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डिजिटल संसाधनों से सशक्त होती राजस्थान की ग्रामीण किशोरियां

टेक्नोलॉजी ने दुनिया में विकास की परिभाषा को बदल कर रख दिया है. वर्तमान में जो देश तकनीक के मामले में जितना विकसित है, उसे उतना ही सशक्त माना गया है.

By Charkha Feature
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digital literacy in rajasthan

नीराज गुर्जर अजमेर, राजस्थान टेक्नोलॉजी ने दुनिया में विकास की परिभाषा को बदल कर रख दिया है. वर्तमान में जो देश तकनीक के मामले में जितना विकसित है, उसे उतना ही सशक्त माना गया है. इसके विकास ने न केवल देश बल्कि इंसानों के जीवन में भी क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है. हमारे देश में तकनीक के विकास का सबसे ज़बरदस्त प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है. विशेषकर नई पीढ़ी की किशोरियों के जीवन पर इसका काफी असर देखने को मिल रहा है. देश में 5G के दौर ने मानो ना केवल समय को, बल्कि किशोरियों के सपनों को भी पंख लगा दिया है. अब तक तकनीक की पहुंच केवल पुरुष वर्ग तक ही सीमित थी; वही आज के दौर में सरकार, निजी क्षेत्र और सामाजिक संस्थानों के लगातार प्रयासों और युवा किशोरियों की जागरूकता से ग्रामीण क्षेत्रों तक डिजिटल संसाधनों की पहुंच काफी बढ़ी है.

Rural girls empowered by digital resources

इस संदर्भ में निजी क्षेत्रों और विशेषकर गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका सराहनीय है. जिनके प्रयासों से देश के उन ग्रामीण क्षेत्रों की किशोरियां भी डिजिटल रूप से सशक्त हो रही हैं, जिन्हें रूढ़िवादी विचारधारा का वाहक समझा जाता है. जहां समाज और संस्कृति के नाम पर महिलाओं को घर की चारदीवारियों में कैद रखा जाता है. उनके बचपन का गला घोंटकर शादी के बंधन में बांध देना आम बात होती है. इस कड़ी में राजस्थान का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है. लेकिन अब डिजिटल संसाधनों की पहुंच ने इस रूढ़िवादी विचारधारा को बहुत हद तक ख़त्म कर दिया है. अब इस राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की किशोरियां आगे बढ़ कर तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन में बदलाव ला रही हैं.

राज्य के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां सामाजिक संस्थाएं आगे बढ़ कर ग्रामीण क्षेत्रों की किशोरियों को डिजिटल रूप से सशक्त बना रही हैं. अजमेर की एक सामाजिक संस्था महिला जन अधिकार समिति में चल रहे टेक सेंटर ने अलग-अलग कार्यक्रमों के माध्यम से अब तक ज़िले के ग्रामीण क्षेत्रों की लगभग 2000 से भी अधिक किशोरियों को डिजिटली एजुकेट किया है. इन कार्यक्रमों में डिजिटल किशोरी बने सक्षम – कंप्यूटर लर्निंग कार्यक्रम, ग्रासरूट्स जर्नलिज्म एवं ईच वन टीच टेन - मोबाइल लर्निंग जैसे महत्वपूर्ण कोर्स शामिल हैं. इस संबंध में सेंटर की युवा प्रशिक्षक मेरी सदुमहा और कामिनी कुमारी बताती हैं कि ये सभी कोर्स तकनीकी लर्निंग की फेमिनिस्ट अप्रोच पर आधारित हैं. जिसमें लड़कियां न सिर्फ तकनीकी ज्ञान हासिल करती हैं बल्कि अपने बारे में अपने फैसले लेने में और अपने अधिकारों के बारे में भी सीखती हैं. वे अपने नागरिक अधिकारों के साथ साथ अपने जीवन के बारे में सुनहरे सपने बुनती हैं और उन्हें पूरा करने का भी प्रयास करती हैं. जो उन्हें न केवल सामाजिक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाता है. इन कोर्सों से जिला के कई अलग-अलग गांवों और बस्तियों की लड़कियां जुड़ी हुई हैं. जो अलग अलग जाति और समुदाय से आती हैं.

Rural girls empowered by digital resources

इस संबंध में सेंटर पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रही पदमपुरा गांव की 19 वर्षीय माया गुर्जर बताती हैं कि “संस्था द्वारा पत्रकारिता कोर्स के लिए मुझे साल 2021 में स्मार्टफोन दिया गया था. यह पहली बार था जब मैंने किसी फोन को इतने करीब से छूकर देखा और उसे चलाया था. उस समय मुझे ऐसा लगा मानो मैं एक नई दुनिया से जुड़ गई हूं”. आंखों में चमक के साथ पूरे आत्मविश्वास से माया कहती है “वर्तमान समय में मुझे एंड्रॉइड मोबाइल के सभी फीचर्स के बारे में पता है और मै स्वयं को डिजिटली एडुकेटेड मानती हूं क्योंकि अब मुझे किसी भी सरकारी योजना के बारे में जानने के लिए किसी पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं होती है और न ही ईमित्र के पास चक्कर काटने की ज़रूरत है. मैं किसी भी योजनाओं और वैकेंसी के बारे में मोबाइल से आसानी से जानकारी प्राप्त कर लेती हूं”. वर्तमान में माया अपने ही गांव में महिला जन अधिकार समिति द्वारा चलाए जा रहे सखी सेंटर की प्रभारी है. सेंटर से मिलने वाली अल्प सहायता से माया अपनी आगे की पढ़ाई का खर्च स्वयं उठाती है और घर खर्च में भी परिवार की मदद करती है.

