Powered by

Home Hindi

जब 42 हज़ार मज़दूरों ने आत्महत्या की,तब अंबानी ने हर घंटा 90 करोड़ कमाए!

NCRB ने एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में साल 2021 में हमारे देश में 42004 दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या की है।

By Nehal Rizvi
New Update
Mazdoor

किसी देश के नागरिक उस देश की सबसे बड़ी पूंजी कहलाते हैं। राष्ट्र के निर्माण की नींव, उस राष्ट्र के नागरिकों के कंधों पर टिकी होती है। लेकिन, सोचिए अगर उस नींव को ही ख़त्म किए जाने का प्रयास किया जाने लगे, तब क्या होगा।? हमारे देश में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, जहां राष्ट्र के निमार्ण में अपना जीवन खपा देने वाले मज़दूरों को आत्महत्या करने के लिए लावारिसों की तरह छोड़ दिया गया है।

NCRB का नाम तो आपने सुना ही होगा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो। यह देशभर में होने वाले अपराध के वार्षिक व्यापक आँकड़े एकत्रित करता है। NCRB ने एक रिपोर्ट जारी की है। क्या है इस रिपोर्ट में? रिपोर्ट बताती है कि साल 2021 में हमारे देश में 42004 दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या की है।

वहीं, अगर साल 2020 के आंकड़ें भी इसमें जोड़ दिया जाए तो पता चलता है कि पिछले 2 सालों में देश में 80 हज़ार से अधिक दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या की है। जी हां, सच है यह। मतलब हर दिन लगभग 100 से अधिक दिहाड़ी मज़दूरों ने मौत को गले लगाया।

मीडिया मज़दूरों की आत्महत्या पर प्राइम टाइम नहीं करेगी

यह हमारे देश की सबसे बड़ी ख़बरों में से एक ख़बर होनी चाहिए थी, मगर देश की मीडिया को जो TRP हिंदू-मुस्लिम वाले शो से मिलेगी, वो इन दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या वाले प्राइम टाइम में कहां। हां, मुमकिन है मीडिया इन मज़दूरों की आत्महत्या पर यह सवाल ज़रूर कर सकती है, कि NCRB ने जो आंकड़े जारी किए हैं, तब देश कोरोना की चपेट में था।

लेकिन मीडिया यह नहीं बताएगा, कि उसी कोरोना के समय हमारे देश के अमीर लोगों में से एक अंबानी समूह हर घंटे 90 करोड़ रूये की कमाई कर रहा था। जब हमारे देश में प्रतिदिन 100 से अधिक दिहाड़ी मज़दूर आत्महत्या करने को मजबूर थे,दाने-दाने को तरस रहे थे,देश के 24 फीसदी लोग 3 हज़ार के कम कमाई पर जीवन गुज़ार रहे थे, तब अंबानी जैसे लोग प्रति घंटा 90 करोड़ कमा रहे थे।

आप कहेंगे कि इन विरोधाभासी आंकड़ों को क्यों दिखाया और बताया जा रहा है ? लेकिन आपको यह जानने का हक़ है, हमारे देश की सरकारी नीतियां क्यों लगातार अमीरों को ही अमीर बनाती जा रही हैं, और ग़रीबों को और ग़रीब ? अगर आप सवाल नहीं करेंगे, तब कौन करेगा ? मीडिया अपना धर्म भूल चुका है। प्रति घंटा 90 करोड़ कमाने वालों को इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने दिहाड़ी मज़दूर आत्महत्या कर रहे हैं।

सरकार की नीतियाों ने अमीरों और अमीर बनाया

आत्महत्या को लेकर NCRB अपनी रिपोर्ट में कहती है कि आत्महत्या करने के पीछे कई तरह के सामाजिक आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। लेकिन अगर आत्महत्या करने वाले लोगों के बीच पैटर्न में देखा जाए तो यह दिखेगा कि आत्महत्या करने का सबसे अहम कारण उनकी आर्थिक असुरक्षा है। अगर किसी दिहाड़ी मज़दूर को एक दिन काम न मिले तो उसको भूखा ही सोना पड़ता है। तब ऐसे में वो परिवार क्या चला पाएगा।

हमारी सरकार ने खुद आंकडें जारी कर बताया है कि देश में 90% कामगार महीने में ₹25 हज़ार से भी कम कमाते हैं। अब सोचिए अगर इन लोगों को 2-3 महीन सैलरी न मिले तो क्या होगा ? मुमकिन है ये लोग कर्ज़ लेंगे या रोड़ पर आ जाएंगे। सरकार अपने ही राष्ट्र की नींव को लावारिसों की मौत मरने के लिय छोड़ देती है। ऐसी कोई नीति नहीं बनाती जिससे उनकी आर्थिक स्थिति किसी भी हालत में इतनी ख़राब न हो कि वे मरने पर मजबूर न हों।

Ground Report के साथ फेसबुकट्विटर और वॉट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं और अपनी राय हमें [email protected] पर मेल कर सकते हैं।

आंधी और बारिश आते ही क्यों कट जाती है आपके घरों की बिजली?

झारखंड : एकतरफा प्यार में अंकिता को ज़िदा जलाने वाला शाहरुख कौन है ?