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क्या आत्मरक्षा की आढ़ में ‘सेलेक्टिव किलिंग’ कर रही यूपी पुलिस ?

एनआरसी और सीएए के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हुए और अब भी जारी हैं। सीएबी के दोनों सदनों में पास होने और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद जब इसे क़ानून की शक्ल मिली तो देशभर में इसके विरोध में प्रदर्शनों की आग तेज़ी से फ़ैलना शुरू हो गयी। पूर्वोत्तर के राज्यों में इस क़ानून को लेकर काफ़ी हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। हिंसा में लोगों के मारे जाने की ख़बरें आने लगीं।

By Nehal Rizvi
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क्या आत्मरक्षा की आढ़ में ‘सेलेक्टिव किलिंग’ कर रही यूपी पुलिस ?

ग्राउंड रिपोर्ट । नेहाल रिज़वी

एनआरसी और सीएए के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हुए और अब भी जारी हैं। सीएबी के दोनों सदनों में पास होने और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद जब इसे क़ानून की शक्ल मिली तो देशभर में इसके विरोध में प्रदर्शनों की आग तेज़ी से फ़ैलना शुरू हो गयी। पूर्वोत्तर के राज्यों में इस क़ानून को लेकर काफ़ी हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। हिंसा में लोगों के मारे जाने की ख़बरें आने लगीं।

पूर्वोत्तर हिंसा में 5 मौत

पूर्वोत्तर के राज्यों में सीएए के विरोध में अब तक पांच लोगों के मारे जाने की ख़बर है। पूर्वोत्तर के राज्यों में अधिकतर मरने वाले प्रदर्शनकारियों की मौत का कारण बुलेट इंज्यूरी है। भारत सरकार ने मीडिया को निर्देश जारी करते हुए पूर्वोत्तर की ख़बरों में हिंसा का प्रचार-प्रसार न करने की हिदायत दी। सरकार के हाथ की कठपुतली बन चुके मुख्यधारा की मीडिया ने पूर्वोत्तर के राज्यों में सीएए के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को दिखाना ही बंद कर दिया।

यूपी हिंसा में अब तक 21 मौत

हम लागातार बीते कई दिनों से कहीं आगजनी, कहीं पथराव, कहीं आंसू गैस के गोले से भीड़ को तितर बितर करती पुलिस, तो कहीं हवा में गोली चलाती पुलिस को देख रहे हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में देशभर में जारी प्रदर्शनों में सबसे ज़्यादा हिंसक प्रदर्शन यूपी के तमाम ज़िलों में ही हुए हैं।

उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों को रोकने के लिए यूपी पुलिस ने बर्बरता की वो हदें पार की के लोगों का दिल डर से सहम गया। पूरे यूपी में अब तक 21 लोगों की मौत की पुष्टी की जा चुकी है। मेरठ में 6, फिरोजाबाद में 4, कानपुर में 3, बिजनौर में 2, संभल में 2, वाराणसी 1, लखनऊ 1, मुज़फ्फरनगर 1 और रामपुर में 1 मौत की खबर है। अधिकांश लोगों की मौत गोली लगने से ही हुई। मरने वाले लोगों में ज़्यादातर नौजवान लड़के ही हैं। पुलिस शुरू से ही गोली चलाने को लेकर इंकार करती रही है। पुलिस का कहना हैं कि मरने वाले लोगों की मौत क्रास फ़ायरिंग में हुई है। जबकि कई वीडियो में पुलिस को पथराव करते हुए और लोगों के घरों में घुसकर तोड़फोड़ करते और गाडियों को नुक़सान पहुंचाते हुए देखा जा सकता है। साथ ही मीडिया ने तमाम ऐसे विडियो चलाए हैं जहां पर पुलिस को सीधी गोली चलाते देखा जा सकता है। बिजनौर में 20 वर्षीय मुहम्मद सुलेमान की मौत पुलिस फायरिंग में होने की बात आखिर यूपी पुलिस के अधिकारी ने स्वीकार की और कहा कि सेल्फ डिफेंस में चलाई गोली से मुहम्मद सुलेमान की मौत हुई।

