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अमृतकाल में 'सरोवर' की राह ताकते मध्य प्रदेश के गाँव

तालाब भूजल को रिचार्ज करने के प्रमुख साधन हैं. मगर अमृत सरोवर योजना से छूट गए गाँवों में तालाब और भूजल दोनों की ही स्थिति बेहद ख़राब है. ऐसे में यह स्थिति यहाँ के ग्रामीणों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ और परेशानियाँ लादती है.

By Shishir Agrawal
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फोटो- शिशिर अग्रवाल, ग्राउंड रिपोर्ट

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“यहाँ अब जनवरी से ही पानी आना बंद हो जाता है. पहले मार्च में सूखा पड़ता था, अब जनवरी से ही सूखा शुरू हो जाता है.”

भोपाल से करीब 30 किमी दूर बसे छोटा खेड़ी के प्रीतम ठाकुर अपने गाँव की समस्या बताते हुए यह बात कहते हैं. विकास के मामले में भले ही यह गाँव बेहद पिछड़ा हो मगर समस्याओं के मामले में यह अग्रणी है. यहाँ के बोर जनवरी में ही सूख जाते हैं और यहाँ जल संकट (water crisis) गहरा जाता है. इसके बाद यहाँ के पुरुष साइकिल और दोपहिया वाहन के ज़रिए 2 किमी दूर से पानी लाते हैं. गाँव में एक सरकारी ट्यूबवेल तो है मगर वह भी फ़रवरी तक दम तोड़ देता है. केंद्र सरकार ने तालाब बनवाने के लिए अमृत सरोवर योजना लॉन्च की. मगर इस योजना से अछूता यह गाँव एक अदद तालाब के लिए भी प्यासा है. 

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गाँव में एक सरकारी ट्यूबवेल तो है मगर वह भी फ़रवरी तक दम तोड़ देता है

क्या थी अमृत सरोवर योजना?

ठीक दो साल पहले ही अप्रैल 2022 में केंद्र सरकार द्वारा मिशन अमृत सरोवर योजना (mission amrit sarovar) लॉन्च की गई थी. इस मिशन के तहत हर ज़िले में 75 तालाबों (अमृत सरोवर) को बनाने अथवा मरम्मत करके उन्हें उपयोग के लायक बनाने का कार्य किया जाना था. इस तरह 15 अगस्त 2023 तक देश भर में कुल 50 हज़ार अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य था.

केंद्र सरकार द्वारा दिसंबर 2023 में लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार 28 नवम्बर 2023 तक कुल 83 हज़ार 531 अमृत सरोवर प्रोजेक्ट शुरू किए गए जिनमें से 68 हज़ार 119 प्रोजेक्ट पूरे हो गए. यानि लक्ष्य से ज़्यादा अमृत सरोवर देशभर में बनाए अथवा पुनर्विकसित किए गए.

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने बधाई देते हुए कहा 

“जिस तेज़ी से देशभर में अमृत सरोवरों का निर्माण हो रहा है, वो अमृतकाल के हमारे संकल्पों में नई ऊर्जा भरने वाली है.”

दावों के बरक्स छोटा खेड़ी गाँव

मगर इन तमाम ऊर्जावान बातों और आँकड़ों के बरक्स छोटा खेड़ी गाँव की तस्वीर में बीते 5 सालों में कोई भी सकारात्मक परिवर्तन नहीं आया है. यह गाँव इस योजना के अंतर्गत शामिल नहीं है. जबकि स्थानीय लोगों के अनुसार यहाँ ऐसी योजना को सबसे पहले लागू किया जाना चाहिए था. 

गाँव के बुज़ुर्ग नारायण सिंह इस गाँव के बारे में बताते हुए कहते हैं कि पहले यहाँ का समाज खेतिहर समाज था. मगर अब बारिश के अलावा बाकी समय इन्हें मज़दूरी करनी पड़ती है. हालाँकि गाँव में ही ईंट भट्टे लगे होने के चलते यहाँ के लोगों को पलायन का दंश नहीं झेलना पड़ता. मगर पानी की अनुपलब्धता ने गाँव के रहवासियों का जीवन कठिन कर दिया है.

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गाँव के लोगों के अनुसार पानी की कमी से ईंट भट्टा चलाने की लागत बढ़ गई है

गाँव के लोगों के अनुसार पानी की कमी से ईंट भट्टा चलाने की लागत बढ़ गई है क्योंकि पानी का इंतज़ाम महंगा हो गया है. इसे चलाने वाले प्रीतम बताते हैं,

“भट्टे के लिए महीने में 15 से 20 टैंकर पानी लग जाता है. एक टैंकर 700 रूपए में आता है. इस तरह 10 हज़ार से ज़्यादा रूपए तो केवल पानी में ही लग रहे हैं.”

