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Human Trafficking: मानव तस्करों के जाल में ग्रामीण किशोरियां

Rural girls in the trap of human traffickers

By Pallav Jain
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Rural girls in the trap of human traffickers

Rural girls in the trap of Human Trafficking By Seetu Tiwari from Patna, Bihar | 21 साल की समता (बदला हुआ नाम) ने किताबों से पक्की वाली दोस्ती कर ली है। वह अपने परिवार की पहली मैट्रिक पास तो है ही, लेकिन उसका एक दूसरा परिचय भी है। मात्र ग्यारह साल की उम्र में उसके माता पिता ने बेटी ‘सुख से रहेगी’, के लालच में उसकी शादी कर दी थी। लेकिन यह सुनहरा सपना ज्यादा दिन नहीं टिक सका। पेशे से मजदूर 20 साल का उसका दूल्हा विपिन उसे बात-बात पर पीटता था। समता कहती है, "जब सहन नहीं हुआ तो हमने मां को फोन किया। मां ने कहा वापस आ जाओ, तो मैं भाग आई।” तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी समता बताती है, “मेरी शादी जान पहचान के एक आदमी ने ही यूपी के बागपत में कराई थी। हमको पता नहीं था कि शादी क्या होती है। मेरा पति बहुत पीटता था। जींस शर्ट पहनने वाली समता अपनी शादी के निशान पीछे छोड़ आई है। वो पढ़ना चाहती है और उसका सपना आर्थिक स्वतंत्रता है। दिल और शरीर पर लगे चोट से उभरने में उसे कुछ वक़्त ज़रूर लगा, लेकिन जीवन के इस काली परछाई को पीछे छोड़ते हुए उसने एक बार फिर से पढ़ाई शुरू कर दी है. पहले उसने दसवीं पास की है और अब बारहवीं की पढ़ाई कर रही है। 

बिहार के कटिहार जिला हेडक्वॉर्टर से करीब 30 किमी दूर कोढ़ा ब्लॉक स्थित रामपुर पंचायत की समता की शादी केवल परदेस में शादी तक का मुद्दा नहीं है बल्कि यह एक सुनियोजित रूप से ब्राइड ट्रैफिकिंग का मामला है। हालांकि मोबाइल क्रांति और ब्राइड ट्रैफिकिंग को लेकर बिहार के सीमांचल के इलाकों में आई थोड़ी जागरूकता ने समता को बचा लिया। दरअसल, इस पूरे इलाके में धीरे धीरे ही सही, लेकिन स्थानीय लोगों में यह समझ बन रही है कि दलाल के जरिए शादियों का सुखान्त नहीं होता। आर्थिक रूप से पिछड़े और प्रति वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले कटिहार और अररिया ज़िलों के गांवों में 12 से 18 साल की बच्चियों के बीच किशोरियों का समूह बना है। अपने समूह की मासिक मीटिंग में ये किशोरियां गांव के किसी सार्वजनिक स्थल में जुटकर तेज आवाज में पूरी ताकत से ये गीत गाती हैं "दलाल से शादी करावै छै, ताड़ी दारू पियावे छै, बिहार के लड़की बाहर जायछै, घूमी के नाही आवैछै, यहीं शादी में ढोल ना बाजा, खुसुर फुसुर बतइयावै छै, लड़की के मायके पैसा देवे, आपन काम बनावै छै". ऐसा लग रहा है कि गीत के माध्यम से किशोरियां गांव में घूमने वाले दलालों के साथ साथ अपने माता–पिता को भी चेतावनी दे रही हैं।

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यह गीत गाने वाली लड़कियों में जमुना (बदला हुआ नाम) भी एक है। उसकी शादी भी 15 साल की उम्र में दलालों ने करा दी थी। उस वक्त वह आठवीं में पढ़ती थी। जमुना बताती है, “पहले तो समझ नहीं आया मेरे साथ क्या हो रहा है? लेकिन फिर अपने इलाके की कभी वापस नहीं आने वाली लड़कियों की कहानी याद आई तो समझ में आया कि हमको बेच दिया गया है। हम बेमौत नहीं मरना चाहते थे, इसलिए हम यूपी से किसी तरह मदद ले कर भाग आए।” जमुना ने भी अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी है और अब अपने घर में वो फर्स्ट जेनरेशन लर्नर है। उसे अपने पिता के घर में फूंस का बना एक कमरा मिल गया है जिसमें वो एक बड़े से एल्यूमीनियम के बक्से में करीने से अपनी किताबें रखती है। कमरे में बॉलीवुड अभिनेत्रियों के पुराने पड़ चुके पोस्टर हैं जो उसके सपनों को ‘उम्मीदों का पंख’ देते रहते हैं। इस संबंध में ब्राइड ट्रैफिकिंग के खिलाफ क्षेत्र में सक्रिय स्वयंसेवी संस्था भूमिका विहार के कार्यकर्ता राजनंदिनी और हेमंत दास कहते हैं, “इसे रोकने का सबसे अच्छा उपाय स्वयं किशोरियों को इसके विरुद्ध जागरूक करना है। अगर वो जागरूक होंगी, तभी लड़ सकेंगीं। इसके अलावा सरकार के साथ मिलकर हम लोग विवाह निबंधन पर भी काम कर रहे है।”

