरुम का पूरक कोई नहीं है।

महिलाओं का खेती की ओर बढ़ते कदम वास्तव में समाज के लिए प्रेरणादायक है, क्योंकि उन्होंने अपने रोज़गार के साथ-साथ न केवल अपनी एक अलग पहचान भी बनाई है, बल्कि अन्य महिलाओं को हिम्मत के साथ खड़े होना भी सिखाया है। ग्रामीण महिलाओं के कदम जब आगे की ओर अग्रसर होते हैं, तब बदलाव का माहौल विकसित होता, जिसे इन महिलाओं ने अपने श्रम से सिद्ध करके दिखाया है।

यह आलेख पटना, बिहार से जूही स्मिता ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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