लोगों ने भी चलाई गोली

मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ, बिजनौर, संभल, मुरादाबाद, फ़िरोज़ाबाद और कानपुर जैसे शहरों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं, इन झड़पों में 18 प्रदर्शनकारी मारे गए, लगभग सभी गोलियों से मारे गए। हज़ारों हिरासत में ले लिए गए और सैकड़ों गिरफ़्तार कर लिए गए। पूरे उत्तर प्रदेश में जहां-जहां पुलिस और प्रदर्शकारियों की झडपें हुई हैं वहां-वहां यूपी पुलिस की बर्बरता की कहानी को मीडिया में पढ़ा और देखा जा सकता है।

मेरठ से जारी हुई CCTV फुटेज में कुछ लोगों को दंगा फैलाते, तोड़फोड़ करते और खुलेआम कट्टा चलाते साफ देखा गया। सवाल यहाँ पैदा होता है कि पुलिस के हाथों से स्थिति इतनी बाहर कैसे चली गई और स्थिति संभालने के लिए क्या लोगों पर फायरिंग करना ही एक मात्र विकल्प रह गया था।

ग्राउंड रिपोर्ट संवाददाता ने जानी ज़मीनी हकीकत

मुज़फ्फ़रनगर के एक पुलिस अधिकारी ने नाम ना बताने की शर्त पर मुझको बताया कि, “पुलिस और प्रशासन की सांठ गांठ के चलते (मुसलमानों) को निशाना बनाया है"। मैं जब पुलिस अधिकारियों के बीच ख़डा था तब कुछ पुलिस अधिकारी आपस में बात कर रहे थे कि सरकार ने हाथ ख़ोल रखे हैं। यही मौक़ा है इनकों इनकी असली औक़ात बताने का। मैंने देखा की पुलिस ने बेहद ही सुनियोजित ढंग से टारगेट कर लोगों अपने निशाने पर लिया। पुलिस चाहती तो बेहद ही आराम से पत्थर बाज़ी कर रहे लोगों को काबू में कर सकती थी। मगर पुलिस ख़ुद चाहती थी के हिंसा का रूप थोड़ा और विक्राल हो जिससे की लोगों पर गोलियां चलाने का मौक़ा बने”।

दहशत फैलाने की कोशिश हुई

मुज़फ़्फ़रनगर में मुस्लिम बस्तियों में कई घर तोड़ दिए गए, सड़कों पर खड़ी गाड़ियों और अन्य संपत्तियों को तहस-नहस किया गया। जिस तरह से सामान को तोड़ा गया था उससे ऐसा लगता था उन्हें किसी बात की सज़ा दी जा रही है या उन्हें नुक़सान पहुंचाया जा रहा है। तोड़फोड़ करने वालों की हरकतों से नफ़रत साफ़ दिख रही थी। इसी शहर के मेन रोड पर केवल मुसलमानों की 52 दुकानें सील कर दी गई हैं। लोगों का राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान का ज़िक्र कर रहे हैं जिसमे उन्होंने कहा था कि 'सरकारी सम्पत्तियों को नुक़सान पहुँचाने वाले प्रदर्शनकारियों से बदला लिया जाएगा।'

यूपी के अधिकतर शहरों में पुलिस की बर्बरता और दिल दहला देने वाले विडियो सामने आएं हैं। पुलिस ने सभी शहरों में टारगेट करते हुए लोगों की संपति को नुक़सान पंहुचाया है। सभी शहरों में पुलिस की बर्बरपूर्ण कारवाई को देखकर लगता है कि किसी के निर्देश पर पुलिस ने कारवाई के बजाए बदला लेना शुरू कर दिया। मुज़फ़्फ़रनगर शहर के एसपी सतपाल अंतील का कहना था कि, “पुलिस तोड़फोड़ कर रही है ऐसी कोई शिकायत उन तक नहीं पहुंची है। अगर लोगों ने शिकायत दर्ज कराई तो उसकी जाँच होगी और दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी’।