इस गाँव में कोई भी तालाब नहीं है. गाँव वाले ग्राउंड रिपोर्ट को बताते हैं कि उन्हें 2 किमी दूर स्थित एक नाले से पानी लाना पड़ता है. गाँव में एक सरकारी ट्यूबवेल ज़रूर है मगर उससे दिनभर में 600 लीटर पानी ही निकलता है जो यहाँ की आबादी और उनकी ज़रूरत के अनुसार ना काफी है.

तेज़ी से घट रहा है भूजल

भोपाल को झीलों का शहर कहते हैं. मगर इस ज़िले का भूजल स्तर तेज़ी से खिसक रहा है. सेन्ट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड (CGWB) के अनुसार साल 2012 से 2022 के बीच यहाँ का भूजल स्तर 66.7 प्रतिशत तक घटा है.

एक शोध में इस ज़िले के साल 2000 से 2020 तक के भूजल स्तर का अध्ययन किया गया. अध्ययन के अनुसार ज़िले के ज़्यादातर हिस्से में प्री-मानसून समय (मई) में भूजल स्तर 12 से 17 मीटर (below ground level) होता है. वहीँ पोस्ट मानसून (नवम्बर) में यह घटकर 6 से 8 मीटर के बीच रह जाता है. 

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भूजल के दोहन के चलते ज़िले के ज़्यादातर ट्यूबवेल सूख गए हैं

साल 2022 के आँकड़ों के अनुसार भोपाल ज़िले में साल भर में 1866.02 मिमी बारिश हुई थी. यह सामान्य (1106.7 मिमी) की तुलना में 68.61 प्रतिशत अधिक है. मगर इस गाँव के प्रहलाद सिंह कहते हैं,

“बारिश तो ठीक होती है मगर पानी बचता नहीं है. न कुआँ हैं न तालाब कि ज़मीन में समाए. सब बह जाता है.”

भोपाल ज़िले में अमृत सरोवर की स्थिति

अमृत सरोवर पोर्टल के अनुसार मध्य प्रदेश में कुल 6 हज़ार 613 अमृत सरोवर साइट्स चिन्हित की गई थीं. इनमे से 5 हज़ार 950 जगहों में काम शुरू हुआ और अब तक 5 हज़ार 783 कार्य पूरे हो चुके हैं. वहीँ भोपाल में 78 जगहें चिन्हित की गईं थीं और इनमें से 76 जगहों में काम पूरा हो चुका है.

मगर इन आँकड़ों से बाहर ऐसे गाँव जो इस योजना का हिस्सा नहीं हैं, अब भी प्यासे हैं. छोटा खेड़ी से बमुश्किल 5 किमी दूर स्थित गोल गाँव में दाखिल होते ही सड़क के किनारे एक तालाब है. मगर यह तालाब ऐसी स्थिति में है कि इसे मैदान समझकर कोई भी आगे बढ़ जाएगा.

पानी ख़रीदकर कर रहे गुज़ारा

गोल गाँव के 64 वर्षीय बारेलाल रजक कहते हैं कि इस तालाब की कभी मरम्मत नहीं होती. गाँव में पानी की समस्या के बारे में बताते हुए वह कहते हैं कि गाँव के जिन घरों में ट्यूबवेल है वह अन्य लोगों को पानी बेंचते हैं.

“मैं महीने भर में 700 रूपए अपने पड़ोसी को देता हूँ. वह हमें दिन में 15 से 20 मिनट अपनी बोर (ट्यूबवेल) चलाकर पानी भरने देता है.”

रजक के अनुसार एक ट्यूबवेल से इस तरह 20 से 25 घरों में पानी दिया जाता है. मगर अप्रैल के अंत तक यह ट्यूबवेल भी फेल हो जाते हैं. जिसके बाद गाँव के लोग अनियमित रूप से आने वाले पानी के टैंकर पर निर्भर रहते हैं.

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ट्यूबवेल के फेल हो जाने के बाद गाँव के लोग अनियमित रूप से आने वाले वाटर टैंकर्स पर निर्भर हो जाते हैं

रजक का मानना है कि यदि तालाब का गहरीकरण करवाया जाता तो शायद पानी की समस्या (water crisis) को कम किया जा सकता था. मगर वह प्रशासन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहते हैं,

“अमीर आदमी (अधिकारी) तो अपनी जेब गरम कर लेता है और हमें आग में झोंक देता है.”

