Ground Report News Desk | New Delhi
कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है। कोरोना संकट से न सिर्फ आर्थिक मंदी आई है बल्की मानव जीवन की कार्यशैली भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। हर जगह लॉकडाउन है। वहीं अब सबकी नजरें कोरोना वैक्सीन पर टिकी है। सभी इस इंतजार में है कि कब कोरोना वैक्सीन आएगी। दुनियाभर के 90 से ज्यादा देश इस मामले में शोध कर रहे हैं। वहीं अमेरिका में लोगों पर टेस्ट की गई पहली कोरोना वायरस वैक्सीन असरदार साबित हुई है।
बीते दिनों Moderna ने जब शुरुआती रिजल्ट्स जारी किए तब पूरी दुनिया में उम्मीद की एक नई किरण जगी है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द कोरोना वैक्सीन मिल जाएगी। वहीं चीन की एक लैबोरेट्री में भी एक ऐसी दवा तैयार कर ली गई है जिसे लेकर दावा किया जा रहा है कि यह कोविड-19 को रोकने में सफल होगी। वहां की पेकिंग यूनिवर्सिटी में इसपर रिसर्च जारी है।
वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि ये दवा ना सिर्फ मरीजों का रिकवरी टाइम कम करती है, बल्कि वायरस के प्रति शॉर्ट-टर्म इम्युनिटी भी देती है। दूसरी तरफ, Moderna वैक्सीन की टेस्टिंग मार्च में शुरू हुई थी। जिन आठ लोगों को दो-दो बार इस वैक्सीन की डोज दी गई, उनके शरीर में एंटीबॉडीज बनने लगीं। उन एंटीबॉडीज को लैब में मानव कोशिकाओं पर टेस्ट किया गया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये दवाई वायरस को अपने क्लोन बनाने से रोक सकती है। इससे पाया गया कि शरीर में एंटीबॉडीज का लेवल उतना ही रहा जितना कोरोना से रिकवर हो चुके मरीजों में मिलता है। अमेरिकी कंपनी के मुताबिक, वैक्सीन ट्रायल के सेकेंड फेज में 600 लोगों पर टेस्ट किए जाएंगे। सब कुछ ठीक रहा तो जुलाई में हजारों स्वस्थ लोगों पर इस वैक्सीन की टेस्टिंग होगी। उम्मीद इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि सब प्लान के हिसाब से होने पर इस साल के आखिर तक या 2021 की शुरुआत में दुनिया को कोरोना वैक्सीन मिल सकती है।
वहीं जिन 8 लोगों पर वैक्सीन का टेस्ट किया गया उनमें तीन तरह के डोज इस्तेमाल किए गए। लो, मीडियम और हाई। अभी जो नतीजे आए हैं, वो वैक्सीन के लो और मीडियम डोज के हैं। इस वैक्सीन का एक साइड इफेक्ट देखने को मिला कि एक मरीज की उस बांह पर लाल निशान पड़ गया जहां टीका लगाया गया था।
8 में से आधे लोगों को 100 mcg और बाकी को 25 mcg की डोज दिया गया था। जिन्हें ज्यादा डोज मिले, उनके शरीर में एंटीबॉडीज भी ज्यादा बनीं। यह शुरुआती डेटा वैक्सीन डेवलपमेंट में अब तक का सबसे एडवांस्ड है।
वहीं कोरोना वैक्सीन टेस्ट के फेज टू ट्रायल की परमिशन मिलने से उम्मीद और भी ज्यादा बढ़ गई है। Moderna का कहना है कि वह 250 mcg की डोज की जगह 50 mcg वाली डोज टेस्ट करना चाहती हैं। फेज टू में वैक्सीन की ऑप्टिमल डोज का पता लगाया जाता है। ताकि लोगों के लिए सही मात्रा में वैक्सीन का डोज तैयार किया जा सके।
वहीं वैज्ञानिक इस बात पर भी शोध कर रहे हैं कि नोवेल कोरोना वायरस के खिलाफ कौन सी एंटीबॉडीज असल में असरदार होंगी। यह भी पता लगाया जा रहा है कि उन एंटीबॉडीज से कितने वक्त के लिए कोविड-19 से प्रोटेक्शन मिलेगा।
Moderna के अलावा कई अन्य कंपनियां कोरोना वैक्सीन बनाने में लगी हैं। CureVac ने प्रीक्लिनिकल नतीजे सामने रखे हैं। उसके मुताबिक, जानवरों में टेस्टिंग के अच्छे नतीजे आए हैं। Verily ने भी एंटीबॉडी टेस्टिंग को लेकर नई क्लिनिकल रिसर्च शुरू की है।
Moderna की वैक्सीन के शुरुआती नतीजे राहत भरे हैं और कोरोना को रोकने में ये मील का पत्थर साबित हो सकता है। वहीं एक वैक्सीन पहले प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल टेस्टिंग से गुजरती है। इसके बाद उसका प्रॉडक्शन शुरू होता है और फिर लाइसेंसिंग की प्रक्रिया से उसे गुजरना होता है। इसके बाद जब सारी प्रक्रियाएं पूरी कर ली जाती है तो अंत में मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन शुरू होता है।