ग्राउंड रिपोर्ट | न्यूज़ डेस्क
बिहार विधानसभा उपचुनाव में किशनगंज विधानसभा सीट पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के कमरुल होदा ने भारतीय जनता पार्टी की स्वीटी सिंह को 10,211 मतों के अंतर से हरा दिया। इस जीत से पहली बार ओवैसी की पार्टी ने बिहार में खाता खोला है। मूलतः हैदराबाद में पैठ रखने वाली ओवैसी की पार्टी धीरे धीरे अन्य राज्यों में भी सीटें जीत रही है। जहां भी मुस्लिम वोट अधिक मात्रा में होते हैं वहां AIMIM अपना उम्मीदवार उतारती है। ओवैसी की इस जीत से जितनी परेशान भाजपा है, उससे कहीं अधिक खुदको सेक्युलर कहने वाली पार्टियां हैं, क्योंकि अब तक मुस्लिम वोट पर हक़ जमाने वाली पार्टियों से अब उनका वोट बैंक छिनता जा रहा है। और इस वोट बैंक पर सेंध लगा रही है AIMIM. महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में भी AIMIM को 2 सीटें हासिल हुई हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश की कई नगरपालिकाओं में AIMIM के कॉर्पोरेटर चुन कर आए हैं।

क्या ओवैसी ज़्यादा भरोसेमंद विकल्प?
ऐसे में एक सवाल जो यहां खड़ा होता है कि क्या अब भारत के मुस्लिमों का कांग्रेस और अन्य सेक्युलर पार्टियों से भरोसा उठ गया है? क्या ओवैसी उनके लिए ज़्यादा भरोसेमंद विकल्प के तौर पर उभरे हैं?
जिन्ना जैसी सोच वाले ओवैसी
बिहार के किशनगंज में जब ओवैसी की पार्टी से भाजपा का प्रत्याशी हारा तो गिरिराज सिंह ने ट्वीट कर कहा कि यह सबसे खतरनाक परिणाम है। जिन्ना की सोच रखने वाले ये लोग वंदे मातरम से नफ़रत करते हैं। बिहार को अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिये।

साकार हो रहा ओवैसी का सपना?
लगातार कई राज्यों में ओवैसी की पार्टी की सफलता के पीछे असदुद्दीन ओवैसी का कड़ा परिश्रम है। सेक्युलर पार्टियां ओवैसी को बीजेपी का एजेंट बताती हैं। इसपर ओवैसी कहते हैं कि उन्होंने इन सेक्युलर पार्टियों को बेनकाब किया है। इन्होंने वर्षों तक मुस्लिमों को छला है। इन पार्टियों ने मुस्लिमों को वोटबैंक से ज़्यादा कुछ नहीं समझा। अगर समझा होता तो आज भी मुस्लिमों के हालात देश में इतने बद्दतर नहीं होते। क्यों आज भी मुस्लिम विकास में पीछे है। ओवैसी चाहते हैं कि देश के हर राज्य में उनके विधायक हों। ज़्यादा नहीं बस एक दो ही सही। और इस सपने को वे साकार करने में भी लगे हैं। जहां भी मुस्लिम उम्मीदवार के जीतने की संभावना होती है। AIMIM अपना उम्मीदवार उस सीट पर खड़ा करती है। उनका मानना है कि हर विधानसभा में एक ऐसा नेता हो जो ईमानदारी से मुस्लिमो की आवाज़ सदन में उठा सके। उनके मुद्दों और परेशानियों को सदन में रख सके।