एक लैंडफिल साईट का अगर वैज्ञानिक तरीके से रखरखाव न हो तो इसके आसपास की हवा और जल के प्रदूषित होने का खतरा रहता है। यह समझा जा सकता है भोपाल में 2018 में शुरु हुई आदमपुर लैंडफिल साईट के उदाहरण से। इस कचरा खंती ने न सिर्फ भोपाल के लोगों की सांसो में ज़हर घोला है बल्कि गंगा नदी तक के पानी को प्रदूषित करने का काम किया है।
साल 2013 में एनजीटी ने भोपाल की भानपुर खंती में पड़े लाखों टन कचरे का वैज्ञानिक विधि से निष्पादन करने का आदेश दिया। इसके लिए वर्ष 2018 में शहर से 25 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत आदमपुर छावनी स्थित अर्जुन नगर गांव को विस्थापित कर करीब 44 एकड़ में नई लैंडफिल साइट बनाई गई। एनजीटी ने नई लैंडफिल साइट आदमपुर में कचरा ड्रिप करने से पहले कई अहम काम करने के निर्देश दिए थे, ताकि आसपास के इलाकों में प्रदूषण न हो। लेकिन निगम प्रशासन ने बिना तैयारी आदमपुर छावनी में कचरा डंप करना शुरू कर दिया। खंती में न तो ऊंची दीवारें हैं और न ही कचरे को ढककर रखा गया है। महज तार फेंसिंग के सहारे हजारों मीट्रिक टन कचरे के बड़े-बड़े पहाड़ यहां नजर आते हैं। पुराना कचरा खत्म होना तो दूर नए कचरे के पहाड़ भी यहां बन रहे हैं। हर दिन 900 मीट्रिक टन कचरा यहां आ रहा है। यह खंती अब रहवासियों के साथ वन्यप्राणियों से लेकर नदी और डैम तक के लिए नुकसानदेह साबित हो रही हैं।
अजनाल नदी का पानी हो रहा प्रदूषित
अजनाल नदी आदमपुर खंती से 2.20 किलोमीटर डाउनस्ट्रीम में स्थित है। यह नदी बेतवा नदी की सहायक है जो यमुना से मिलती है और यमुना नदी गंगा से। आदमपुर खंती में पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर हो रहे कचरे के निष्पादन की वजह से यहां से निकलने वाले हानीकारक रसायन सीधे अजनाल नदी में जाकर मिल रहे हैं।
पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक डॉ. सुभाष सी. पांडेया ने कहा कि-
"कचरा खंती में फैली अव्यवस्थाओं की वजह से रहवासियों, वन्यप्राणियों को हो रही परेशानी और जल स्त्रोतों में फैल रहे प्रदूषण को लेकर पर्यावरण विभाग में शिकायत की। इसके बाद विभाग ने खंती की वैज्ञानिक तरीके से जांच के लिए टीम बनाई है। इस टीम में एमपीपीसीबी के पर्यावरण डायरेक्टर हेमंत शर्मा, मुख्य रसायनज्ञ डॉ. आलोक सक्सेना और क्षेत्रीय अधिकारी ब्रजेश शर्मा के साथ मैंने भी लैंडफिल साइट का निरीक्षण किया। जब हम साइट पहुंचे तो नियमों की अनदेखी देख दंग रह गए। यहां पर बिना लाइनर बिछाए कच्ची जमीन पर ठोस अपशिष्ट के लगभग 25 से 30 फीट ऊंचाई के पहाड़ बना दिए हैं, जबकि साइट की नालियों में लीचेट और सीपेज काफी मात्रा में जमा हुआ है। भंडारित ठोस अपशिष्ट के चारों ओर बनाई गारलैंड ड्रेन (पिट) और लीचेट कलेक्शन ड्रेन (पिट) भारी मशीनों की आवाजाही और मरम्मत नहीं होने से कई जगहों से टूटी मिली। वहीं लीचेट को कंपोस्टिंग के लिए यूज करने वाली पिट भी क्षतिग्रस्त है, जबकि साइट के बाहरी क्षेत्रों में कई गड्ढ़ों में लीचेट भरे हुए देखे गए हैं।"
डॉ. सुभाष सी. पांडेया के मुताबिक इसी साल फरवरी माह में लैंडफिल में 15 दिनों से भी अधिक समय तक आग सुलगती रही, लेकिन आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं होने की वजह से इसे बुझाया नहीं जा सका। इससे उत्पन्न वायु व भूजल प्रदूषण को लेकर उन्होंने एक याचिका दायर की। इस पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने जांच के लिए ज्वाइंट कमेटी बनाई। इसकी रिपोर्ट में नगर निगम की लापरवाही सामने आई और एनजीटी ने ज्वाइंट कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर अगस्त माह में नगर निगम पर 1.5 करोड़ रूपये की पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति राषि को बढ़कर 1.80 करोड़ रूपये कर दिया है। साथ ही इस राषि को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा करने के निर्देष दिए हैं और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मप्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कलेक्टर और डीएफओ भोपाल को आदमपुर कचरा खंती में पर्यावरण सुधार कार्य करने के लिए एक कमेटी बनाने को आदेष दिए है। इतना ही नहीं यह कमेटी आगामी दो माह में एक कार्ययोजना तैयार करेगी कि कैसे 1.80 करोड़ रूपये खर्च कर पर्यावरण सुधार कार्य किए जा सकते है और इस कार्ययोजना को अगले तीन माह में लागू करना होगा। अब इस मामले की अगली सुनवाई 15 नवंबर में होगी।
