Courtesy: The Hindu
सोमवार को दिल्ली (Delhi) के खजूरीखास (Khajurikhas) में हुई हिंसा (Violence) की चपेट में कई आम नागरिक आ गए। इनमें से अधिकतर को न तो CAA न NRC और न ही NPR के बारे में कुछ पता था। अचानक उठी ‘हिंसा की लपटे’ देखते ही देखते दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाके में फैल गई। इस इलाके में आने वाला खजूरीखास भी बुरी तरह दंगो की चपेट में था। इस हिंसा में कई आम गरीब नागरिकों के जीवन यापन के सहारे आग के हवाले कर दिए गए। किसी की दुकान जला दी गई तो, रेहड़ी पटरी पर दो-दो रुपए जोड़कर अपना घर चलाने वाले लोगों की रोज़ी दंगो का शिकार हो गई।
ऐसी ही एक कहानी द हिन्दू की पत्रकार हिमानी भंडारी की ग्राउंड रिपोर्ट में दिखाई देती है। खजूरी खास इलाके में 62 वर्षीय विधवा महिला फातिमा (Fatima) फल का ठेला लगाती थी। सोमवार को करीब 2 बजे पुलिसवलों ने उनसे जल्द से जल्द जगह खाली करने को कहा। पुलिसवालों ने कहा कि स्थिति खराब हो रही है वो यहां से चलीं जाएं। फातिमा पास में स्थित अपने घर चली गईं। कुछ ही मिनट बाद उन्हें खबर मिली की उनका फल का ठेला आग के हवाले कर दिया गया है। वो बेबस दौड़ती हुई अपने फल के ठेले के पास गई और ज़मीन पर गिर कर रोने लगीं। जिस फल के ठेले से उनका घर चलता था वह अब राख हो चुका था।
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फातिमा रोते हुए बताती हैं कि वे फल बेच कर पाई-पाई जमा कर रही थीं ताकि जल्द वो अपनी बेटी की शादी कर सकें लेकिन नागरिकता कानून की आग ने उनके सपने चूर कर दिए। फातिमा ने हाल ही में 50 हज़ार रुपए खर्च कर संतरे खरीदे थे वो पूरी तरह दंगों की भेंट चड़ गए। फातिमा फल बेचकर अपने बच्चों की शिक्षा और जीवन यापन की ज़रुरतें पूरी करती थी। फातिमा कहती है कि उन्हें CAA-NRC के बारे में कुछ नहीं पता न हीं वो प्रदर्शन में शामिल थीं फिर उनके जीवन में आग क्यों लगाई गई?
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फातिमा की ही तरह कई गरीब लोगों का इस दंगे में नुकसान हुआ है। उनको सुनने वाला कोई नहीं है। राजनीतिक दल दंगों की आग बुझाने की बजाए, भड़काने में लगे हैं। हमने यह देखा है कि दंगों से सबसे ज़्यादा नुकसान आम बेगुनाह नागरिकों का होता है जो ईमानदारी और सुकून से अपनी ज़िंदगी जीना चाहते हैं।
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