न्यूज़ डेस्क।। स्टाईपेंड में बढोतरी और बदहाल स्वास्थ व्यवसथा को लेकर हड़ताल पर चल रहे मध्यप्रदेश के जूनियर डॉक्टर्स पर सरकार ने सख्त रवैया अपनाया हुआ है। मंगलवार को सरकार ने हड़ताल पर गए 20 जूनियर डॉक्टर को निष्कासित कर दिया और हड़ताल में शामिल उन मेडिकल स्टूडेंट्स पर भी सरकार कार्यवाही की तैयारी कर रही है, जिन्होने अभी-अभी नीट के ज़रिए एडमिशन लिया है। ऐसे में इन डॉक्टर्स के भविष्य पर खतरा मंडराने लगा है।
चिकित्सा शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आर एस जुलानिया का कहना है की एस्मा लगा होने के बावजूद डॉक्टर्स हड़ताल पर गए, उन्होने अपना धर्म नहीं निभाया ऐसे डाक्टर्स के साथ हम सहानुभूति नहीं रखना चाहते। प्रशासन और जूनियर डॉक्टर्स के बीच बातचीत अभी तक बेनतीजा रही है, जहां एकतरफ सरकार डॉक्टर्स का भविष्य बर्बाद करने पर अड़ी है, तो वहीं जूनियर डॉक्टर्स ने अपने साथियों पर हुई कार्यवाही के विरोध में सामुहिक इस्तीफे भेज दिए हैं। प्रशासन और डॉक्टर्स के बीच की इस लड़ाई में मरीज़ों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है पूरा मामला?
मध्यप्रदेश जूनियर डॉक्टर्स असोसिएशन(JUDA) चार मांगो को लेकर 16 जुलाई से हड़ताल पर है, जिसमें स्टाईपेंड में बढ़ोतरी के साथ हॉस्पिटल में डॉक्टरों की सुरक्षा क्योंकि आए दिन डॉक्टर्स पर हमले की वारदात होती रहती है, मरीज़ों के लिए बेहतर चिकित्सीय व्यवस्थाएं, दवाईयों और चिकित्सीय उपकरणों की उपल्बध्ता, कैंपस में साफ-सफाई और काम करने योग्य वातावरण शामिल है। इन मूलभूत मांगो को लेकर हड़ताल पर गए डॉक्टर्स ने 1 हफ्ते तक निरंतर पैरेलल ओपीडी भी संचालित की लेकिन तब तक किसी अधिकारी ने उनकी सुध नहीं ली।
23 तारीख से डॉक्टर्स ने व्यापक हड़ताल की चेतावनी दी लेकिन 22 तारीख तक भी किसी अधिकारी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जब 23 तारीख से हड़ताल शुरु हुई तो डॉक्टरों की आवाज़ दबाने के लिए एस्मा लगा दी गई। विरोध में 1500 डॉक्टर्स ने इस्तीफा दे दिया। हालात हाथ से निकलता देख कॉलेज प्रशासन ने जूडा के अध्यक्ष सचिवों को निष्कासित कर दिया। प्रशासन के समय से स्थित को न संभालने और हड़तालरत डॉक्टरों से संवाद स्थापित न करने की वजह से स्थित बिगड़ती चली गई। अब सरकार जूनियर डॉक्टरों को निष्कासित कर उनके लायसेंस निरस्त करने की चेतावनी दे रही है और हड़ताल में शामिल इसी सत्र के छात्रों के एडमिशन कैंसल करने को उतारु है। लोकतांत्रिक ढंग से अपनी मांगों को सरकार के सामने रखने वाले डॉक्टर्स का भविष्य अब अंधेरे में नज़र आ रहा है।
डीन को पत्र लिख बताई जूनियर डॉक्टर्स ने अपनी व्यथा..
जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन को लिखे अपने पत्र में जूनियर डॉक्टर्स ने लिखा की हम रेसीडेंट डॉक्टर्स और इंटर्न हमें मिल रहे मासिक वेतन से संतुष्ट नहीं हैं। यह अन्य राज्य जैसे दिल्ली, हरियाणा, यूपी और बिहार की तुलना में बहुत कम है। न सिर्फ इन राज्यों में स्टाईपेंड ज़्यादा है बल्कि इनकी ट्यूशन फीस और अन्य शुल्क भी हमसे कम है। हमें जितना मिलता है उससे कई ज़्यादा हमें भुगतान करना होता है। हम रेज़ीडेंट डॉक्टर्स हफ्ते में 100 घंटे काम करते हैं और हमें कोई साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिलता। कई बार हमें लगातार 48 घंटे काम करना पड़ता है। लेकिन उसके बाद भी हमें अपने काम के लिए उचित स्टाईपेंड नहीं दिया जाता।
सवाल जो पूछे जाने चाहिए…
इस पूरे घटनाक्रम को देखने से पता चलता है कि प्रशासन के समय से न जागने की वजह से स्थित बिगड़ी है। अगर प्रशासन सही समय पर सुध लेकर हड़तालरत डॉक्टर्स से संवाद कायम करता तो इतना बड़ा बखेड़ा नहीं खड़ा होता।
- क्या लोकतांत्रिक ढंग से हड़ताल कर रहे डॉक्टर्स की आवाज़ दबाने के लिए शासन द्वारा उनका करियर खराब करने की कोशिश करना वाजिब है?
- सरकारी पैसे से पढ़ रहे छात्रों को क्या शासन के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का अधिकार नहीं है?
- क्या सरकारी डॉक्टरों का चिकित्सीय सेवाओं की बदहाली पर आवाज़ उठाना गलत है?
- प्रशासन और डॉक्टरों की इस लड़ाई में मरीज़ों को हो रही दिक्कतों के लिए कौन ज़िम्मेदार होगा?
तमाम सवालों के बीच इतना तय है,की यह मामल जल्दी सुलझने वाला नहीं है। हर मामले को लटकाकर देर सवेर जागने वाली सरकारें अराजकता की स्थित पैदा करती हैं। लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात रखने और आंदोलन करने का अधिकार है बशर्ते वे लोकतंत्र के दायरे को पार न करें।
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