परिसर के बाहर मिला लीचेट, एसडब्ल्यूएम रूल्स-2016 में निर्धारित प्राचालों से काफी अधिक ज़हरीला
हालांकि मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में अजनाल नदी में लीचेट मिलने की बात को नकारा है, जबकि रिपोर्ट में माना गया है कि दूषित जल और लीचेट बाउंड्रीवाल के बाहर आसपास प्रवाहित हो रहा है। रिपोर्ट का कहना है कि
"निरीक्षण के दौरान लीचेट का निस्त्राव अजनाल नदी में नहीं पाया गया है, लेकिन परिसर के बाहर पाए गए लीचेट की गुणवत्ता एसडब्ल्यूएम रूल्स-2016 में निर्धारित प्राचालों से काफी अधिक पाया गया है। बोर्ड की रिपोर्ट से साफ हुआ है कि आदमपुर छावनी की एमएसडब्ल्यू साइट के गेट नं.01 के समीप से लिए गए ट्यूबवेल जल की पीएच एसडब्ल्यूएम रूल्स-2016 आईएस:10500 के प्राचालों के अनुरुप नहीं हैं। वहीं ग्राम पड़रिया काछी में काशीराम के निवास के ट्यूबवेल जल में आयरन व क्लोराइड और छावनी पाथर नाका के भूजल में आयरन की मात्रा अधिक पाई गई है। इस वजह से यहां पानी पीने योग्य नहीं है। पीने की पानी की व्यवस्था नगर निगम के टैंकरों द्वारा की जा रही है।"
समय रहते हो सुधार कार्य, नहीं तो जल्द ही आसपास के खेत भी हो जाएंगे अनुपजाऊ
एमपीपीसीबी (मध्य प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) के रीजनल अफसर ब्रजेश शर्मा के मुताबिक निरीक्षण के दौरान नगर निगम और कचरे का निष्पादन करने वाली ग्रीन रिसोर्स सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के अधिकारियों की लापरवाही सामने आई है। यदि समय रहते सुधार कार्यों को नहीं किया गया तो जल्द ही आसपास के खेत अनुपजाऊ (उर्वरता) हो जाएंगे, क्योंकि साइट पर पुराने और आरडीएफ वेस्ट (रिफ्यूज डिराईव फ्यूल) के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ बन गए हैं। वेस्ट की प्रोसेसिंग भी नहीं हो पा रही है। साइट पर अभी तक भानपुर खंती से विरासत में मिला 2 लाख क्यूबिक मीटर कचरा रखा हुआ है। आसपास के खेतों में यहीं से लिचेट पहुंच रही है। इस वजह से ही भूमि की उर्वरक क्षमता प्रभावित हो रही है।
मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया कि नगर निगम द्वारा लैंडफिल साइट के उतरी दिशा में 14 एकड़ में करीब पांच हजार पौधे रोपे गए हैं, इन पौधों में नीम, आंवला, पीपल, जामुन, सतपर्णी, सेमल और अमरूद आदि प्रजाति शामिल हैं, जोकि अभी शैशव अवस्था में है। यहां भी कचरा और गंदगी देखी गई हैं। परंतु दूसरी ओर (दक्षिण दिशा में) पौधरोपण का अभाव पाया गया है, जोकि किया जाना आवश्यक है ताकि दुर्गंध की समस्या को और कम किया जा सके।
50 सालों तक भी साफ नहीं होगा पानी
भानपुर खंती को हटाने के लिए 23 सालों तक संघर्षरत भानपुर खंती हटाओ संघर्ष समिति के संयोजक अशफाक अहमद बताते हैं कि
''मप्र प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक भानपुर खंती की वजह से यहां का भूमिगत जल पीने योग्य नहीं रह गया है और यहां स्थित नलकूप, हैंडपंप और बोरवेल को बंद कर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया हैं कि आने वाले 50 सालों तक भी यहां पानी साफ नहीं होगा, फिर भी 25 सालों में पात्रा नदी और हलाली डैम के सुधार के लिए शासन-प्रशासन दिलचस्पी नहीं दिखाई। इतना ही पात्रा नदी के आसपास की जमीन पर सालों से हो रही खेती, भूमिगत जल दूषित होने की वजह से प्रदूषित हो रही है। रिपोर्ट में भी फसल के हानिकारक होने पुष्टि हो चुकी है।"
बदबू से मिली निजात, लेकिन गंभीर बीमारियों से कब मिलेगी
वहीं भानपुर खंती निवासी सैयद शाहिद अली ने बताया कि ''भानपुर से खंती भले ही हटा दी हो, लेकिन अभी हम अफसरों की लपरवाही का खामियाजा भुगत रहे है। उन लपरवाही की वजह से हमें पीने का पानी भी नसीब नहीं हो रहा है।" अफजल ने कहा कि "सालों से यहां पर पूरे शहर का कचरा फेंका जाता रहा है। अब खंती के शिफ्ट होने से बदबू से तो निजात मिल गई है, लेकिन खंती से भू-जल और जमीन प्रदूषित हुई है, इसके संरक्षण के लिए सरकार द्वारा कुछ नहीं किया जा रहा है। आज हालत यह है कि खंती की वजह से यहां के हर दूसरे घर में कोई न कोई गंभीर बीमारी से ग्रस्त है।"
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