मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का महत्व: मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं और मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होता हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के घर जाते हैं। इसी दिन से ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शास्त्रों में इस दौरान किया जाने वाला ध्यान स्नान और दान के अनेकों लाभ भी बताए गए हैं। वैसे मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान करना,दान करना यह सभी बेहद उत्तम फल देने वाले माने जाते हैं। क्योंकि इस दिन दिया जाने वाला दान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है और साथी ही सूर्य भगवान जी की विधि विधान से पूजा किए जाने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वैसे तो मकर संक्रांति हिंदुओं का मुख्य पर्व होता है पौष माह में जब सूर्य अपनी चाल बदलते हैं यानी धनु राशि से मकर राशि में गोचर करते हैं तब यह मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है इस वर्ष यह पर्व 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इस पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से सभी मांगलिक कार्य एवं त्योहारों की शुरुआत होती हैं। यदि जिस भी जातक की कुंडली में सूर्य और शनि की स्थिति खराब हो वह इस विशेष दिन विशेष रूप से पूजा करके अपने सूर्य और शनि दोनों ग्रह को मजबूत कर सकता है। मकर संक्रांति के पर्व की एक सनातन धर्म की भी मान्यता चली आ रही हैं। जिसमें कहा गया है कि भीष्म पितामह जी ने इसी दिन को अपने मोक्ष की प्राप्ति के लिए चुना था। मकर संक्रांति पर ही भीष्म पितामह जी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन एक माह का खरमास भी खत्म होता है। (मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का महत्व)
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शुभ मुहूर्त – 14 जनवरी को सुबह 8:30 से 5:46 तक रहेगा।
स्नान एवं दान पुण्य महा मुहूर्त्त – सुबह 8:30 से 10:30 तक ।
भगवान सूर्य को जल अर्पित करें:
भगवान सूर्य को जल अर्पित करने के लिए सबसे पहले पवित्र जल या पवित्र नदी में स्नान करने के पश्चात एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें एक लाल पुष्प और एक चुटकी अक्षत मिलाकर भगवान सूर्य को जल अर्पित करना मंगलकारी होगा।
मकर संक्रांति के पर्व पर करें ये अवश्य काम :
मकर संक्रांति के दिन दान स्नान कनिका एक विशेष महत्व माना जाता है कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन जो भी व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार श्रद्धा भक्ति के साथ गरीबों एवं जरूरतमंदों दान करते है तो उसे कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही सनातन धर्म से चली आ रही प्रथा के अनुसार इसी दिन भीष्म पितामह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। साथ ही सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने से 1 माह की खरमास भी समाप्त होती है। खरमास के समाप्त होने का मतलब यह होता है किस नकारात्मक ऊर्जा से सकारात्मक ऊर्जा की ओर आगे बढ़ना। खरमास के आरंभ होते ही सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है 1 माह की खरमास अवधि खत्म करने के बाद मांगलिक कार्यों पर लगा हुआ रोक भी समाप्त हो जाता है और आज मकर संक्रांति के दिन से ही सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होने लगती है। इसलिए यह माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदी या गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष के द्वार खुलते हैं अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है और दान करने से आपको सुख संपत्ति ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं।
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शनि देव की कैसे पाए कृपा:
मकर संक्रांति का पर्व पिता व पुत्र के मध्य मधुर संबंध के लिए भी समर्पित होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य का गोचर मकर राशि में होता है तो इस समय अवधि में शनिदेव से संबंधित प्रिय वस्तुओं का दान किया जाना काफी अच्छा माना जाता है और इससे भगवान सूर्य की भी कृपा प्राप्त होती है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन काले तिल,काली उड़द ,कंबल, गुड़ आदि का दान किया जाता है।
देशभर के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नाम से बनाई जाती है मकर संक्रांति:
मकर संक्रांति का पर्व पूरे देश भर में मनाया जाता है। भारत एक ऐसा देश है जहां पर विभिन्न संस्कृति एवं परंपराएं विद्यमान है। मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न प्रांतों में अपनी संस्कृति परंपरा के अनुसार बना जाता है मकर संक्रांति के नाम भी भिन्न होते हैं उनके महत्व भी अलग होते हैं साथ ही उनकी पूजा विधि भी अलग प्रकार से की जाती हैं।
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मकर संक्रांति के पर्व पर विशेष पकवान:
मकर संक्रांति के विशेष अवसर पर गुड और तिल से बनी पकवान और मिष्ठान काफी पसंद की जाती है। ठंड के मौसम में गुड़ और तिल हमारे सेहत के लिए भी अच्छे होते हैं। मकर संक्रांति के पर्व पर उत्तर भारत में खिचड़ी खाने की एक परंपरा है। इस मौके पर नए अनाजों का प्रयोग कर खिचड़ी बनाई जाती है और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है और दान भी किया जाता है। तिल और गुड़ से बनी मिठाइयों की बात करें तो तिलकुट रेवड़ी, गजक और तिल से बने लड्डू आदि प्रसिद्ध मिठाइयां है। जिनको प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है और दान भी किया जाता है।
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