सोशल मीडिया पर 9 अगस्त यानी विश्व आदिवासी दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश की मांग उठने लगी है. आदिवासी समुदाय के लोग और आदिवासी चिंतक ट्विटर के ज़रिये अपनी बात रख रहे हैं. दलित चिंतक, अम्बेडकरवादी और आदिवासियों की आवाज़ हंसराज मीणा ने ट्विटर पर लिखा…
मैं प्रधानमंत्री @narendramodi जी व देश के तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अपील व अनुरोध करता हूँ कि आगामी 9 अगस्त को "विश्व आदिवासी दिवस" पर संपूर्ण देश में "राष्ट्रीय अवकाश" घोषित करें। आखिर @UN की घोषणा के बाबजूद भी भारत ऐसा क्यों नहीं करता? #विश्वआदिवासी_दिवस_NH_घोषित_करो
9 अगस्त को ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के रूप में पहचाना जाता है. इस दिन संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने आदिवासियों के भले के लिए एक कार्यदल गठित किया था जिसकी बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी. उसी के बाद से (UNO) ने अपने सदस्य देशों को प्रतिवर्ष 9 अगस्त को ‘विश्व आदिवासी दिवस’ मनाने की घोषणा की.
निर्धारित ट्विटर स्टॉर्म में लोगों ने #विश्वआदिवासीदिवस_NHघोषित_करो ये हैशटैग चलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आव्हान किया की वह 9 अगस्त का अवकाश घोषित करें. तो ट्राइबल आर्मी और दलित आर्मी के नेशनल कन्वीनर यश मेघवाल ने भी इस मांग का समर्थन किया.
पीएम @narendramodi जी, से अपील है कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आधिकारिक तौर पर हर वर्ष की तरह घोषित "विश्व आदिवासी दिवस" को केंद्र व तमाम राज्य सरकार इस बार यहाँ "राष्ट्रीय अवकाश" के रूप में मनाए। आखिर भारत के आदिवासियों के साथ ये भेदभाव क्यों? #विश्वआदिवासी_दिवस_NH_घोषित_करो
जब 21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने महसूस किया कि आदिवासी समाज उपेक्षा, बेरोजगारी एवं बंधुआ बाल मजदूरी जैसी समस्याओं से ग्रसित है, तभी इस समस्याओं को सुलझाने, आदिवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए इस कार्यदल का गठन किया गया था. (UNWGIP)
आदिवासी शब्द दो शब्दों ‘आदि’ और ‘वासी’ से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है.
भारत की जनसंख्या का 8.6% यानी कि लगभग (10 करोड़) जितना बड़ा एक हिस्सा आदिवासियों का है.
भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए ‘अनुसूचित जनजाति’ पद का इस्तेमाल किया गया है.
भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में जाट, गोंड, मुंडा, खड़िया, हो, बोडो, भील, खासी, सहरिया, संथाल, मीणा, उरांव, परधान, बिरहोर, पारधी, आंध,टोकरे कोली, महादेव कोली,मल्हार कोली, टाकणकार आदि शामिल हैं.
आदिवासी समाज के लोग अपने धार्मिक स्थलों, खेतों, घरों आदि जगहों पर एक विशिष्ट प्रकार का झण्डा लगाते है, जो अन्य धमों के झण्डों से अलग होता है.
आदिवासी झण्डें में सूरज, चांद, तारे इत्यादी सभी प्रतीक विद्यमान होते हैं और ये झण्डे सभी रंग के हो सकते है। वो किसी रंग विशेष से बंधे हुये नहीं होते.
आदिवासी प्रकृति पूजक होते है. वे प्रकृति में पाये जाने वाले सभी जीव, जंतु, पर्वत, नदियां, नाले, खेत इन सभी की पूजा करते है। और उनका मानना होता है कि प्रकृति की हर एक वस्तु में जीवन होता है.