सोशल मीडिया पर भी पहरा

23 दिसंबर तक उत्तर प्रदेश में 174 मुकदमे दर्ज कर 705 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। कथित तौर पर सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट लिखने पर 81 मुकदमे दर्ज कर 120 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है। डीजीपी मुख्यालय के अनुसार 23 दिसंबर तक कुल 1786 ट्विटर, 3037 फेसबुक, 38 यूट्यूब पोस्ट पर कार्रवाई की गई है। 21 दिसंबर को आईजी लॉ एंड आर्डर ने बताया कि सीएए आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में 4500 लोगों को निजी मुचलके पर पाबंद किया गया है। उन्होंने बताया कि अब तक 263 पुलिस कर्मी घायल हुए हैं जिसमें 57 पुलिस कर्मी को बुलेट इंजरी आई है।

20 जिलों में इंटरनेट बंद रहा

उत्तर प्रदेश में लगभग 20 जिलों में इंटरनेट सेवाएं बंद रहीं। इन जिलों में लखनऊ, आजमगढ़, मऊ, वाराणसी, मेरठ, संभल, मुजफ्फरनगर, प्रयागराज, अलीगढ़, सुल्तानपुर, आगरा, गाजियाबाद, सहारनपुर, मुरादाबाद, कानपुर और रामपुर शामिल हैं। इंटरनेट सेवाओं के बंद होने से ऑनलाईन व्यापार और काम करने वालों को लाखों का नुक़सान भी उठाना पड़ा।

हाथ खोलकर कार्यवाई के थे आदेश

पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों से निपटने की कारवाई को देश भर में लोग बदले के नज़रिए से देख रहे हैं। मेरठ में हुई हिंसा के बाद मैंने वहां एक पुलिस अधिकारी से पुलिस की बर्बरता पर बात की। नाम ना बताने की शर्त पर उन्होंने मुझे बताया कि, “ पुलिस महकमें में मुझे डेढ़ दशक से ज़्यादा का समय हो चुका है। मैंने सभी तरह की हिंसा को बेहद क़रीब से देखा है और काबू भी किया है। इससे बड़ी-बड़ी हिंसा को भी देखा और बिना किसी मौत के प्रदर्शनकारियों को शांत कर शांति कायम की है। मगर नागरिकता संशोधन क़ानून पर हिंसा कर रहे प्रदर्शनकारियों से जिस तरह इस बार यूपी पुलिस कारवाई कर रही थी मैं बेहद आश्चर्य था। मैंने अपने साथियों से कहा हम बिना गोली चलाए लोगों पर काबू कर सकते हैं। मगर ज्यादातर साथियों का जवाब था परेशान मत हो इस बार हाथ खुले हैं। मैने अपने पूरे कार्यकाल में पुलिस की इस तरह की बर्बरता वाली कार्यवाई नहीं देखी थी। यह ऐसा था मानों हम लोग बदला ले रहे हों”।

पूरे प्रदेश में यूपी पुलिस की बर्बर कारवाई का रूप एक सा रहा। मानों ऐसा लग रहा था कि किसी ने पुलिस को इस तरह की बर्बरतापूण कारवाई के निर्देश दिए हों। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार पुलिस ने यूपी के सभी शहरों में हिंसा को जानबूझकर बढ़ने दिया है। लोगों के घरों में घुस कर लूटपाट की और ज़ेवर तक लूट लिए। प्रदर्शनकारियों से ज़्यादा पुलिस ने संपति को नुक़सान पहुंचाया और तहस-नहस किया। अंग्रेज़ी के अख़बार टेलीग्राफ के हवाले से ख़बर है कि पुलिस वाले जब लूटपाट कर रहे थे तो कहते जा रहे थे, "मुस्लमान पाकिस्तान जाएंगे या तो कब्रस्तान जाएंगे"।