माया की ही तरह अजमेर शहर से करीब 12 किमी दूर अजयसर गांव की रहने वाली 18 वर्षीय मोनिका और मंजू भी सखी सेंटर को संभालती हैं. मोनिका बताती है कि “सेंटर से मिलने वाले पैसों से मैंने अपने लिए किस्तों पर एक स्कूटी खरीदी है. और अब मैं आसानी से कॉलेज जाती हूं और कहीं भी आ जा सकती हूं. यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि मैंने डिजिटल एजुकेशन को अपने जीवन में अपनाया और उसी की वजह से मुझे रोजगार मिला है. मोनिका कहती हैं कि आजकल कहीं भी काम करें डिजिटली अपडेट रहना सबसे ज़्यादा जरुरी है”. वहीं सहायक प्रभारी मंजू कहती है कि “वर्तमान में सभी के लिए डिजिटल साक्षरता बहुत जरूरी है खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली किशोरियों के लिए, क्योंकि अगर हमें आगे पढ़ाई और किसी भी तरह की सरकारी नौकरी की कोचिंग करनी है तो इसके लिए हमें बड़े शहर में जाना पड़ता है. परिवहन साधनों की कमी और महंगे कोचिंग संस्थानों की वजह से हमें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. परंतु डिजिटल संसाधनों की मदद से अब वह यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म पर हम ऑनलाइन घर बैठे ही कोचिंग कर सकते हैं और इससे समय और पैसे दोनों की बचत होती है”.

Rural girls empowered by digital resources

संस्था ने नौ सखी सेंटर शुरू किये हैं, जहां किशोरियों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के लिए पुस्तकें, लाइब्रेरी और टेबलेट्स व इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं. जिसका करीब 40 से 50 लड़कियां नियमित उपयोग करती हैं. बीच बीच में लड़कियों के लिए जीवन कौशल, स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि विषयों पर भी कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं ताकि उन्हें सभी स्तरों पर ज्यादा से ज़्यादा जागरूक किया जा सके. ये सखी सेंटर गांव की ही किशोरियों द्वारा मेंटरिंग सपोर्ट के साथ संचालित होते हैं. अजमेर के लोहाखान बस्ती की 21 वर्षीय दीपिका सोनी संस्था के अजमेर सेंटर पर एक डिजिटल एजुकेटर है. दीपिका ने उसी सेंटर पर कंप्यूटर सीखा था. उसने राजस्थान सरकार द्वारा संचालित RS-CIT सर्टिफिकेट कोर्स पास किया. इसके अतिरिक्त ग्रासरूट्स जर्नलिजम का भी कोर्स करके अपनी कौशल क्षमता  बढ़ाया है. अब वह अन्य लड़कियों को इस दिशा में ट्रेनिंग दे रही है. दीपिका आत्मविश्वास से भरपूर हैं और अपने लिए उच्च अवसरों की तलाश कर रही है. उसी की तरह एक अन्य किशोरी नमीरा बानो भी उसी सेंटर से डिजिटल प्रशिक्षण प्राप्त कर अब अन्य लड़कियों को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना रही है.

Rural girls empowered by digital resources

इस संबंध में महिला जन अधिकार समिति की संस्थापक सदस्य इंदिरा पंचोली बताती हैं कि जिन गांवों में लड़कियों के लिए फोन के इस्तेमाल पर पाबंदी हो और आर्थिक दंड की व्यवस्था हो, वहां डिजिटल संसाधन पूरी तरह लड़कियों के नियंत्रण में देना संस्था के लिए कठिन टास्क था. वहां इस प्रकार के सेंटर खोलना पितृसत्ता समाज को चुनौती देने के बराबर था. लेकिन इन लड़कियों की अपने जीवन में आगे बढ़ने की आशाएं और चुनौती से जूझने की हिम्मत के कारण ही ये सेंटर सफलतापूर्वक चल पाए हैं.

बहरहाल, इन ग्रामीण किशोरियों ने न केवल डिजिटल साक्षरता के महत्त्व को समझा बल्कि उसे अपने जीवन में भी अपनाया और आज इसी के बलबूते पर ये न केवल अपना खर्च स्वयं उठा रही हैं बल्कि परिवार की भी मदद कर रही हैं. इन्ही लड़कियों से प्रेरित होकर देविका, पूनम, कोमल, सुरभि ,पूजा, अफसाना, दिव्या, मतांशा, अंजू ,निकिता और ममता जैसी कई लड़कियां कंप्यूटर और मोबाइल सीखने में रूचि दिखा रही हैं और डिजिटल साक्षरता की तरफ अपना कदम बढा रही हैं. इसके पीछे वास्तव में इन किशोरियों के परिवारों की भूमिका भी अहम है, जिन्होंने डिजिटल साक्षरता की महत्ता को न केवल समझा बल्कि रूढ़िवादी विचारधारा को त्याग कर इन्हें सीखने के लिए प्रेरित भी किया है. (चरखा फीचर) यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के अंतर्गत लिखा गया है

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