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पालघर हिंसा : 'सनातनी जनजाति समाज उग्र होकर ऐसा कुकृत्य कर ही नहीं सकता'

पालघर हिंसा : महाराष्ट्र के पालघर इलाके में बीती 16 अप्रैल को दो संतों की भीड़ ने लाठी-डंडों से पीट पीटकर हत्या कर दी। मामले का वीडियो

By Komal Badodekar
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पालघर हिंसा : 'सनातनी जनजाति समाज उग्र होकर ऐसा कुकृत्य कर ही नहीं सकता'

पालघर हिंसा : महाराष्ट्र के पालघर इलाके में बीती 16 अप्रैल को दो संतों की भीड़ ने लाठी-डंडों से पीट पीटकर हत्या कर दी। मामले का वीडियो भी सामने आया। लोग इस घटना से खासा आक्रोशित है। इस घटना में आदिवासी जनजाति समुदाय के लोगों का नाम सामने आने पर अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदेव राम उरांव ने सीबीआई जांच की मांग करते हुए कहा है कि सनातनी जनजाति समाज उग्र होकर ऐसा कुकृत्य कर ही नहीं सकता।

पढ़ें क्या कुछ कहा अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदेव राम उरांव ने -

गत 16 अप्रैल को महाराष्ट्र के पालघर जिला में दो पूज्य संतों श्री कल्पवृक्ष गिरी महाराज और पूज्य महंत सुशील गिरि जी महाराज एवं उनके वाहन चालक नीलेश तेलगड़े की बिना ही कारण नृशंष हत्या कर दी गई। चौंकाने वाली बात यह थी कि यह सब पुलिस के सामने हुआ और वह मूकदर्शक बने रहे, इस जघन्य कृत्य को देखते रहे।

भारतीय समाज सदा से ही सन्यासियों का आदर सत्कार करता रहा है और जनजाति समाज ने तो हमेशा संत-महात्मा, ऋषि-मुनियों की श्रद्धा के साथ सेवा की है। तभी तो वेद, पुराण, उपनिषद जैसे कालजयी ग्रंथों की रचना वनों में हो सकी। जब जब राष्ट्रीय अस्मिता कमजोर पड़ी तब-तब अध्यात्मिक शक्ति ने देश की अस्मिता को मजबूत करने का प्रयास किया है।

सनातन जीवन मूल्यों से इस देश की जड़ों को सदैव ही सींचने का काम अनेक संत-महात्माओं ऋषि-मुनियों द्वारा होता रहा है। भारत की धरती संतों की धरती है, संत वन-पर्वत में रहकर साधना करते हैं और उनकी साधना एवं सेवा में जनजाति समाज सदैव तत्पर रहता है, जो उनके संस्कार व्यवहार परंपराओं में आज भी दिखाई देता है।

महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में कंधे से कंधा लगाकर संघर्ष करने वाला जनजाति समाज, भारतीय स्वतंत्रता समर में प्राणों की आहुति चढ़ा देने वाला समाज संतो को पीट-पीटकर मार डाले यह अविश्वसनीय है, समझ के परे है। क्योंकि सनातनी जनजाति समाज उग्र होकर ऐसा कुकृत्य कर ही नहीं सकता जनजाति क्षेत्र में सामाजिक सौहार्द और शांति नष्ट करने की यह एक बड़ी साजिश लगती है।

यह अत्यंत विचारणीय विषय हो जाता है कि आखिर वह कौन से तत्व हैं जो जनजातीय समाज को भ्रमित कर उसके सहज सरल स्वभाव के विपरीत साधु-संतों के और भगवा के प्रति नफरत का विष घोल रहे हैं।

वामपंथी एवं चर्च से गुमराह हुए मुट्ठी भर लोगों के इस जघन्य अपराध के कारण संपूर्ण जनजाति समाज बदनाम हुआ है परंतु इस कारण संपूर्ण जनजाति समाज को तो दोषी नहीं ठहरा सकते।

अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करता है और मांग करता है कि अपराधियों को शीघ्र ही कठोर से कठोर दंड दिया जाए और पूरी घटना की सीबीआई जांच कराई जाए ताकि घटना के पीछे समाज विरोधी तत्वों की वास्तविकता उजागर हो सके।

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