अब बात यूपी के कानपुर शहर की जहां मै ख़ुद अधिकतर घटना को कवर रहा था।

20-21 दिसंबर, शुक्रवार को कानपुर में हुई हिंसा से एक हफ्ता पीछे चलते हैं। सीएए और एनआरसी को लेकर पूरे देश में प्रदर्शन शुरू हो गए थे। शुरूआत में इक्का-दुक्का मौतों की ही ख़बर थी। कानपुर शहर में सबसे पहले भीड़ को जमा कर सभी मुस्लिम क्षेत्रों में सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ AIMIM के कुछ नेताओं ने प्रदर्शन शुरू कर दिए थे। 14 दिसंबर शुक्रवार को हलीम कालेज चौराहे से एक जुलूस निकाला गया और परेड़ यतीम खाना पर जुलूस को पुलिस ने रोककर आगे जाने नहीं दिया। इस रैली को AIMIM पार्टी से जुड़े कुछ नेताओं की कयादत में निकाला गया था। इस रैली की कयादत करने वालों में मुख्य नेता रहे थे, हाजी यूसुफ़ मंसूरी, दिलदार ग़ाज़ी, उमर मारूफ़ औऱ अन्य कार्यरता। ये प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा और ज़्यादा भीड़ भी नहीं शामिल हो सकी।

नेताओं ने लोगों को डराना शुरू किया

अब शुरू हुआ लोगों को जोड़कर एक बड़ी रैली निकालने का सिलसिला । शहर में जहां-जहां मुस्लिम आबादी बस्ती है वहां-वहां विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए अपील की जाने लगी। सबसे आगे जो लोग रहे वे ओवैसी की पार्टी से ज़ुडे हुए लोग ही थे। तरह-तरह की बातों से मुस्लमानों को डराया और गुमराह किया जाने लगा। एक हफ़्ते तक पूरे शहर में यह सूचना फैल गई कि 20 दिसंबर को शुक्रवार के दिन परेड यतीम खाने पर पहुंचकर सीएए और एनआरसी के विरोध में एक बड़ी रैली करना है। 18 और 19 दिसंबर की रात मैं कड़ाके की ठंड में रात भर शुक्रवार को होने वाली रैली को लेकर लोगों से बात करने लगा। दो रातों को लगातार अलग-अलग इलाक़ों में जागकर लोगों से बात कर के समझ गया था कि 20 दिंसबर को बहुत बड़ी ही संख्या में लोग जमा होने वाले हैं। सभी मुस्लिम मुख्यता शुक्रवार की नमाज़ के बाद ही अपनी दुकानों को खोलते हैं। 19 दिसंबर की रात को पूरे मुस्लिम क्षेत्रों में बस यही चर्चा थी कि कल रैली में चलना है। मै समझ गया था कि हिंसा होने की अधिक संभावना है। जुमे को होने वाली भीड़ का मुझे अंदाज़ा होने लगा था। मुस्लमान इस मसले पर एक सुर में बात कर रहे थे।

आईबी का दावा है कि 20 दिसंबर को जुमे की नमाज़ के बाद कानपुर शहर में हिसां और बवाल होने का इनपुट था। एक दिन पहले हुई पुलिस अधिकारियों की बैठक में हिंसा होने की संभावना जतायी थी। पुलिस ने सभी मुस्लिम क्षेत्रों में स्थिति जानने और सूचना प्राप्त करने लिए लोगों का गठन कर काम पर लगा दिया था।

राजेश सिंह , एसपी इंटेलीजेंस ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि, “रिपोर्ट में जुमे की नमाज़ के बाद हिंसा होने का ज़िक्र था और अधिकारियों से इस रिपोर्ट को साझा भी किया गया था”।

हिंसा के पहले से थे इनपुट

त्रिपाठी, एसएसपी एलआईयू ने बताया, “आईबी का इनपुट था कि जुमे की नमाज़ के बाद बवाल हो सकता है। पर स्थानीय स्तर पर जो जानकारियां मिली थीं, उसमें रविवार को हिंसा होने की आशंका जताई गई थी”।

एसएसपी अंनत देव ने बताया कि, “रविवार को भीड़ इकठ्ठा होने की जानकारी थी। जुमे की नमाज़ में अमूमन भीड़ होती है। इसको लेकर हर स्तर पर पुलिस अलर्ट थी”। अब कुछ सवाल पुलिस की लापरवाही पर ख़डे होते हैं।

आईबी का हिंसा को लेकर इनपुट होने के बाद भी पुलिस ने इनपुट को इग्नोर क्यों किया? जब एक दिन पहले पुलिस अधिकारियों की बैठक में हिंसा होने की संभावना जतायी गई तो पुलिस ने इस मसले पर गंभीरता क्यों नहीं दिखाई?

