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अव्यवस्थित सड़क निर्माण भी विकास को प्रभावित करता है

क्या केवल गाँव गाँव तक पक्की सड़कों का जाल बिछा देने से विकास के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है? क्या गाँव में सड़क निर्माण के समय नालियों के निकासी की व्यवस्था को नजरंदाज कर कार्य को पूर्ण माना जा सकता है?

By Charkha Feature
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देश में लोकसभा चुनाव के तीसरे फेज़ के वोटिंग प्रक्रिया भी समाप्त हो चुकी है. शहरी क्षेत्रों के साथ साथ देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस बार के चुनाव में विकास के जिन बुनियादी मुद्दों पर जनता अपनी राय व्यक्त कर रही है उसमें बिजली, पीने का साफ पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ साथ उन्नत सड़कें अहम है. पिछले कुछ दशकों में सरकारों ने सड़कों को बेहतर बनाने में विशेष ध्यान दिया है. देश में सड़कों का जाल बिछाया गया है. न केवल नेशनल और राज्य मार्ग बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों को भी बेहतर और पक्के बनाने का काम किया गया है. वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरुआत ने देश के ग्रामीण सड़कों की हालत को बदल दिया है. पिछले वर्ष दिसंबर में ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार पीएमजीएसवाई के अंतर्गत अब तक तीन चरणों में काम हुआ है. जिसके तहत 8,14,522 किमी की लंबाई की 1,86,541 ग्रामीण सड़कों के निर्माण को स्वीकृति दी जा चुकी है. इसमें अब तक लगभग 7,49,363 किमी की लंबाई की 1,77,628 ग्रामीण सड़कों का निर्माण कार्य पूरा किया जा चुका है.
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यह आंकड़े बताते हैं कि सड़कों के माध्यम से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी विकास के लक्ष्य को पूरा किया जा रहा है. लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या केवल गाँव गाँव तक पक्की सड़कों का जाल बिछा देने से विकास के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है? क्या गाँव में सड़क निर्माण के समय नालियों के निकासी की व्यवस्था को नजरंदाज कर कार्य को पूर्ण माना जा सकता है? यह प्रश्न इसीलिए उठता है क्योंकि देश के कुछ गाँव ऐसे हैं जहां पक्की सड़कें तो पहुंच गई हैं लेकिन नाली निकासी की उचित व्यवस्था को नजरंदाज कर दिया गया, परिणामस्वरूप सड़कों पर बहता नाली का पानी विकास की आधी अधूरी गाथा को बयां करता है. इसकी एक मिसाल राजस्थान के उदयपुर स्थित मनोहरपुरा गांव का रंगा स्वामी बस्ती है, जहां अव्यवस्थित सड़क निर्माण ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है.
 
करीब एक हजार की आबादी वाला गांव मनोहरपुरा गाँव राजस्थान के पर्यटन नगरी उदयपुर शहर से मात्र चार किमी की दूरी पर आबाद है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बहुल यह गांव समुदाय के अनुसार अलग अलग बस्तियों में बंटा हुआ है. गाँव में प्रवेश करते ही आपको विकास की एक खूबसूरत तस्वीर नजर आएगी. सालों भर पर्यटकों से गुलजार रहने वाले उदयपुर शहर के करीब होने का लाभ इस गांव को भी मिलता महसूस होगा. यहां प्रवेश करते ही सीमेंट से बनी पक्की सड़क स्वागत करती नजर आएगी. सड़क के दोनों ओर पक्की नालियों को देखकर महसूस होगा कि यह गाँव विकास की दौड़ में तेजी से आगे निकल रहा है. लेकिन जैसे जैसे गाँव के अंदर बढ़ते जाएंगे पक्की नाली कहीं नजर नहीं आएगी. कच्चे और टूटी नालियों से उफनता गंदा पानी सड़क पर फैला हुआ नजर आएगा. तो कुछ सड़क किनारे बने घरों में भी बहता नजर आ जाएगा. विशेषकर गांव के अंदर बने प्रताप गौरव केंद्र के आसपास के घरों में नाली से निकला गंदा पानी बहता है.
 
