पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से गहमागहमी शुरू हो गई है। बंगाल का चुनाव इस बार सबसे अधिक चर्चा का केंद्र रहने वाला है। सीधा मुक़ाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच माना जा रहा है। दूसरी ओर बंगाल में कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा हो रही है। आइये जानते हैं बंगाल से कैसे खत्म हो गई कांग्रेस?
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति अपनी परंपरागत सीटों को बचाने की होगी। यही कारण है कि उम्मीदवार के चयन के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने साफ किया है कि गठबंधन में उन्हीं सीटों पर दावा करें जो हमने जीती हैं और जहां पिछले चुनाव में बेहतर प्रदर्शन रहा है।
दरअसल, कांग्रेस और वामदलों ने पिछले चुनाव में टीएमसी की 211 सीटों के बाद 76 कांग्रेस और वामदलों ने पाई थीं। कांग्रेस 44 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी। पार्टी का वोट प्रतिशत 12.4 था। हालांकि, लोकसभा चुनाव में भाजपा के बढ़त बनाने पर कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 5.6 रह गया।
चूंकि बंगाल में कांग्रेस की सीट वामदलों से अधिक हैं इसलिए गठबंधन में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। पार्टी का एक खेमा हमेशा से क्षेत्रीय दलों से हुए नुकसान का हवाला देकर पार्टी को यूपी और बिहार का उदाहरण दे रहा है।
अब कांग्रेस और लेफ्ट के लिए पहली चुनौती ये होगी वो खुद को प्रमुख विपक्षी पार्टी बनाए रख पाती है या नहीं। पिछले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक तस्वीर काफी बदल चुकी है। पिछले चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में सिर्फ 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन अब बीजेपी ममता बनर्जी की टीएमसी के सामने सबसे बड़ी दावेदार के रूप में खड़ी है।
बंगाल में वाम दलों से मिलकर चुनाव लड़ने की कांग्रेस की तैयारी यही बताती है कि वह अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए ऐसे कदम उठा रही है, जो अंतत: उसे और कमजोर करने का ही काम करेंगे। वाम दलों से कांग्रेस का तालमेल इस धारणा पर मुहर ही लगाएगा कि उसका उस वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव बढ़ता जा रहा है, जो दुनिया के साथ-साथ भारत में भी अपना महत्व खो रही है।
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