जब पुलिस ने सभी मुस्लिम क्षेत्रों में स्थिति जानने के लिय टीम लगा रखी थी, तो उसको रैली में होने वाली भीड़ का अंदाज़ा कैसे नहीं हुआ?

20 दिसंबर का आंखों देखा हाल

क्या पुलिस ये चाहती थी कि प्रदेश के अन्य शहरों की तरह कानपुर में भी हिंसा हो?
पुलिस कानपुर में होने वाली हिंसा को रोक सकती और इसको लेकर आईबी के इनपुट के बावजूद भी कोई ठोस क़दम क्यों नहीं उठाया?

20 दिसंबर दिन शुक्रवार, मैं जल्दी उठा और महज़ चाय पीकर शहर का माहौल को देखने के लिये निकल पड़ा। दिल्ली भेजने के लिये मुझे ख़बरें भी कवर करना थी। मुझे पता था शुक्रवार 12 बजे का बाद से पूरे शहर में इंटरनेट सेवाएं बंद रहेंगी। सभी इलाक़ों और गलियों से होता हुआ मैं ठीक 1 बजकर 30 मिनट पर परेड यतीम खाना पहुंचा। नमाज़ियों की ख़ासा भीड़ थी। मुझे पुलिस फोर्स की तैनाती देखना थी। जैसे ही मैं परेड पर निकल कर आया तो चौंक गया। बेहद ही कम पुलिस फ़ोर्स और गिरफ्तारी के लिय महज़ दो बसें खड़ी थी। पुलिस के साथ मीडिया की पूरी टीम भी खडी हुई थी।

मैं दौड़ता हुआ वापस यतीम खाने की ओर बढ़ा और अंदर गलियों में चला गया। पीछे हज़ारों की तादात में लोग इकठ्ठा होकर ख़ड़े थे कि वे लोग इंतेज़ार कर रहे थे कि जैसे ही नमाज़ खत्म हो वे लोग चौराहे पर निकले। कानपुर शहर में सबसे मुस्लिम धनी आबादी वाला क्षेत्र भी यही है। इस इलाके का इतिहास रहा है कि हिंसा और प्रदर्शन की शुरूआत भी यहीं से होती रही है। पीछे इतनी भीड़ बढ़ती जा रही थी जिसका अंदाजा तो मुझे भी नहीं था। चौराहे पर खड़े पुलिस अधिकारियों को भीड़ का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था। जैसी ही 2 बजे नमाज़ ख़त्म हुई औऱ नमाज़ी पूरी तरह से नमाज़ पढ़कर उठ पाते भीड़ नारे लगाते हुए आगे बढ़ने लगी। चौराहे पर ख़डे सभी अधिकारियों और पुलिस ने भीड़ को रोकने की कोशिश की मगर भीड़ इतना ज़्यादा थी के उन्हें रोकना बेहद मुशकिल था। पुलिस महकमें ने जैसे ही भीड़ को देखा उनके हात-पावं फूल गए और चेहरे पर घबराहट दिखने लगी। सभी अधिकारियों ने लोगों को समझाना शुरू कर दिया की कोई हिंसा न करे।

लगातार 3 घंटे तक लोग आते गए और इस तरह हज़ारों की भीड़ लाखों में बदल गई। पुलिस प्राशासन को इतनी भीड़ जमा होने का ना तो अंदाज़ा था ना ही इतना बड़ी भीड़ को काबू करने लिए पुलिस बल। भीड़ धीरे-धीरे परेड़ से बढ़कर बड़ा चौराहा, माल रोड़, छावनी और धीरे-धीरे शहर के मुख्य एरियों तक पहुंच गई। पूरे शहर में लोग दहशत में आ गए। सभी बाज़ार बंद हो गए और ट्रैफिक जाम हो गया। प्रदशर्न कर रहे लोगों ने मीडिया को वीडियों और फ़ोटो लेने से भी मना किया। किसी को भी मोबाइल से भी वीडियो नहीं लेने दिया गया।

