रिपोर्ट- पिंकी कड़वे
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर सन् 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में हुआ था। डॉ. सर्वपल्ली एक राजनीतिज्ञ होने से पहले मूल रुप से एक दर्शन शास्त्र के शिक्षक थे। इस दिन को ख़ास बनाने के लिए सिंतबर की 5 तारीख को हर साल “शिक्षक दिवस” के रुप में मनाया जाता है। इस दौरान उन शिक्षकों को भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया जाता है जो छात्रों को सही दिशा देने का कार्य करते हैं।
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नेहरू के लिए थे उपराष्ट्रपति पद के लिए पहली पसंद
सन् 1952 में डॉक्टर राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति निर्वाचित किये गये। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें इस पद के लिए चुन लोगों को आश्चर्य में डाल दिया था। दरअसल उन्हें आश्चर्य इस बात का था कि कांग्रेस पार्टी के किसी राजनेता का चुनाव इस पद के लिए क्यों नहीं किया गया।
राधाकृष्णन ने अपनी कार्य शैली से सभी को प्रभावित किया। डॉ. राधाकृष्णन भारत रत्न, ऑर्डर ऑफ मेरिट, नाइट बैचलर और टेम्पलटन जैसे कई अवार्ड से नवाजे गए।
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भारत रत्न से सम्मानित
सर्वपल्ली राधाकृष्णन को साल 1931 में ब्रिटिश सरकार ने सर की उपाधि से सम्मानित किया था। सन् 1954 में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें दार्शनिक और शैक्षणिक उपलब्धियों के सम्मान में देश के सबसे बढ़े पुरस्कार “भारत रत्न” से नवाजा।
कुशल राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक कुशल राजनीतिज्ञ थे जिसके चलते उन्हें काफी सराहा जाता था। शायद यही एक कारण था कि वे साल 1962 से 1967 तक उन्हें भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य हासिल हुआ। इस दौरान उन्होंने भारत को सुगंम राजनैतिक मार्ग प्रशस्त किए।
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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण के विचार
1) स्वयं के साथ ख़ुद्दार रहना आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है।
2) धर्म भय पर विजय है असफलता और मौत का मारक है।
3) धन, शक्ति और दक्षता केवल जीवन के साधन हैं खुद जीवन नहीं.
4) प्रसन्नता और आनंद से परिपूर्ण ज़िन्दगीऊ केवल ज्ञान और विज्ञान के आधार पर संभव है।
5)ज्ञान हमें शक्ति देता है और प्रेम हमें संपन्न बनाता है।
6) किताब पढना हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची ख़ुशी देता है।
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उपलब्धियां
सन् 1936 से 1952 तक सर्वपल्ली प्राध्यापक के पद पर रहे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी अपनी सेंवाएं दीं। जॉर्ज पंचम कॉलेज में प्रोफेसर के रुप में सन् 1937 से 1941 तक कार्य किया।
सन् 1931 से 36 तक वे आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रहे। सन् 1939 से 1948 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सन् 1939 से सन् 1948 तक चांसलर रहे।
दिल्ली विश्वविद्यालय में सन् 1953 से सन् 1962 तक चांसलर के पद पर रहे। साल 1946 में यूनेस्को में हुए एक सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई।
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