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अस्पताल में सुविधाओं की कमी से जूझ रहा पहाड़ का गांव

Rural Report by Hansi Goswami from Garur, Uttarakhand | Hilly area villages struggling with lack of facilities in the hospital

By Pallav Jain
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Hospital In rural India

Rural Report by Hansi Goswami from Garur, Uttarakhand | Hilly area villages struggling with lack of facilities in the hospital

उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती चार महीने के बजट के लिए लगभग 21 हज़ार करोड़ से अधिक का लेखानुदान पारित किया. जिसमें स्वास्थ्य, चिकित्सा और परिवार कल्याण पर एक हज़ार करोड़ रूपए से अधिक खर्च करने की बात कही गई है. इससे पूर्व केंद्र सरकार ने भी राज्य के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत बनाने के लिए 1736 करोड़ रूपए से अधिक की मंज़ूरी दी है. जो पिछले वर्ष की तुलना में 152  करोड़  94 लाख रूपए अधिक हैं. इस राशि से राज्य के दूर दराज़ के इलाकों की स्वास्थ्य सुविधाओं को और अधिक मज़बूत बनाया जाएगा. इससे एक ओर जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत को सुधारा जाएगा वहीं अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या को बढ़ाने और उन्हें सभी सुविधाओं से लैस करने का प्रयास किया जाएगा, ताकि लोगों को बेहतर इलाज के लिए शहरों का रुख न करना पड़े.

दरअसल अस्पताल हमारी बुनियादी जरुरतों में से एक है, इसके बिना लोगों का जीवन एक तरह से असंभव सा है. लेकिन आज भी उत्तराखंड के कई ऐसे दूर दराज़ के क्षेत्र हैं, जहां अस्पताल जैसी बुनियादी ज़रूरतों का अभाव है. यदि है भी तो उनमें सुविधाओं की इतनी कमी है कि ग्रामीणों को उसका कोई विशेष लाभ नहीं मिलता है.

अस्पताल न होना पिंगलो गांव के लोगों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत है. यदि किसी महिला, बुजुर्ग या बच्चे की अचानक तबियत खराब हो जाए तो उन्हें वहां कोई अस्पताल की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है. गांव में बेशक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुले हैं, लेकिन उसमें इतनी भी सुविधा नहीं है कि आपातकाल में वह रोगियों की कोई मदद कर सके. स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां कभी भी हो सकती हैं.

सामान्य सिर दर्द, पेट दर्द, चोट लगना आदि, इन प्रकार की सामान्य पीड़ा के लिए भी उनके पास कोई विकल्प नहीं होता है जिससे कि लोग वहां से दवाइयां ले सकें. गांव वालों को दवाइयां लेने के लिए बैजनाथ शहर या गरुड़ जाना पड़ता है, वहां तक पहुंचने में भी उन्हें एक से डेढ़ घंटे का समय लग जाता है. रात में गांव वालों के पास परिवहन की सुविधा भी उपलब्ध नहीं होती है जिसकी वजह से कई बार उन्हें गाड़ी बुक करनी पड़ती है. जिसमें हजारों रुपए खर्च हो जाते हैं.

गांव में अधिकांश आबादी गरीबी रेखा से नीचे का जीवन बसर करती है. ऐसे में उनकी आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. गांव के अधिकांश लोगों के घर भी दूर-दूर स्थित होते हैं. जहां से उन लोगों को मुख्य सड़क तक आने में काफी समय लग जाता है. कई बार गांव की गर्भवती महिला को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हो जाती है. ऐसे में इन दूर-दराज के गांवों में एंबुलेंस को पहुंचने में भी घंटो का समय लग जाता है. इस स्थिति में गर्भवती महिला को अस्पताल लेकर जाना मुश्किल हो जाता है. कई बार एंबुलेंस के देर से पहुंचने की वजह से अक्सर रास्ते में ही डिलीवरी हो जाती है. ऑन रोड डिलीवरी के मामले भी असुविधा की ही देन है. गर्भवती महिला को हर तीन महीने बाद अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह दी जाती है, लेकिन गांव के अस्पताल में इसकी सुविधा नहीं होने के कारण उन्हें निजी अल्ट्रासाउंड सेंटर में जाने को मजबूर होना पड़ता है. जहां उनकी हैसियत से अधिक पैसे खर्च हो जाते हैं.

वहीं गांव की आशा वर्कर गोदावरी देवी का कहना है कि गांव में अस्पताल की विशेष सुविधा नहीं होने के कारण मरीज़ के साथ साथ उन्हें भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. जब किसी गर्भवती महिला के प्रसव का समय आता है तो घर वालों को बहुत अधिक कठिनाइयों से गुज़ारना पड़ता है. अस्पताल में प्रसव की विशेष सुविधा नहीं होने के कारण महिला को जिला अस्पताल या फिर अल्मोड़ा ले जाना पड़ता है. जो समय के साथ साथ पैसों का भी ह्रास है. यदि गांव के अस्पताल में डिलीवरी की सभी सुविधा उपलब्ध होती तो गांव के गरीब लोगों का सबसे अधिक फायदा होता.

ग्रामीण क्षेत्र में वर्षो से चली आ रही अस्पताल की समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है. प्रशासनिक स्तर पर कोई भी गंभीरता से इसे दूर करने की नहीं सोच रहा है. सरकारी अफसर गांव में ज़रूर आते है और इन समस्याओं पर बात भी करते हैं, मगर वह सब महज एक बात ही बन कर रह जाती है, आज तक इसका कोई ठोस परिणाम देखने को नहीं मिला है. उम्मीद की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने दूसरे कार्यकाल में राज्य के दूर दराज़ पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए ठोस नीति बनाएंगे, जिससे कि इन क्षेत्रों की गरीब जनता भी स्वयं को विकास की दौड़ में शामिल कर सकें. (चरखा फीचर)

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