मुझे फ़ोन पर सूचना आई कि बाबूपुरवा में पुलिस औऱ प्रदर्शकारियों के बीच झड़प हो गई है। पुलिस ने लोगों पर फ़ायरिंग भी शुरू कर दी है। मैं आश्चर्य में था कि पूरे शहर का मुसलमान तो इधर है वहां हिंसा कैसे हो गई। यतीम खाने से निकली रैली में छुट-पुट पत्तरबाज़ी की घटना हुई जिसे पुलिस ने काबु कर लिया था। धीरे-धीरे रात तक भीड़ छट गई और लोग लौट गए। अगर ये भीड़ उग्र हो जाती तो पूरा शहर हिसां की चपेट में आ जाता और तब शायद सेना को ही मोर्चा संभालना पड़ता।

हालांकि कानपुर ज़ोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक प्रेम प्रकाश इसकी वजह ये बताते हैं, "धारा 144 भले ही लागू थी लेकिन धार्मिक स्थलों पर और धार्मिक वजहों से जुटने पर हमने सख़्ती नहीं की। शुक्रवार को मस्जिदों में नमाज़ के लिए लोग इकट्ठा होते हैं इसलिए उन्हें वहां जाने से नहीं रोका गया। उसके बाद लोगों ने बाहर निकलकर प्रदर्शन किया, फिर भी प्रशासन सख़्त नहीं हुआ लेकिन जब पत्थरबाज़ी और आगज़नी शुरू हो गई तो मजबूरन पुलिस को सख़्त होना पड़ा।"

रात में हर तरफ़ अफवाहों का दौर शुरू था कि पुलिस ने बेगमपुरवा में 12 लोगों को गोली मार दी। कहीं सूचना थी की 5 लोगों को पुलिस ने मौत के घाट उतार दिया।

एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "शहर की ज़्यादातर फ़ोर्स परेड इलाक़े में ही लगी थी क्योंकि वहां भीड़ बहुत थी और एक दिन पहले कई शहरों में जो हालात बने थे उन्हें देखते हुए हिंसा की आशंका भी वहीं थी। लेकिन जब यहां अचानक हिंसा हुई तो फ़ोर्स को इधर डाइवर्ट करना पड़ा। ये तो अच्छा हुआ कि परेड में हंगामा नहीं हुआ, अन्यथा कानपुर में इतनी फ़ोर्स ही नहीं थी कि उससे निपट सकती।"

अगली सुबह मैं बाबुपुरवा पहुंचा तो पुलिस ने 13 लोगों को गोली से घायल होने की पुष्टी की। दो प्रदशनकारियों की गोली लगने से उसी दिन मौत हो गई थी जबकि अगले दिन 21 दिंसबर को गोली लगने से घायल एक और प्रदर्शनकारी की मौत हो गई । कानपुर के बेगम पुरवा में हुए हिंसक प्रदर्शन में गोली लगने से पुलिस ने तीन लोगों के मौत की पुष्टी की। कई पुलिस कर्मी और अधिकारी भी ज़ख्मी हुए । मौत की ख़बर पूरे शहर में आग की तरह से फ़ैली । पुलिस फ़ायरिंग से इंकार करती रही मगर बाद में जारी वीडियों में साफ़ देखा गया कि पुलिस स्ट्रेट फ़ायरिग कर रही है। पुलिस ने बाद में मीडिया से बात करते हुए कहा कि प्रदर्शनकारी भी गोलियां चला रहे थे आत्मरक्षा में उन्हें भी फायरिंग करनी पड़ी। लेकिन वीडियों में साफ़ देखा जा सकता है कि पुलिस ऐम लेकर फायरिंग कर रही है।

21 दिसंबर शनिवार को पूरे शहर का माहौल तेज़ी से बिगड़ने लगा। पुलिस को अशंका थी की यतीम खान पर लोग हिंसा करने निकल सकते हैं।

पुलिस ने चप्पे-चप्पे पर 7500 सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए थे। आईजी मोहित अग्रवाल ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि कानपुर की संवेदनशीलता को देखते हुए पहले से ही 6 कंपनी पीएसी , दो कंपनी पीएसी, दो कंपनी RAF फोर्स तैनात थी। मगर अब मौजूदा हालात को देखते हुए शासन ने एक डीआईजी और एक एसपी भेजने का फैसला लिया है। इसके साथ ही दो कंपनी पीएसी और दो कंपनी RAF भी बढ़ा दी गयी है।

