इस देश में राजनीतिक कर्णधार अपने फायदों के लिए पुलिस का इस्तेमाल करते हैं । पुलिस इतनी ज़्यादा मज़बूत हो चुकी है कि वास्तव में यह देश पुलिस राज्य बन चुका है । हर वैध-अवैध के मालिक ये कर्णधार ऐसे देश प्रेमी हैं जो वतन को बेच-बेचकर खा रहे हैं । हमारा देश दुनिया का एकमात्र देश है जहां बेगुनाह मुसलमानों से जेल भरी पड़ी है । सांप्रदायिक दंगों में क़त्ल होने वाला मुसलमान ही कातिल बनाया जाता है । हज़ारों मुस्लिम नौजवानों की ज़िंदगी बेगुनाह होते हुए भी जेलों की चार दीवारी में गुज़र गई । पुलिस ऐसा क्यों करती है ? एक तो मुसलमानों के ख़िलाफ उसके मनो-मस्तिष्क में कूट-कूटकर भरी गयी नफ़रत और दुश्मनी, दूसरे अपनी अकर्मण्यता पर परदा डालने के लिए। पुलिस जब भी ये ग़लत काम करती है तो उसे सरकार का पूरा-पूरा समर्थन प्राप्त होता है ।
ताज़ा मामला मध्य प्रदेश के बैतूल से सामने आया है । मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा दाढ़ी देख मुस्लिम समझ कर एक हिंदू को बुरी तरह पीट दिया । इस तरह के मामले में समाज में व्याप्त मुस्लिमों के खिलाफ नफरत और पुलिस की मनमानी एवं अत्याचार को दर्शाता है। क्या मध्य प्रदेश पुलिस दाढ़ी से मुसलिमों की पहचान करती है और फिर उसी आधार पर पिटाई करती है?
‘द वायर’ के अनुसार वहाँ के एक वकील दीपक बुंदेले ने पुलिस पर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि 23 मार्च को उनको पुलिस ने तब पीटा था जब वह हॉस्पिटल में इलाज के लिए जा रहे थे। दीपक बुंदेले कहते हैं, ‘तब देश भर में लॉकडाउन की घोषणा नहीं हुई थी लेकिन बेतुल में धारा 144 लागू की गई थी। मैं पिछले 15 वर्षों से मधुमेह और रक्तचाप का गंभीर रोगी हूँ। चूँकि मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था, मैंने अस्पताल का दौरा करने और कुछ दवाएँ लेने का फ़ैसला किया। लेकिन मुझे पुलिस द्वारा बीच में ही रोक दिया गया।
उनका आरोप है कि उन्होंने जब स्थिति बतानी चाही तो एक पुलिस कर्मी ने तमाचा मार दिया, बिना कुछ सुने ही। वह कहते हैं, ‘जब मैंने संवैधानिक दायरे में पुलिस कार्रवाई का सामना करने बात कही तो पुलिस वाले आग बबूला हो गए और मुझे व संविधान को गालियाँ देते हुए पीटना शुरू कर दिया। जब मैंने बताया कि मैं एक वकील हूँ और ऐसे नहीं छोड़ूँगा तब वे रुके।’ वह कहते हैं कि तब तक उनके कान से ख़ून निकलने लगा था और शरीर के दूसरे हिस्से में भी गंभीर चोटें आई थीं।
शिकायत वापस लेने के लिए मिल रही धमकी
दीपक का आरोप है कि पुलिस उनपर शिकायत वापस लेने के लिए काफी दबाव बना रही है। दीपक कहते हैं, “पहले तो हमें कहा गया कि दाढ़ी की वजह से पिटाई हुई, लेकिन मैं कई सालों से दाढ़ी रखता आ रहा हूं। अगर मैं मुसलमान भी होता तो क्या किसी पुलिस वाले को मुझे पीटने का हक मिल जाता? अब जब मैं शिकायत वापस नहीं ले रहा हूं, तो हमें धमकाया जा रहा है कि देख लेंगे तुम कैसे कोर्ट में प्रैक्टिस करते हो, मेरा छोटा भाई भी वकील है, उसे प्रैक्टिस करने देने को लेकर भी धमकी मिल रही है।”
‘द वायर’ ने ऑडियो को जारी किया है जिसमें दावा किया गया है कि इसमें दीपक बुंदेले और कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों की आवाज़ है। उस ऑडियो में कथित तौर पर पुलिस अधिकारी को कहते सुना जा सकता है कि कुछ कर्मचारियों की ग़लती से उन पर हमला हो गया जिन्होंने उनकी दाढ़ी की वजह से मुसलिम समझ लिया था।
