- क्या मोदी सरकार ने बिना सोचे-समझे ही लॉकडाउन का फैसला लिया था ?
- लॉकडाउन के कारण जान गंवा रहे मज़दूर की मौतों की ज़िम्मेदार सरकार है ?
- लॉकडाउन से पहले सरकार ने देश के ग़रीब वर्ग के बारे में विचार नहीं किया ?
Ground Report | News Desk
भारत में कोरोना वायरस के चलते जारी लॉकडाउन के कारण 300 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं । THEJESH GN नामक एक वेबसाइट ने भारत में लॉकडाउन के कारण अपनी जान गंवाने वालों पर एक रिपोर्ट तैयार करते हुए विस्तार से बताया है कि पूरे भारत में कोरोना से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण 300 से अधिक लोगों की जान गई है । इन सभी मौतों का कारण कोरोना नहीं बल्कि कोरोना के कारण लगा लॉकडाउन रहा ।
THEJESH GN की रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर मौत के मामलों में जो कारण सामने आए, वे भूख, वित्तीय संकट, लॉकडाउन के कारण नौकरी जाने के बाद डिप्रेशन, शहरों से अपने गांव लौट रहे मज़दूरों की थकान और भूख से मौत , पुलिस उत्पीडन, मेडिकल सुविधा न मिल पाना है । इन सभी लोगों में सबसे ज़्यादा ग़रीब मज़दूर है जो लॉकडाउन के कारण शहरों से पैदल अपने घर को लौट रहे हैं ।
इन मौत के मामलों में सबसे अधिक चौकाने वाले मामले रहे लॉकडाउन के कारण आत्महत्या करने वालों के । इन मौतों का कारण रहा अकेलापन, कोरोना संक्रमण होने का भय, लॉकडाउन के कारण स्वतंत्रता न मिलना, नौकरी जाने से परिवार की चिंता के कारण, डिप्रेशन के कारण आत्महत्या करने वालों की भी एक बड़ी संख्या है।
THEJESH GN लॉकडाउन के कारण हो रही मौतों का आंकड़ा संकलित करने के लिए देशभर के अख़बारों और मीडिया रिपोर्ट्स की मदद ले रहा है । सम्पूर्ण भारत भर में लॉकडाउन के कारण होने वाली ऐसी मौते जो कोरोना से नहीं बल्कि कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन से हुई है । THEJESH GN उनकी विस्तृत रिपोर्ट को तैयार कर रहा है ।

मीडिया द्वारा मौतों का केवल एक अंश रिपोर्ट किया जा रहा है । ये दुख की बात है कि भारत में मीडिया का बड़ा वर्ग इन मौतों पर बात न करके केवल कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या और उनकी मौतों पर ही अपना पूरा ध्यान केंद्रित किए हुए है । हालही में, महाराष्ट्र के औरंगाबाद में दर्दनाक हादसा हुआ । पैदल अपने-अपने घरों को लौट रहे मज़दूरों की ट्रेन से कट कर हुई मौत के मामले को मीडिया ने राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाया, मगर तब नहीं बनाया जब इसकी सबसे अधिक ज़रूरत थी ।
लॉकडाउन के कारण 300 से अधिक लोगों की हुई मौतों पर न तो सरकार ने ध्यान दिया और न ही मीडिया ने । अगर सरकार के लिए कोरोना से लड़ने का एक मात्र विकल्प लॉकडाउन ही था तो सरकार को लॉकडाउन से पहले देश के सबसे ग़रीब और कमज़ोर वर्ग के बारे में सोचना चाहिए था । 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 40 करोड़ लोग भारत की कुल आबादी का लगभग 37 प्रतिशत प्रवासी मज़दूर है जो शहरों में रोज़ी रोटी के लिए बसा हुआ है । जिनकों हम आज-कल गरीब मज़दूर के नाम से जान रहे हैं ।

यदि भारत सरकार के लिए कड़ा लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प था, तो कम से कम यह किया जा सकता था कि आबादी के सबसे कमजोर वर्गों के लिए बेहतर योजना बनाई जा सके। ये लॉकडाउन से जुड़ी मानवीय त्रासदी के पैमाने को दर्शाता हैं। अब हम लॉकडाउन के तीसरे चरण में है । इस नुकसान को स्वीकार करने और इस मानवीय संकट को दूर करने के लिए सक्रिय कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है।
विश्व स्वास्थ संगठन WHO ने साफ कहा है कि लॉकडाउन कोरोना से लड़ने के लिए एक मात्र रास्ता नहीं है । कोरोना की रोकथाम में सबसे अहम रोल है टेस्टिंग करना । मगर भारत में टेस्टिंग की चाल किसी कछुए की तरह चल रही है । भारत जैसा देश लंबा लॉकडाउन के लिए सक्षम नहीं है। कोरोना के मामले लगातार तेज़ी से बढ़ रहे हैं । सरकार भी जानती है कि वो लॉकडाउन को चाह कर भी लंबा नहीं ले जा सकती है ।
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इस रिपोर्ट को विस्तृत रुप से THEJESH GN की वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है