न्यूज़ डेस्क।। मध्यप्रदेश में 2 सीट, राजस्थान में 6 और छत्तीसगढ़ में 7 जोगी की सीटें घटा दें तो मात्र 2 सीट जीती हैं, मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने। वो भी ऐसे दौर में जब तीनों ही राज्य में दलित वर्ग तत्कालीन भाजपा सरकार से नाराज़ था। फिर वह क्या कारण रहा कि मायावती इस नाराज़गी को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने में नाकाम रहीं।
अगर वोट प्रतिशत के लिहाज़ से देखें तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले चुनाव की तुलना में बसपा का वोट प्रतिशत गिरा है, वहीं राजस्थान में 0.6% बढ़ा है।
दरअसल मायावती अब तक यह समझ पाने में नाकाम रही हैं कि उत्तर प्रदेश के बाहर उनका जनाधार तब तक सीटों में नहीं तब्दील होगा जब तक वो किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करती।
मायावती अगर अपनी महत्वकांशा को थोड़ा कम करती तो तीनों राज्य में कांग्रेस से पैकेज डील हासिल कर सकती थी। जहाँ उनकी स्थिति मौजूदा परिणामों से बेहतर होती।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन को बेकरार थी, लेकिन मायावती 40 से कम सीटों में तैयार नहीं थी। चम्बल और बुंदेलखंड क्षेत्र में मायावती का अच्छा जनाधार है, अगर वहाँ कांग्रेस और बसपा साथ मिलकर लड़ते तो अच्छी खासी सीटें हासिल कर सकते थे। पिछले चुनावों में बसपा ने 4 सीटें जीती थी लेकिन इस बार 2 पर सिमट कर रह गई।
लोकसभा चुनावों की बिसात बिछ रही है। मायावती को इन विधानसभा चुनावों से सबक लेना चाहिए। उन्हें यह बात जान लेना चाहिए कि अकेले चुनाव लड़कर वो केवल वोट काटने वाली पार्टी बन कर रह जाएंगी। मायावती के घटते जनाधार का कारण उनकी गलत रणनीति ही है।