रीवा (Rewa Vidhansabha) मध्य प्रदेश एवं विंध्य की बहुत ही हाई प्रोफाइल सीट है। यह एक शहरी सीट है जिसमें पिछले चार विधानसभा चुनाव से भाजपा जीतती आई है, और यह सारे चुनाव भाजपा ने बड़े अंतरों से जीतें है। रीवा जिला एक एक शहरी विधानसभा है जिसकी सीमाएं अमरपाटन एवं सतना विधानसभा से भी लगती है। रीवा में कुल मतदाता 2,70,446 है, और यह रीवा की लोकसभा सीट भी है इसलिए इस सीट पर जितने वाली पार्टी के नेता का अपना राजनीतिक वजन होता है और ऐसा लगातार देखा भी जा रहा है। भाजपा ने इस बार रीवा सीट से राजेंद्र शुक्ला को टिकट दिया है तो कांग्रेस ने इंजीनियर राजेंद्र शर्मा को, यहां मुख्य मुकाबला इन दोनों प्रत्याशियों के ही बीच होना है।
Rewa Vidhansabha सीट का राजनीतिक इतिहास
राजनीतिक इतिहास देखा जाए तो रीवा सीट में भाजपा का दबदबा रहा है पिछले चार बार से भाजपा लगातार जीतती आई है, रीवा में कांग्रेस ने आखिरी चुनाव 1993 की विधानसभा चुनाव में जीता था।
जाहिर है बहुत लंबा अंतराल हो गया है और पिछले चार चुनाव में कांग्रेस, बीजेपी को कड़ी टक्कर भी नहीं दे पाई है और इस बार भी कांग्रेस ने अपने अपने जिला कांग्रेस अध्यक्ष को चुनाव में उतारा है जो की 2008 में भी राजेंद्र शुक्ला के खिलाफ चुनाव लड़े थे एवं हारे थे।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023: कौन हैं (Rewa Vidhansabha) दिग्गज उम्मीदवार?
- भाजपा- राजेंद्र शुक्ला(वर्तमान विधायक)
- कांग्रेस- इंजीनियर राजेंद्र शर्मा
अगर उम्मीदवारों की देखा जाए तो राजेंद्र शुक्ला ने इंजीनियरिंग की, उसके बाद ठेकेदारी के क्षेत्र में उतरे, उनके पिता श्री भैया लाल शुक्ला जी मध्य प्रदेश के के बहुत ही प्रतिष्ठित ठेकेदार थे। राजेंद्र शुक्ल ने भी इस क्षेत्र में लंबा काम किया है। वहीं राजेंद्र शर्मा भी पेशे से इंजीनियर रह चुके हैं एवं रीवा का प्रसिद्ध शिल्पी प्लाजा उन्हीं के द्वारा उन्हीं के संस्थान शिल्पी कंस्ट्रक्शन द्वारा निर्मित है।
राजेंद्र शुक्ला के बारे में देखा जाए तो वह 2008 से ही बहुत ही महत्वपूर्ण मंत्रालयों को संभाल चुके हैं जिनमें से खनिज, ऊर्जा, वानिकी, पर्यावरण एवं जनसंपर्क जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय आते हैं, यह पार्टी में उनका कद की ओर इशारा करता है।
हालांकि जब 2019 में चुनाव में हार के बाद भाजपा दोबारा सत्ता में आई तो इन्हें कोई मंत्रालय नहीं दिया गया, बहुत लोग कयास लगा रहे थे की इनहे मंत्री बनाया जाएगा, पर रीवा जिले से इन्हें नकार के गिरीश गौतम को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया जो की रीवा की अंदरूनी राजनीति में इनके परस्पर विरोधी माने जाते रहे हैं एवं रीवा के बीजेपी कार्यकर्ता एवं अन्य जनता इस बात को लेकर पार्टी से नाराज भी रही जिसका परिणाम पिछले वर्ष के नगर निगम के चुनाव में भाजपा की करारी हार के रूप में भी देखा गया।
रीवा के राजनीति में जनता से जुड़ाव में राजेंद्र शुक्ला अभी भी उतने ही सक्रिय हैं और अपनी इमेज को लेकर बहुत ही सचेत रहते हैं और उसमें बराबर काम करते हैं।
रीवा के पिछले साल हुए नगर निगम के चुनाव में महापौर के पद में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था एवं रीवा के कार्यकर्ता व जनता राजेंद्र शुक्ला को मंत्री न बनाए जाने से पार्टी से खफा भी थे। ठीक ऐसा ही जबलपुर में महापौर के चुनाव में भी देखने को मिला था जहां पर कार्यकर्ता उम्मीदवार से खुश नहीं थे,भाजपा को वहां भी हार का सामना करना पड़ा था।
