भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गांधीनगर की रिसर्च स्कॉलर पीयू घोष ने 3 जुलाई की रात को अपने छात्रावास के कमरे के अंदर कथित तौर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, लेकिन चौकाने वाली बात ये है कि आईआईटी प्रशासन द्वारा पीयू के माता पिता को घटना के तीन दिनों के बाद इस बात की जानकारी दी गई। पीयू IIT गांधीनगर में पांचवें वर्ष की पीएचडी स्कॉलर थी।
इस मामले में पीयू के पिता दिलीप घोष ने कहा कि, “उसने शुक्रवार रात मुझसे आधे घंटे तक बात की थी। उसके बाद, उसने अपने पति से बात की, जो अमेरिका में है। लेकिन हमने कभी नहीं सोचा था कि हम उससे कभी बात नहीं कर पाएंगे। इसके बाद उन्होंने कहा कि, पीयू अपने प्रोजेक्ट को पेटेंट कराना चाहती थी। वह एक शानदार छात्रा थी। वह 20-22 घंटे काम करती थी। उसका रिसर्च भी पूरा होने वाला था। वह अपने प्रोजेक्ट के पेटेंट पर काम करने में काफी व्यस्त थीं।
वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीयू के कमरे में से एक डायरी मिली थी। जिसमें लिखा था, उसके पास जीने का कोई कारण नहीं है, दुनिया को उसकी जरूरत नहीं है, वह जा रही है। वह यह भी चाहती है कि उसकी मृत्यु के बाद उसके शरीर को दान कर दिया जाए।”
लेकिन इस कथित आत्महत्या के बाद कई सवाल उठते हैं कि जब एक रिसर्च स्कॉलर अपने प्रोजेक्ट के काम में व्यस्त थीं और अपने प्रोजेक्ट को पेंटेंट करवाने की चाहत रखती थी अचानक आत्महत्या के कारण कैसे बन गए। क्यों इस कथित आत्महत्या की जानकारी छात्रा के परिजनों को प्रशासन ने तीन दिन बाद दी। क्या प्रशासन कुछ छुपा रहा है।
उसके एक साथी रिसर्च मनमाता धारा ने Change.org पर याचिका शुरू की। उनके मुताबिक “उसके माता-पिता बहुत असहाय हैं। हमें उसके लिए न्याय चाहिए और ऐसे सभी विद्वानों के लिए उचित जांच की आवश्यकता है जो इसी तरह के उपचार और आघात से गुजरते हैं और अंत में अपनी आशाओं को छोड़ देते हैं और सभी खोई हुई गरिमा के साथ अपने सपनों को डिब्बे में फेंक देते हैं। कुछ अपने जीवन का अंत कर देते हैं। यह इतना सामान्य होता जा रहा है और अब इसे रोकना होगा। इस तरह के कदम उठाते हुए प्रतिभाशाली दिमागों को देखना दुखद है। हम किसी को बदनाम नहीं करना चाहते, लेकिन कुछ लोगों को जांच के लिए आवाज उठानी होगी।