ऑडियों में की गई बातचीत
इस ऑडियो में कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों को यह कहते सुना जा सकता है, ‘हम उन अधिकारियों की ओर से माफ़ी माँगते हैं। घटना के कारण हम वास्तव में शर्मिंदा हैं। यदि आप चाहें तो मैं उन अधिकारियों को ला सकता हूँ और उन्हें आपके लिए व्यक्तिगत रूप से माफ़ी मँगवा सकता हूँ। एक पुलिस अधिकारी को तो यह कहते सुना जा सकता है, ‘कृपया हमारे अनुरोध को मान जाइए । समझिए कि हम गाँधी के देश में रह रहे हैं। हम सभी गाँधी के बच्चे हैं… मेरे कम से कम 50 दोस्त आपकी जाति से हैं।’
‘हम आपके ख़िलाफ़ कोई दुश्मनी नहीं रखते हैं। जब भी कोई हिंदू-मुसलिम दंगा होता है, पुलिस हमेशा हिंदुओं का समर्थन करती है; मुसलमानों को भी यह पता है। लेकिन जो कुछ भी आपके साथ हुआ वह अज्ञानता के कारण हुआ। उसके लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है।’
दीपक बुंदेले कहते हैं कि वह शिकायत वापस नहीं लेंगे। वह कहते हैं कि इस मामले में अभी भी एफ़आईआर दर्ज नहीं की गई है। इस पर अभी तक पुलिस की ओर से कोई सफ़ाई नहीं आई है। ‘द वायर’ ने लिखा है कि बेतुल एसपी से उनकी टिप्पणी माँगी गई है ।
पुलिस का मुसलमानों पर ज़ुल्म नया नहीं है
बाबरी के बाद देश के कुछ हिस्सों में हुए आतंकी हमलों ने मुसलमानों के ऊपर नया संकट पैदा किया। आतंकी हमलों की आड़ में सरकारों ने मुसलमानों का उत्पीड़न करना शुरू कर दिया। मुस्लिम युवकों को दशकों तक क़ैद में रखकर यातनाएं दी गईं। बाद में ये लोग निर्दोष साबित हुए। दशकों तक बेगुनाह मुसलमानों को आतंकवाद के झूठे मामलों में फंसा कर उनका पूरा जीवन एक अंधेरे में गुज़र गया ।
आज भी हज़ारों मुसलमान झूठे आरोपों में जेलों में बंद ज़िदगी काटने को मजबूर हैं।इधर पिछले कुछ सालों में गोरक्षा और लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों की लिंचिंग और उन पर हुए हमले हमें याद दिलाते रहे कि भारत अब भी मुसलमानों के लिए उदार नहीं है। 2014 में जब पहली बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनी, तब से मुसलमानों के ख़िलाफ़ माहौल और अधिक विषाक्त हो गया है। बड़े और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ खुलेआम जहर उगला ।
देश की मुख्यधारा के हिन्दी मीडिया और दूसरी भारतीय भाषाओं के टीवी चैनलों ने भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुसलमानों को राजनीतिक और सामाजिक तौर पर दरकिनार कर देने की एक पूरी प्रक्रिया सुनियोजित तरीके से चलाई गई।2019 में सत्ता वापसी के बाद मोदी सरकार ने मुसलमानों के ऊपर कई संवैधानिक और क़ानूनी हमले किए ।
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर महीनों तक उसे क़ैद में रखना, तीन तलाक को आपराधिक घोषित करना और राम मंदिर निर्माण के फ़ैसले ने मुसलमानों को अलग-थलग महसूस कराया। एनआरसी और नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों ने मुसलमानों को आपसी भाईचारे और उम्मीद की एक किरण दिखाई थी। इन प्रदर्शनों में हर मजहब-पंथ के लोग कंधे से कंधा मिलाकर एकसुर में बोल रहे थे।
ऑडियो आप द वायर की वेबसाइट पर सुन सकते हैं ।
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