इस बार भाजपा की राज्य व केंद्र सरकार ने रीवा को ध्यान में रखते हुए बहुत कुछ ऐसा किया है जो की रीवा की जनता को खुश करने के लिए है। इसके अतिरिक्त रीवा में राजेंद्र शुक्ल की अपनी पहुंच और रुतबा भी उनके व भाजपा के लिए प्लस पॉइंट है।
जातिगत समीकरण
अगर रीवा में जाति समीकरण देखा जाए तो ब्राह्मण आबादी बहुत है। विंध्य क्षेत्र मध्य प्रदेश में गिनती के उन उन क्षेत्रों में आता है जहां पर ब्राह्मण आबादी ज्यादा है, रीवा जिले में करीब 14 फ़ीसदी ब्राह्मण वोटर है वहीं मध्य प्रदेश में 10 फीसदी ब्राह्मण वोटर है।
विंध्य क्षेत्र में 30 विधानसभा सीटों में से 23 ऐसी विधानसभा सीट हैं जहां ब्राह्मणों की आबादी 30 फ़ीसदी के करीब है। नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव के बाद राजेंद्र शुक्ला राज्य के बड़े ब्राह्मण नेता है वहीं बीडी शर्मा खुद प्रदेश अध्यक्ष भी है।
रीवा जिले में ब्राह्मणों के बीच में राजेंद्र शुक्ल की अच्छी पकड़ है, अगर रीवा जिले के मतदाताओं की ओर देखा जाए तो रीवा में 59 प्रतिशत सामान्य मतदाता है, जिसमें 38 प्रतिशत ब्राह्मण, 10 प्रतिशत राजपूत, 11 प्रतिशत, अन्य 18 प्रतिशत ओबीसी जिनमें से अधिकतर कुर्मी समुदाय अर्थात पटेल व कुशवाहा है, 11 फीसदी अनुसूचित जाति एवं 6 फ़ीसदी अनुसूचित जनजाति है,यह समीकरण कई बार विंध्य जैसे क्षेत्र में चुनाव की दिशा तय करते हैं।
Rewa Vidhansabha: क्या है चुनावी मुद्दे?
रीवा में चुनाव में विकास के मुद्दे कई है जिनमें से जिन बातों पर भाजपा जोर देती है व प्रचार में जिन बातों का खुल के जिक्र करती है उनमें से है शहर भर में कंक्रीट सड़कों का निर्माण, रेलवे ओवरब्रिज के अलावा दो अन्य ओवरब्रिज का निर्माण, एक ओवरब्रिज निर्माण अधीन है, एक एयरपोर्ट की सौगात रीवा को मिली है जो कि निर्माणाधीन है, रतहरा से चुरहटा तक 15 किलोमीटर की मॉडल रोड(निर्माणाधीन), बीहर नदी में इको पार्क व निर्माणाधीन रिवर फ्रंट, शहर में सीवर पाइपलाइन का कार्य एवं इसके अतिरिक्त रेवा को हाल ही में देश का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट मिला है, जो की 750 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता रखता है। यह प्लांट रीवा जिले के गूढ़ में केंद्र सरकार द्वारा खोला गया इसके अतिरिक्त रीवा को हाल ही में वंदे भारत ट्रेन जो भोपाल से रीवा चलेगी की भी सौगात दी गई है ।
रीवा (Rewa Vidhansabha) के बसामन मामा में गोवंशों के संरक्षण के लिए गौ अभयारण्य तैयार किया जा रहा है एवं महानगरों के तर्ज पर रीवा में भी ओपन पार्क और जिम खोले जा रहे है और वृक्षारोपण पर भी जोर दिया जा रहा है।
हालांकि भाजपा के चुनावी दावों पर बहुत सारे प्रश्नचिन्ह भी हैं, गुढ का सोलर प्लांट व बंदे भारत एक्सप्रेस एक केंद्र सरकार का प्रयास है दूसरी ओर देखा जाए तो सोलर प्लांट से रोजगार के जितने सृजन की उम्मीद थी वह उतना नहीं हुआ है।
रीवा में कई वर्षों से चल रही जेपी सीमेंट फैक्ट्री ने अब अपना मालिकाना छोड़ दिया है, अब वह जनवरी से डालमिया ग्रुप को हैंडओवर हो जाएगी। पर पिछले ढाई साल से जेपी सीमेंट फैक्ट्री के कर्मचारी देर से मिलने वाली तनख्वाह, आधी अधूरी तनख्वाह व सुविधाओं और अनिश्चितताओं से परेशान है। दूसरी ओर देखा जाए तो जो मॉडल रोड बन रही है वह बहुत लंबे समय से निर्माणाधीन है और अभी तक उसे पर कार्य चल ही रहा है।
रीवा की सड़क हैं तो बहुत अच्छी बहुत विस्तृत फ्लाईओवर है पर यह हर वर्ष के बरसात की बात है, बरसात आती है और रीवा का एक-एक इलाका स्विमिंग पूल में तब्दील हो जाता है। रीवा में सीवेज ट्रीटमेंट बहुत आदर्श स्थिति में नहीं है हर बरसात गंदा पानी व पेयजल की समस्याओं का सामना रीवा करता है।