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ग्रामीण बताते हैं कि मनोहरपुरा में लोग पिछले 60 वर्षों से रह रहे हैं. गाँव का अंतिम छोड़ एक छोटे से सामुदायिक केंद्र प्रताप गौरव केंद्र के पास जाकर समाप्त होता है. जिसके आसपास अधिकतर रंगा स्वामी समुदाय के लोग आबाद हैं. जिनका पुश्तैनी काम भिक्षा मांगना रहा है. हालांकि इस समुदाय की नई पीढ़ी ने भिक्षा मांगने की जगह स्वरोजगार को प्राथमिकता दी है. लेकिन शिक्षा और जागरूकता के अभाव में इस समुदाय के अधिकतर पुरुष उदयपुर (Udaipur) शहर जाकर दैनिक मजदूरी का काम करते हैं. कुछ पड़ोसी राज्य गुजरात के सूरत और अहमदाबाद जाकर बिल्डिंग निर्माण में मजदूरी का काम करते हैं. जबकि समुदाय के अधिकतर लड़के और लड़कियां स्कूल जाने की जगह कचड़ा बीनने का काम करते हैं. शिक्षा से यही दूरी समुदाय के विकास में भी रोड़ा बन रहा है. 
 
इस संबंध में रंगा स्वामी समुदाय की 35 वर्षीय संगीता बाई कहती हैं कि नई पीढ़ी में शिक्षा के लिए कुछ रुझान बढ़ा है, लेकिन बहुत अधिक नहीं है. इसीलिए समुदाय के कुछ ही बच्चे दसवीं तक पढ़ सके हैं. जबकि किशोरियां 8वीं से अधिक नहीं पढ़ सकी हैं. जिसके कारण ही आज भी यह समुदाय अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठा पाता है. वह बताती हैं कि "हमारे गांव में सड़क तो बनी है, लेकिन उसका होना या नहीं होना बराबर है क्योंकि उस पर हर समय नाली का पानी बहता रहता है. जिससे आने जाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. घर पुराना होने के कारण अब सड़क मेरे घर से ऊपर होती जा रही है. जिससे अक्सर नाली का पानी घर में प्रवेश कर जाता है. मच्छर और गंदगी से हमारा जीना दुश्वार हो गया है. इसके कारण अक्सर बच्चे बीमार हो जाते हैं. इस संबंध में कई बार पंचायत में शिकायत भी की लेकिन आज तक समस्या का स्थाई समाधान नहीं हुआ है. समझ में नहीं आता है क्या करें?"
 
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गाँव की एक अन्य महिला 45 वर्षीय बसंती बाई कहती हैं कि गाँव के अंदर तक पक्की सड़कें बनी हुई हैं लेकिन नालियों की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण इसका पानी सड़क पर बहता रहता है. इतना ही नहीं कई बार ज्यादा बहाव के कारण यह सड़क किनारे उन पुराने घरों में प्रवेश कर जाता है जो नई सड़क बनने के बाद अब उससे नीचे आ गए हैं. इससे जहां उन घर वालों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है वहीं सड़क से पैदल गुजरने वाले लोगों के लिए भी यह मुसीबत से कम नहीं होता है. वह बताती हैं कि इस प्रताप गौरव केंद्र के आसपास अनुसूचित जनजाति परिवार आबाद हैं. इनमें से अधिकतर के पास अपनी जमीन का पट्टा भी नहीं है. हालांकि यह लोग पिछले छह दशकों से यहीं आबाद हैं, लेकिन आज भी इनमें से कई परिवार ऐसे हैं जिनके पास उचित दस्तावेज़ नहीं होने के कारण सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल सका है.
 