खुद इस पंचायत के सचिव बताते हैं कि इस तालाब की आखिरी मरम्मत साल 2016 में हुई थी. इसके बाद इसकी मरम्मत क्यों नहीं हुई? इसके जवाब में वह कहते हैं कि चूँकि इस तालाब के पानी का इस्तेमाल पीने में नहीं होता इसलिए इस पर पंचायत ने खर्चा नहीं किया.  

हवा देते 'नल-जल'

इस गाँव में पानी के लिए केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन के तहत भी नल के कनेक्शन दिए गए हैं. मगर यह नल हवा देते हैं पानी नहीं. पंचायत के सचिव ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए कहते हैं,

“गाँव में 20 हज़ार लीटर की एक पानी की टंकी है. उसी से सबको नल के कनेक्शन देने थे मगर लाइन बिछने के बाद भी किसी को कनेक्शन नहीं दिए गए हैं.”

इसकी वजह पूछने पर वह हमें लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (PHE) के अधिकारियों से बात करने के लिए कहते हैं.

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गोल गाँव में जल जीवन मिशन के तहत पानी की टंकी और नल तो हैं मगर यह हवा देते हैं पानी नहीं  

आपको बता दें कि जल जीवन मिशन के तहत भोपाल ज़िले में 1 लाख 317 में से 70 हज़ार 335 (70.11%) गाँवों में नल के कनेक्शन उपलब्ध करवाए जा चुके हैं.

गोल गाँव के उलट भोपाल से सीहोर जाने वाले रास्ते में पड़ने वाले खजूरी सड़क गाँव में ज़्यादातर लोगों को इस योजना के तहत पानी मिल रहा है. हालाँकि कुछ लोग पाइपलाइन फूटने की शिकायत करते हैं मगर साथ ही वह यह भी जोड़ते हैं कि पाइपलाइन की मरम्मत स्थानीय सरपंच द्वारा करवा दी जाती है.

भूजल को लेकर जागरूक नहीं हैं लोग

खजूरी सड़क में पानी की आपूर्ति पास की नहर से होती है. यानि पीने के लिए सर्फेस वाटर का इस्तेमाल तो किया जा रहा है मगर भूजल को रिचार्ज करने के लिए कोई भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है. यहाँ के एक मात्र तालाब का हाल भी गोल गाँव की तरह ही है. मगर गोल गाँव के इतर यहाँ कोई भी इस तालाब की मरम्मत करवाने की बात नहीं करता.

यह गाँव भी अमृत सरोवर के तहत शामिल नहीं किया गया है. मगर इससे यहाँ के ज़्यादातर लोगों को इस बात से कोई ख़ास फ़र्क पड़ते हुए नहीं दिखता. हालाँकि यहाँ के लोग भी फ़रवरी के अंतिम दिनों में ही ट्यूबवेल के पानी कम हो जाने की शिकायत ज़रूर करते हैं.

हालाँकि केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना के अलावा मध्यप्रदेश की बलराम तालाब योजना के तहत भी किसान अपने खेतों में सिंचाई के लिए तालाब खुदवा सकते हैं. मगर छोटा खेड़ी के नारायण पूछते हैं,

“यहाँ किसानों के पास वैसे भी छोटे-छोटे खेत हैं उसमें भी तालाब खुदवा लेंगे तो फ़सल कहाँ उगाएंगे?”

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खजूरी सड़क में बना तालाब

उनका मनना है कि सरकार को खुद से हर गाँव में नए तालाब बनाने के लिए काम करवाना चाहिए. नारायण के अनुसार इससे मनरेगा की मज़दूरी मिलने से गाँव के लोगों को तत्कालीन लाभ होगा और भूजल स्तर बढ़ने से आगे भी पानी पर होने वाला खर्च बचाया जा सकेगा. 

मध्य प्रदेश में मौजूदा लोकसभा चुनाव अपनी आधी गति पूरी कर चुका है. चुनावी रैलियों  में अमृतकाल की चर्चा तो है. मगर अमृत सरोवर को तरसते इन प्यासे गाँवों की समस्या चुनावी शोर में गम गई है. भूजल का दोहन तो जारी है मगर इसे रीचार्ज करने के बारे में कोई ठोस योजना नहीं है.

प्रीतम ठाकुर मानते हैं कि यदि पर्यावरण और तालाब का सीधा असर लोगों को समझ आ जाए तो वह उसकी चिंता करेंगे. मगर अभी वह जागरूकता लोगों में दिखाई नहीं देती जिसमें यह मुद्दे वोटिंग के मुद्दे बन सकें.

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