Lohri 2021: Why Lohri is celebrated, what is its beliefs: जैसा कि हम सब जानते है लोहड़ी का त्यौहार उत्तर भारत और पंजाबियों के लिए सबसे लोकप्रिय त्योहार है जिसे खासतौर पर पंजाब में धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जहां लोहड़ी पर हम इतना ही जानते है कि, इस दिन सभी अपने घरों और चौराहों के बाहर लोहड़ी पर आग जलाते हैं। वहीं यह त्यौहार पंजाब के किसानों के लिए महत्व रखता है जब इस समय किसानों के खेत लहलहाने लगते हैं और रबी की फसल कटकर आती है। लेकिन क्या आपको पता है कि लोहड़ी पर आग जलाने की मान्यताएं क्या है। (Lohri 2021: Why Lohri is celebrated, what is its beliefs)
कैसे मनाई जाती हैं लोहड़ी
चलिए आज हम बात करते है कि, लोहड़ी कैसे मनाई जाती है। बताते चलें कि, उत्तर भारत के लिए जहां लोहड़ी के त्यौहार की तरह होता है वहीं इसे लेकर कई दिनों पहले से ही लोगों में उत्साह बना रहता है। जहां पहले से ही लकड़ियां इकट्ठा की जाती हैं, पंजाब में तो बच्चे लोक गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी के लिए लकड़ियां जुटाते हैं। इन लकड़ियों को किसी खुले और बड़े स्थान पर रखा जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग वहां इकट्ठा हों और सबके साथ यह त्यौहार मनाया जा सके। वहीं लोहड़ी की रात सभी लोग लकड़ियों के इस झुंड के चारों ओर इकट्ठा होते हैं फिर पारंपरिक तौर-तरीकों से आग लगाई जाती है जहां पारम्परिक लोक गीतों को गाते हुए इस अग्नि के चारों ओर लोग नाचते-गाते हुए उसमें मूंगफली, गजक, पॉपकॉर्न, मक्का और रेवड़ी की आहुति देते हैं। (Lohri 2021: Why Lohri is celebrated, what is its beliefs)
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क्या है लोहड़ी और कहां से आया ये शब्द
हम बात कर रहे हैं लोहड़ी त्यौहार की तो हमे यह जानना भी जरूरी है कि, लोहड़ी शब्द आखिर आया कहां से। लोहड़ी शब्द को लेकर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, कुछ लोग मानते हैं कि लोहड़ी शब्द ‘लोई (संत कबीर की पत्नी) से उत्पन्न हुआ था, लेकिन कई लोग इसे तिलोड़ी से उत्पन्न हुआ मानते है। वहीं इसके अलावा कई लोग यह भी कहते है कि, यह शब्द लोह’ से उत्पन्न हुआ था, जो चपाती बनाने के लिए प्रयुक्त एक उपकरण की तरह है।
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लोहड़ी पर्व पर आखिर क्यों जलाई जाती हैं आग
जैसा कि हम जानते है लोहड़ी पर इकठ्ठा की हुई लकड़ियों को जलाकर त्यौहार मनाया जाता है। क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे क्या महत्व होता होंगा या क्या मान्यताएं है इसकी। बताते चलें कि, लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर माना जाता है कि यह आग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। जैसा कि पौराणिक कथा में विदित है कि, एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास जवाब लेने गईं कि उन्होंने शिव जी को यज्ञ में निमंत्रित क्यों नहीं भेजा। इस बात पर राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। सती बहुत रोईं, उनसे अपने पति का अपमान नहीं देखा गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर दिया। सती के मृत्यु का समाचार सुन खुद भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया था। वहीं कई यह भी मान्यता देते है कि, यह आग पूस की आखिरी रात और माघ की पहली सुबह की कड़ाके की ठंड को कम करने के लिए जलाई जाती है।
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