Powered by

Home History

धर्मांतरण धर्मनिरपेक्षता को कमज़ोर करता है : लोकमान्य तिलक

लोकमान्य तिलक: 21 वीं सदी के उत्तरार्ध में महाराष्ट्र में नारी-जागरण को लेकर एक संस्था नें खूब ख्याति प्राप्त करी थी, नाम था ‘शारदा-सदन’

By Ground report
New Update
लोकमान्य तिलक और धर्मांतरण

लोकमान्य तिलक: 21 वीं सदी के उत्तरार्ध में महाराष्ट्र में नारी-जागरण को लेकर एक संस्था नें खूब ख्याति प्राप्त करी थी, जिसका नाम था शारदा-सदनइसकी स्थापना करने वालीं विदुषी,पंडिता रामाबाई के नाम से आगे चलकर विख्यात हुईं। अपने कार्य को करते-करते वे बंगाल पहुँचीं, और वहां उन्होंने अपनी पसंद से शादी भी कर ली।

लेकिन भाग्य में वैवाहिक- जीवन की आयु अत्याल्प निकली और परिणामस्वरूप वे विधवा हो गईं। जीवन में फिर ऐसा भी मोड़ भी आया कि उनका ईसाई मिशनरीज के संपर्क में आना हुआ और उनसे प्रेरित हो इंग्लैंड से होते हुए अमेरिका चली गईं। फिर जब वे भारत लौटीं तो वे ईसाई बन चुकी थी। अब उनका एकमेव लक्ष्य दीन-दुखी नारियों को ईसाइयत की राह पर ले जाना हो चुका था।

क्या है यौमे क़ुद्स ? रमज़ान में मुसलमान इसे क्यों मनाते हैं ?

दुनिया वालों को दिखने के लिए उन्होंने इसको नाम दिया मानव-सेवाका। और इस छल से अनभिज्ञ कि उनके ही पैसे से उनके धर्म में सेंध लगाने का काम चल रहा है, हिन्दू-धनाड्य वर्ग शारदा-सदन को दान देने में कोई कसर नहीं छोड़ता था। पर इस कुटील चाल की ओर जिस व्यक्ति ने सर्वप्रथम जनमानस का ध्यान खींचा वो थे अंग्रेजों के विरुद्ध देश में स्वराज्य जन्म सिद्ध आधिकार हैके नारे को बुलंद करने वाले लोकमान्य बालगंगाधर तिलक।

लेकिन लोगों को आज की ही तरह उस समय भी समझाना आसान न था। अपनी दोनों बेटियों को आधुनिक वातावरण में शिक्षित करने वाले लोकमान्य तिलक नारी-उत्थान के प्रबल पक्षधर थे, पर इसकी आड़ में हिन्दू-समाज को हानि पहचाने वाले किसी भी प्रकार के उपक्रम उन्हें मंजूर नहीं थे। अपनी बात को पुष्ट करने के उद्देश्य से उन्होंने कुछ प्रमाण एकत्रित किये;और जब उन्हें सबके समक्ष प्रस्तुत किया तो ईसाई मिशनरीयों से सहानुभूति रखने वाले आख़िरकार अपने कदम खींचने के लिए मजबूर हुए।

NIYOGA: SEX FOR DHARMA, NOT FOR PLEASURE

वैचारिक रूप से उदार,धार्मिक सहिष्णुता के प्रबल पक्षधर और साथ ही सब को अपने अन्दर समाहित करके चलने वाली कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के महत्वपूर्ण अंग होने के वावजूद वे धर्मान्तरण के किसी भी प्रकार के प्रयास को धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने वाला मानते थे. १८९३-९४ में मुंबई और पुणे में हुए भीषण हिन्दू-मुस्लिम दंगे इतिहास में दर्ज हैं।

बहुसंख्यक पर मत-पंथ-जातियों में विभाजित हिन्दुओं को दंगों में भारी जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा। भविष्य में ऐसी घटनायें पुन: न हों उसके लिए तिलक नें महाराष्ट्र में गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव मनाने की परंपरा डाली। धीरे-धीरे अपने सारे भेदों को भुला कर लोग इन उत्सवों में शामिल होने लगे। इससे उनके बीच संगठन की भावना प्रबल होने लगी। इस प्रकार विचारों की प्रखर अभिव्यक्ति के साथ-साथ उस पर अमल हो उसके उन्होंने पुरजोर उपाय भी किये। इस बात के लिए लोकमान्य तिलक को सदा याद किया जाता रहेगा।

Ground Report के साथ फेसबुकट्विटर और वॉट्सएप के माध्यम से जुड़ सकते हैं और अपनी राय हमें [email protected] पर मेल कर सकते हैं।