सुप्रीम कोर्ट ने गुरवार को कहा कि कोरोना मरीज़ के घर के बाहर उसके कोरोना संक्रमित होने का पोस्टर लगा होने से अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता है। इस पर केंद्र सरकार ने जवाब देते हुए कहा कि राज्य सरकारें खुद से ही ऐसा कर रही हैं केंद्र द्वारा ऐसे कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं।
केंद्र ने कोर्ट को बताया कि इसका उद्देश्य किसी को कलंकित करना नहीं है, केवल आसपास के लोगों को सतर्क करने के लिए ऐसा किया जाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट में कोविड मरीज़ की पहचान को सुरक्षित रखने को लेकर गाईडलाईन जारी करने के लिए याचिका दायर की गई थी। जिसपर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की जा रही है।
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जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और एम आर शाह की बेंच ने कहा कि इसकी ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही है। कोरोना संक्रमितों के घर के बाहर चिपके पोस्टर की वजह से पीड़ितों को अछूतों जैसा व्यवहार झेलना पड़ता है। पोस्टर की वजह से कोरोना संक्रमितों की पहचान जाहिर हो जाती है और उन्हें इससे काफी शर्मिंदगी भी महसूस होती है। अगर केंद्र की तरफ से इस तरह के कोई निर्देष नहीं हैं तो राज्य सरकारें पोस्टर क्यों चिपका रही हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पोस्टर की वजह से होने वाली शर्मिंदगी और समाज में पहचान जाहिर हो जाने के डर से भी कई लोग टेस्ट करवाने से बच रहे हैं।
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आपको बता दें कि 9 नवंबर को दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट को यह बताया था कि दिल्ली में आदेश जारी कर दिए गए हैं कि किसी भी कोविड मरीज़ के घर के बाहर पोस्टर न चिपकाए जाएं साथ ही जहां लगे हैं उन्हें भी हटाने को कह दिया गया है। साथ ही किसी भी वॉट्सऐप ग्रुप या वेलफेयर असोसिएशन ग्रुप में कोविड मरीज़ की जानकारी सार्वजनिक न करने को लेकर भी चेतावनी दे दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली का उदाहरण देते हुए कहा कि जब दिल्ली सरकार ऐसा नियम बना सकती है तो केंद्र पूरे देश के लिए एक गाईडलाईन क्यों नहीं जारी कर सकता है।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि कोविड मरीज़ की निजता का हनन किया जा रहा है। उसकी जानकारी तमाम वॉट्सऐप ग्रुप में सार्वजनिक कर दी जाती है जिससे मरीज़ को तनाव का सामना करना पड़ रहा है।
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