गमक ’श्रृंखला के तहत अमोद भट्ट द्वारा एक व्याख्यान और ब.व. कारंत की संगीतमय प्रस्तुति शुक्रवार को मध्य प्रदेश आदिवासी संग्रहालय में आयोजित की गई। प्रस्तुति की शुरुआत ब .व. कारंत के नाटकों की संगीतमय प्रस्तुति से हुई। पहला प्रदर्शन कन्नड़ और हिंदी नाटक है वदन की गणपति वंदना, प्यार के दो बैना (नाटक- घासीराम कोतवाल), गलिन में चलो कुंज (नाटक-होली), अह वेदना मिल्ली विदाई (नाटक- स्कंद गुप्त), पारसी डांसर है।
मर्यादा (नाटक-काला युग), हास्य-प्रधान गाने – क्या मलिक का ताल (नाटक – दो कलाकार), कन्नड़ कॉमेडी गीत – डोनकू वल्लद नइ कर के आखिरी गीत (कन्नड़ नाटक – सत्त्वव नेरदु) और नाटक महानिरिवन जिसमें भाऊराव का अभिनय किया कथा – सास चली पंढरपुर, दो पग चल लौटी घर गीत से प्रदर्शन को रोक दिया। मंच पर सह गायिका सुभाष्री भट्ट , सुनील भट्ट तबले पर, रवि राव ढोलक पर, परकशन और नरेशन पर अनूप जोशी (बंटी) , बांसुरी पर वीरेंद्र कोरे और सुयश भट्ट ने गिटार पर संगत की।
व्याख्यान के दौरान आमोद भट्ट ने ब व कारंत के संगीत और नाटकों में इसके उपयोग की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि कारंत जी को परिभाषित करना मुट्ठी भर हाथों में पानी पकड़ने का एक प्रयास है। रंग की दुनिया में उनकी पहचान यह थी कि, वह उनका रंगीन संगीत था, वह किसी न किसी से गद्दे को तोड़ते थे और वह उसमें मधुर संगीत की रसधारा निकालते थे।
आमोद भट्ट ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा संगीत में अपनी माँ स्वर्गीय निर्मला भट्ट पूर्व प्राचार्य श्री द्वारकाधीश संगीत महाविद्यालय भोपाल से प्राप्त की। ब व कारंत से नाट्य संगीत की शिक्षा लेने के पूर्व आमोद भट्ट ने भोपाल में शास्त्रीय गायन और तबला में संगीत प्रभाकर किया । आप वर्तमान में मुंबई में रंग संगीत निर्देशक के रूप में काम कर रहे हैं और संगीत शिक्षण में संलग्न हैं। आपको 2014 का संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया है।
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