न्यूज़ डेस्क।। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केरल दो भागों में बंट गया है। एक धड़ा है जो महिलाओं को सबरीमला मंदिर में मिले प्रवेश के अधिकार के साथ खड़ा है, तो दूसरा धार्मिक पक्ष है जो इसका विरोध कर रहा है। इस मुद्दे पर राजनीतिक दल भी बंटे हुए दिखाई दे रहे हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनरयी विजयन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करवाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, तो वहीं भाजपा इस मुद्दे पर श्रद्धालुओं के साथ जाकर खड़ी हो गयी है। हाल ही में अमित शाह ने इस विवाद पर केरल सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार इस तरह लोगों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा सकती, भारतीय जनता पार्टी इस मामले में पूरी तरह श्रद्धालुओं की भावना का समर्थन करती है और उनके साथ खड़ी है। जिसका मतलब है कि भाजपा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ खड़ी है और इसका विरोध करती है।
जब ScSt एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था तब भी भाजपा सरकार ने उस फैसले के खिलाफ जाकर संसद में अध्यादेश लाकर SCST एक्ट को फिर से अपने मूल रूप में पारित करवाया था। वैसे सरकार को यह अधिकार होता है कि वह कानून बनाकर कोर्ट के फैसले को बदल सकती है। ऐसे ही कानून की मांग अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के पक्षधर लोग कर रहे हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे पर दिए भाषण में कहा कि सरकार अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए कानून बनाये। लेकिन सरकार की ओर से कई मौकों पर यह साफ किया गया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ी रहेगी। संविधान के दायरे में रहकर ही राम मंदिर निर्माण किया जाएगा। भाजपा को अगर हम राम जन्मभूमि आंदोलन से जन्मी पार्टी कहें तो गलत नहीं होगा। फिर इस विवाद पर भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बैकफुट पर क्यों दिखाई देती है। 2019 में मोदी सरकार इतनी ही सीटों के साथ लौटेगी या नही यह भविष्य के गर्भ में है। या फिर भाजपा ने इस मुद्दे को कुछ और साल राजनीतिक फायदे के लिए भुनाने का फैसला कर लिया है?