2018 से सुप्रीम कोर्ट के आदेश में बताई गई ग्रीन पटाखे की परिभाषा यह है कि राख के इस्तेमाल से बचा जाए ताकि 15-20% तक पर्टिकुलेट मैटर कम करने में मदद मिल सके, कम धुआं हो और 30-35% प्रदूषण कम हों.
पटाखों से जो रोशनी होती है, वो उनमें इस्तेमाल ऑक्सीडाइजर, कलरिंग एजेंट और फ्यूल से होती है, जो बेहद जहरीले केमिकल होते हैं.
हम पहले से ही एक वैश्विक महामारी से जूझ रहे हैं और वायु प्रदूषण का खतरा इस साल फिर से हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. सर्दियों में त्योहारी सीजन के साथ बिगड़ती हवा का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जाता रहा है.
दो साल पहले तक जब दीवाली पर पटाखे जलाए जाते थे. आतिशाबाजियां होती थीं तो प्रदूषण का स्तर यकायक बहुत बढ़ जाता था. इसमें सांस लेना औऱ भी ज्यादा मुश्किल हो जाता था.
इस बीच ऐसी पटाखों और आतिशबाजियों की जरूरत महसूस की जाने लगी, जो कम प्रदूषण करते हों और कम हानिकारक हों. ऐसे में भारतीय संस्था राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने ग्रीन पटाखों पर काम शुरू किया.
जल्द ही उसके साइंटिस्ट ने ऐसे ग्रीन पटाखों को बनाने में सफलता पा ली. दुनियाभर में इन्हें प्रदूषण से निपटने के एक बेहतर तरीके की तरह देखा जा रहा है.