यतीम खाने पर हिंसा का कारण बना बाबुपुरवा में मरे आफ़ताब आलम 25 और सैफ़ 25 के जनाज़े को उनके परिवार वालों को न देकर पोस्मार्टम हाउस से सीधे कब्रस्तान मे दफन करने का फ़ैसला। जैसे ही लोगों में ये ख़बर फ़ैली की बाबुपुरवा में मरे दो लड़कों की मिट्टी पुलिस ने देने से इनकार कर दिया है। पुलिस हैलट में बने पोस्टमार्टम हाउस से सीधे कब्रस्तान ले जाएगी। लोग इस बात पर खिसया गए और यतीम खाने पर जमा होने लगे। लोगों में इस बात को लेकर बेहद ग़ुस्सा दिख रहा था। मैं समझ गया था प्रसाशन की ये ज़िद हिंसा करा देगी। मैं यतीम खाने चौराहे की तरफ़ भागा। लोग ग़ुस्सें में उधर ही बढ़ रहे थे। पुलिस प्रशासन दोनों लड़के के जनाज़े देने से इस लिय इनकार कर रहा था कि कहीं बेगमपुरवा में दोबारा से हिंसा ना भड़क उठे।

यतीम खाने चौराहे पर जैसे ही मैं पहुंता तो 50 लड़के ही ख़डे थे। पुलिस चाहती तो उन सब को वहां से भगा सकती थी। मगर पुलिस ने भीड़ जमा होने दी। जैसे ही भीड़ की संख्या अधिक हुई तो लोगों ने पुलिस पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिय। पुलिस ने उन्हे आराम से भगा सकती थी मगर पुलिस ने सखती नहीं दिखाई और भीड़ उग्र हो गई। मैं पुलिस की साईड़ भागा और विडियो बनाने के लिय मोबाइल निकालकर खडा हो गया। भीड़ उग्र हो चुकी थी। दोनों तरफ़ से पत्थरबाज़ी चालू थी। भीड़ ने जैसे ही एक गाड़ी को आग के हवाले किया तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले चलाना शुरू कर दिए। मैं साइड़ में चला गया। मैने देखा पुलिस ने चौकी के बाहर ख़डी कुछ गाडियों में बोतल से कुछ नाया और पीछे हटी और अलगे ही पल उन गाडियों में आग लग गई।

मैं समझ गया कि पुलिस ने पेट्रोल डालकर ख़ुद ही आग लगाई है। भीड़ बेकाबू हो चुकी थी। सभी मीडिया वाले पुलिस कि पीछे और साइडों में खडे होकर फ़ोटे ले रहे थे। तभी पुलिस ने फ़ायरिंग चालू कर दी। लोग पीछे हटे और भागने लगे। कुछ पुलिस वाले चिल्ला रहे थे, "मारों सालों को"। स्ट्रेट मार स्ट्रेट। एक पुलिस वाला बोलत लेकर चौकी के पास खडी गाडियों की तरफ़ बढ़ा और बोतल से पेट्रोल पलटने लगा मैंने उसको जैसी ही देखा तो आगे की ओर बढ़कर अपने मोबाइल से शूट करने के लिय मोबाइल निकाला, तो एक पुलिस वाले ने मेरे मोबाइल का निशाना लेते हुए एक पत्थर मारा और वे पत्थर मोबाइल को मिस करता हुआ मेरे चेहरे पर लगा और मुझे चोट आ गई। इसके आगे की घटना मैं कवर नहीं कर पाया। अलगी सुबह अख़बारों में छपि ख़बरों से पता चला कि देर शाम तक पुलिस ने हालात पर काबु कर लिया था। पुलिस ने यतीम खाने पर लोगी चलाने को लेकर कहा कि आत्मरक्षा के लिय चलाना पड़ी, क्योंकि भीड़ की तरफ़ से भी फायरिंग हो रही थी।

अब कुछ प्रमुख सवाल-

यतीम खाने पर 21 दिसंबर को हुई हिंसा को रोका जा सकता था ?