आवारा पशुओं से किसानों को दिक्कत
रीवा (Rewa Vidhansabha) में अगर एक ओर गौ अभ्यारण बनाया जा रहा है वहीं किसानों की सबसे बड़ी समस्याओं में एक गायों, आवारा पशुओं और नील गायों का प्रकोप भी है।
रीवा में आवारा पशुओं के प्रबंधन का कोई विशेष प्रयास नहीं देखा गया है, सड़कों में 10-20 के झुंड में बैठी रहती हैं वह रात-बेरात किसानों के खेतों में घुसकर वहां नुकसान करती हैं, नीलगाय आती है उसे फसलों को छति पहुंचती है व ग्रामीण क्षेत्र जहां कच्चे मकान है वहां बंदरों के झुंड पिछले कम से कम 6-7 सालों से परेशानी का सबब बने हुए हैं। यह समस्याएं ज्यादा मात्रा में रिपीट हो रही है पर इन पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया है। गाय, नीलगाय व बंदर इन सब ने किसानों के नाक में दम कर रखा है एवं सर्कार द्वारा इस दिशा में पर्याप्त प्रयास नहीं किये गए हैं।
रीवा में गिरता भूजल और स्वच्छता का स्तर
इसके अतिरिक्त हर गर्मी रीवा का भूजल स्तर कम होता जाता है और कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां गर्मियों के अलावा भी भूजल स्तर निम्न ही रहता है, उस पर अभी तक कोई प्रयास नहीं किया गया है कोई परिणाम नहीं दिखा है। वहीँ स्वच्छता सर्वेक्षण २०२२ में रीवा की ओवरआल इंडिया रैंकिंग में 97वां स्थान है जो शर्म व चिंता दोनों का विषय है।
कांग्रेस का प्रयास इन्हीं चीजों को सामने रखकर जनता के प्रति विश्वास जाहिर करने का है कांग्रेस खुले तौर पर अपने प्रचार में विकास को चुनाव के प्रमुख मुद्दे की ओर मोड़ने की कोशिश में है वह खुलकर इन सब बातों को रख रही है।
भाजपा की राजेंद्र शुक्ला से आस
हालांकि अभी तक की बात का निष्कर्ष यही है कि रीवा (Rewa Vidhansabha) भाजपा की एक बहुत ही मजबूत सीट है व राजेंद्र शुक्ला भाजपा के बहुत ही हाई प्रोफाइल बहुत ही सम्मानित व विश्वसनीय नेता है। वह पूरे रीवा क्षेत्र में अपनी विशेष पकड़ रखते हैं, पंचायत के चुनाव में उनके समर्थित उम्मीदवार चुनाव जीते हैं, जनार्दन मिश्रा जो की रीवा के सांसद हैं उनके बहुत ही करीबी हैं।
राजेंद्र शुक्ला को शिवराज सिंह चौहान का भी करीबी माना जाता है वह उनके अंतर्गत कई बड़े मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और सबसे जरूरी बात कुछ वर्ष पहले तक जब रीवा में फ्लाईओवर, देव तालाब मंदिर का नवीनीकरण और कई ऐसे प्रोजेक्ट चल रहे थे तब राजेंद्र शुक्ला को रीवा का विकास पुरुष की भी संज्ञा दी गई थी।
रीवा जिले में राजेंद्र शुक्ल की बहुत मजबूत पकड़ है और वह वहां के बहुत बड़े नेता हैं उनकी प्रोफाइल बहुत ही ज्यादा अच्छी है और कांग्रेस का सबसे बड़ा दर्द यही है कि उनके कोई भी नेता अपने साथ वह प्रोफाइल नहीं कैरी करते जो कि राजेंद्र शुक्ल की है।
रीवा में अभी तक उनकी टक्कर का कोई कैंडिडेट कांग्रेस को पिछले तीन चार बार के चुनाव से नहीं मिला है, तो स्पष्ट है रीवा जिले में कांग्रेस की तुलना में भाजपा की स्थिति बेहतर है। यहां के चुनाव में जातीय समीकरण विकास इत्यादि मुद्दे बराबर की भूमिका रखते हैं, और जैसा कि कहा जाता है क्रिकेट और राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है यहां भी किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। आखिरी फैसला जानने को हमें 3 दिसंबर का इंतजार करना होगा।
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