बसंती की बातों को बीच में काटते हुए उनके बगल में बैठी 70 वर्षीय बुजुर्ग जुगरी बाई कहती हैं कि योजनाओं का लाभ कैसे मिलेगा, जब हमें इसे प्राप्त करने की सही जानकारी भी नहीं है? कौन सी योजनाएं किसके हित के लिए हैं और और इसे प्राप्त करने के लिए क्या करना होगा किसी को मालूम नहीं है. कुछ एक दो परिवार हैं जिन्होंने पंचायत के लोगों से मिलकर योजनाओं का लाभ उठाया है लेकिन बाकी को इसके किसी प्रक्रिया के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है. वह कहती हैं कि जब गाँव में सड़क बन रही थी तो ऐसा लग रहा था कि अब सभी समस्याओं का सामाधान हो जाएगा और गाँव में भी विकास होगा. लेकिन अव्यवस्थित रूप से और बिना नाली के निकासी की व्यवस्था किए बिना ही सड़क का निर्माण कर दिया गया. जिससे कि सड़क बनने के बाद यह आसानी की जगह हम बुजुर्गों के लिए ही मुसीबत बन गई है. वह बताती हैं कि सड़क पर हम समय नाला का पानी बहने के कारण इससे होकर गुजरना मुश्किल हो गया है. कई बार गिरने का खतरा रहता है. हर समय किसी का सहारा लेकर सड़क को पार करना संभव नहीं है.
 
वहीं 32 वर्षीय झुमरु कहते हैं कि वह इसी गाँव में अपनी एक छोटी जनरल स्टोर की दुकान चलाते हैं. जिसके लिए सामान लाने के लिए इन्हीं रास्तों से उन्हें गुजरना होता है. वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि केवल गाँव के शुरू में ही पैसे वालों के घरों के सामने सड़के हैं, सुव्यवस्थित नालियां हैं और अन्य सभी सुविधाएं हैं. गाँव के अंदर में भी पक्की सड़के हैं. अंतर केवल इतना है कि जागरूक लोगों की बस्तियों और घरों के सामने पक्की सड़क के साथ साथ सुव्यवस्थित नालियों का भी प्रबंध किया गया है. जब सड़क का निर्माण किया जा रहा था तो कुछ जागरूक लोगों ने पहले नाली की व्यवस्था को ठीक करने पर जोर दिया उसके बाद सड़क निर्माण के कार्यों को पूरा होने दिया. लेकिन हम लोग इतना जागरूक नहीं थे कि सड़क बनने से पूर्व नाली के निकासी के प्रबंध की बात सोचते. हमें तो यही लगा कि सड़क निर्माण से सभी समस्याओं का हल निकल जाएगा और हमारी बस्ती में भी विकास होगा. लेकिन नाली के निकासी कि व्यवस्था किए बिना सड़क बन जाने से नुकसान ही हुआ है.
 
इस संबंध में बड़गांव पंचायत जिसके अंतर्गत मनोहरपुरा गांव आता है, के सरपंच संजय शर्मा कहते हैं कि "सड़क निर्माण से पहले सभी जगह नाली के पानी के निकासी का प्रबंध किया गया था. लेकिन जागरूकता के अभाव में लोग इसकी समुचित देखरेख नहीं कर पाते हैं." वह कहते हैं कि "अक्सर गाँव के बच्चे चिप्स खाने के बाद उसके पैकेट नाली में फेंक देते हैं जो उसके निकासी को प्रभावित करता है. अगर इधर उधर कूड़ा अथवा पोलोथीन को फेंकने की जगह उसका उचित निस्तारण किया जाएगा तो नाली जाम होकर सड़क पर बहने की समस्या खत्म हो जाएगी. वह कहते हैं कि समय समय पर नालियों की सफाई का प्रबंध किया जाता है. लेकिन जब तक ग्रामीण स्वयं इस दिशा में जागरूक नहीं होंगे उस समय तक किसी भी सुविधा को बहुत अधिक समय तक मेंटेन नहीं किया जा सकता है." बहरहाल, ग्रामीण क्षेत्रों में यदि सड़कों के निर्माण के साथ ही अन्य तत्वों को भी ध्यान में रखा जाए तो कई समस्याओं का हल संभव है. लेकिन इसका स्थाई हल उस वक्त तक संभव नहीं है जब तक लोगों में भी अपने कार्य और अधिकारों के प्रति जागरूकता का विकास नहीं होता है.

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