क्या पुलिस चाहती थी के यतीम खाने पर हिंसा भड़के ?

पुलिस का गाडियों में खुद आग लगाना हिंसा को बढ़ावा देने की तरफ़ इशारा करता है?

जब पुलिस को यतीम खाने पर भीड़ जमा होते दिख रही थी तो उसे तुरंत क्यों नहीं भगाया?

21 दिसंबर को यतीम ख़ाने पर भड़की हिंसा में 3 पुलिस वालों के भी चोटें भी आईं । 21 दिसंबर की रात में पुलिस ने इलाकों के अंदर घुसकर तोड़फ़ो शुरू कर दी। लाइटों के बंद करके बाहर ख़डें वाहनों को तोड़ना शुरू कर दिया। कुछ दुकानों के ताले तोड़कर पूरी दुकान को तहस-नहस कर दिया। लोगों के घरों में घुसकर तोड़फोड़ शुरू कर दी। पूरी रात पुलिस इलाक़ों में घुस कर गाडियों और दुकानों में तोड़फ़ोड़ करती रही।

अगली सुबह जब मैं क्षेत्रों का जायज़ा लेने निकला तो पुलिस की बर्बता का मंज़र आखों के सामने था। बाहर ख़डी अधिकतर गडियों के शीशे पुलिस ने तोड़ दिए थे। दुकानो को ताला तोड़कर बरबाद कर दिया था। रोड़ों पर सिर्फ़ कांच फैला हुआ था। लोग पुलिस की इस हरकत से नाराज़ थे। इलाक़े के लोगों ने पुलिस के खिलाफ़ कोर्ट जाने का भी फ़ैसला कर लिया है। लाइट बंद करके पुलिस की इस हरकत से लोग बेहद नाराज़ है।

सोचने वाली बात है कि पूरे यूपी में जहां-जहां हिंसा हुई है पुलिस ने इतनी ही बर्बरता से लोगों को घरों में घुसकर मारा और सामान तोड़ा है। यह एक बड़ा सवाल है। डीजीपी गोली चलने की बात से इंकार करते रहे और पुलिस ने जहां-जहां हिंसा हुई वहां-वहां गोलियां चलायीं। पुलिस की इस बर्बर कारवाई से प्रदेश की पुलिस सवालों के घेरे में हैं। पुलिस की कारवाई में बदला और सुनियोजित तरीक़े से हिंसा को बढ़ावा देना साफ़ नज़र आता है।

कानपुर में अब तक 1231 लोगों पर दर्ज हो चुकी है एफआईआर । पूरे यूपी में 57 पुलिसकर्मियों को गोली लगी है। किसी भी पुलिसकर्मी की हिंसा में मौत नहीं ही है। 263 पुलिसकर्मी अब तक हिंसा में पूरे सूबे में घायल हुए हैं।

पुलिस ने 24 दिसंबर को प्रेसवार्ता कर जानकारी देते हुए बताया कि, “कानपुर में हुई हिंसा में 42 पुलिसकर्मी घायल हैं। एसएसपी ने बताया कि उग्र भीड़ ने जब पुलिस पर हमला किया तो पुलिस ने आत्मरक्षा में हवाई फायरिंग की है। पुलिस ने बाबुपुरवा में 4 राउंड़ फायरिंग की है। एसएसपी ने आगे बताया कि उपद्रवियों ने पुलिस पर तमंचो से फायरिंग की है। इसकी भी जांच चल रही है”।

पुलिस का कहना है कि उसने आत्मकरक्षा के लिय हवाई फ़ायर किए थे। बाबुपुरवा में 13 लोगों के गोली लगने की पुष्टी हुई और जिसमें 3 की मौत हुई।

अगर पुलिस ने हवाई फायर किए थे तो 13 लोगों को गोली कैसे लगी?

वीडियो फोटेज में पुलिस को साफ़ सीधे-सीधे गोली चलाते हुए देखा जा सकता है। एसएसपी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि अब तक 17 एफआईआर में 21 हज़ार से अधिक लोग आरोपी है। अधिकतर FIR 144 के उल्लंघन की हैं। अब तक 11 आरोपी जेल जा चुके हैं और 30 से अधिक लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ जारी है।