कटिहार की रामपुर पंचायत एक ऐसी ही पंचायत है जहां विवाह निबंधन का काम हो रहा है। यहां बाल सुरक्षा समिति विवाह निबंधन पर साल 2016 से काम कर रही है। बीते दो सालों से समिति के अध्यक्ष रंजीत कुमार बताते है, “हमने इसके लिए एक रजिस्टर बनाया है जिसमें लड़का और लड़की का आधार कार्ड और फोटो लगाया जाता है। साथ ही माता पिता को एक एफिडेविट फाइल करनी होती है जिसमें लिखा होता है कि हमारी बच्ची 18 साल की हो गई है। अगर इसमें किसी तरह की त्रुटि पाई जाती है तो इसकी जिम्मेदारी उनकी होगी।” हालांकि यह विवाह निबंधन ‘ऐच्छिक’ है इसे कानूनी तौर पर ‘जरूरी’ नहीं बनाया गया है। वह कहते हैं, “हमारी पंचायत में जो शादियां होती हैं, उसके लिए हम लोग सामाजिक दबाव बनाते है कि विवाह निबंधन कराया जाएं। लेकिन अगर माता पिता पंचायत के अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर किसी दूसरी जगह बेटी की शादी करते हैं, तो फिर वहां हम कुछ नहीं कर पाते।”

ये जानना हैरत में डालता है कि ब्राइड ट्रैफिकिंग के इन मामलों की शिकार लड़कियों और उनके मां बाप को ये तक पता नहीं होता कि यूपी, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान में किस जिले, शहर या मोहल्ले में उनकी बेटी की शादी हो रही है? ज्यादातर लड़कियां ट्रैफिकिंग की शिकार होने के बाद ही अपनी पहली रेल यात्रा करती है। जाहिर तौर पर ये पहली यात्रा उनके जीवन की सुखद याद नहीं होती। इन हालातों में विवाह निबंधन बहुत जरूरी पहल लगती है। इस संबंध में महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर काम करने वाली संस्था एक्शन एड की प्रोग्राम मैनेजर शरद कुमारी कहती है, “अगर मैरिज रजिस्ट्रेशन को मैनडेटरी कर दिया जाए तो तीन फायदे होंगें। पहला बाल विवाह रुकेगा, दूसरा ब्राइड ट्रैफिकिंग रोकी जा सकती है और तीसरा घरेलू हिंसा के मामलों में जरूरी हस्तक्षेप किया जा सकता है।”

बिहार में पंचायत स्तर पर अभी जो निबंधन हो रहे हैं, उसमें ज्यादातर का मकसद मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना की प्रोत्साहन राशि का लाभ उठाना है। नीतीश सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए इस योजना की शुरुआत की थी। इसके तहत एस सी/एस टी या गरीबी रेखा के नीचे आने वाले वो परिवार जिनकी सालाना आय 60,000 रुपये से कम है, उनको बेटी की शादी पर 5,000 रुपये प्रोत्साहन राशि के तौर पर मिलते है। इस योजना का लाभ लेने के लिए लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए। पंचायत स्तर पर विवाह निबंधन का रजिस्ट्रार मुखिया होता है। कोसी–महानंदा क्षेत्र में विवाह निबंधन से जुड़ी जागरूकता पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता भगवान पाठक कहते हैं, “अभी ज्यादातर विवाह निबंधन पांच हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि के लिए हो रहा है और आर्थिक तौर पर पिछड़े लोग करा रहे है। साथ ही कई ट्रैबू को खुद मुखिया को तोड़ना होगा। वह बताते हैं कि हाल ही में विवाह निबंधन से जुड़े एक कार्यक्रम में भाग लेने वह सिमरी बख्तियारपुर गए थे तो वहां की एक महिला मुखिया उनके सामने स्वयं चार घंटे तक घूंघट में ही रहीं। ये ऐसे सारे टैबू हैं जिन्हें तोड़ने की ज़रूरत है।”

लेकिन इन सारी उम्मीद बंधाने वाली बातों के बीच ट्रैफिकिंग की शिकार वो लड़कियां भी हैं जो रात के घुप अंधेरे में जो विदा हुईं तो फिर कभी न तो वह मायके आ सकीं और न ही आज तक उनकी कोई खोज खबर ही लगी. आरती और मुन्नी ऐसे ही खोए हुई लड़कियां हैं। आरती की भाभी बताती है, “दलाल दुल्हा ले कर आया था। शादी करके ले गया उसके बाद कुछ पता नहीं चला। आज से पन्द्रह साल पहले ननद को खोजने के लिए 6,000 रुपये खर्च किए थे। वह कहती है "हम मजदूर आदमी अपना काम छोड़कर कितना ढूंढते?” वहीं 14 बरस की उम्र में ब्याही हुई मुन्नी भी फिर कभी वापस नहीं आ सकी। सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत कुमार दास कहते है, “मुन्नी के मां बाप मर चुके हैं। भाई सब दिल्ली हरियाणा कमाने चला गया, अब उसके बारे में कौन क्या बताएगा। गांव में बस उसका नाम और स्मृति शेष है।”

वास्तव में हर साल बिहार के इस क्षेत्र में आने वाली बाढ़ न केवल लोगों का आशियाना उजाड़ जाती है बल्कि उनके ख्वाबों को भी बहा ले जाती है. सच तो यह है कि क्षेत्र की गरीबी, इलाके की प्राकृतिक आपदाएं, मानव तस्करों की गिद्ध नज़र और लड़कियों के प्रति परिवारों में रची बसी असंवेदनशीलता एक ऐसा मकड़जाल बुनती है, जिसमें इन लड़कियों के जीवन मृत्यु की सुध लेने वाला कोई नहीं होता है, उसके अपने परिवार वाले भी नहीं। यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के अंतर्गत लिखी गई है. (चरखा फीचर)

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