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बिहार : गांव की लड़कियों ने रग्बी फुटबॉल में बनाई पहचान

आज तुर्की के आसपास के गांव से निकलकर अब तक तीन लड़कियां एवं दो लड़के विदेशी जमीन पर अंतर्राष्ट्रीय रग्बी फुटबॉल मैच खेल चुके हैं।

By Charkha Feature
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डॉ. संतोष सारंग | मुजफ्फरपुर, बिहार

"सयानी लड़की होकर लड़कों के साथ हाफ पैंट पहनकर ग्राउंड में खेलती है, न इसको शर्म आती है और न इसके मां-बाप को!"

इस तरह की न जाने कितनी फब्तियां और अनर्गल बातों के व्यंग्य बाण झेलने पड़े हैं 19 साल की सपना को. बिहार के मुजफ्फरपुर जिला स्थित तुर्की ब्लॉक के चंद्रहइया गांव की रहने वाली सपना का बेहद ही गरीब किसान परिवार में जन्म हुआ है. सिर्फ सपना ही नहीं, बल्कि उसके जैसी दर्जनों गरीब मजदूर परिवार की लड़कियों को रग्बी फुटबॉल का प्रशिक्षण देने वाले युवा कोच राहुल कुमार को भी गालियां सुननी पड़ी. यहां तक कि धमकियां भी मिली। लेकिन न कोच ने हिम्मत हारी और न ही जुनूनी लड़कियों ने. तुर्की ब्लॉक के एक बड़े खेल मैदान में पसीना बहाते हुए इनमें से कई लड़कियों ने विदेशी जमीन पर भी अपनी खेल प्रतिभा का लोहा मनवाया है. इस शानदार सफलता के बाद जब गांव का माहौल और मिजाज बदला, तो गालियां देने वाले लोग भी अपनी बेटियों को हाफ पैंट पहनाकर खेलने के लिए भेजने लगे.

बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से स्नातक द्वितीय वर्ष की छात्रा सपना कुमारी ने जब 2018 में ग्राउं में अपना पहला कदम रखा था तब उसके पिता राम किशोर राय ने यह कहते हुए कि 'लड़की होकर हाफ पैंट में खेलेगी, तो लोग हसेंगे' साफ़ मना कर दिया था. लेकिन मां संजू देवी और नाना ने उसका पूरा सपोर्ट किया। सपना समाज की तमाम वर्जनाओं को तोड़ते हुए खेलती रही और आज उसके हिस्से में चार अंतरराष्ट्रीय रग्बी फुटबॉल मैच खेलने का रिकॉर्ड है. सपना ने अब तक ताशकंद, मलेशिया और काठमांडू में चार अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं. 

रग्बी फुटबॉल एशियाई चैंपियनशिप में भाग ले चुकी सपना कहती है कि

"मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन हवाई जहाज चढ़ूंगी। लेकिन खेल के कारण मेरा यह सपना पूरा हुआ।"

गरीबी झेल रहे परिवार को उसने खेल से करीब 20 लाख रुपए कमा कर दिए हैं. आज पिता भी उसकी कामयाबी पर खुश हैं. आज तुर्की के आसपास के गांव से निकलकर अब तक तीन लड़कियां एवं दो लड़के विदेशी जमीन पर अंतर्राष्ट्रीय रग्बी फुटबॉल मैच खेल चुके हैं। इसमें एक नाम गुड़िया कुमारी का भी है. सपना और गुड़िया की कामयाबी ने अन्य लड़कियों को भी इस खेल की तरफ प्रेरित किया. संध्या, ज्ञानश्री, प्रीति, उर्वशी, करीना जैसी दर्जनों लड़कियों की दिनचर्या अब अहले सुबह तुर्की के खेल मैदान से शुरू होती है.

राहुल एवं इन लड़कियों की कामयाबी एवं संघर्ष में बिहार रग्बी फुटबॉल एसोसिएशन के सचिव पंकज कुमार ज्योति का भी अहम योगदान रहा है। राहुल को रग्बी फुटबाॅल में लाने का श्रेय पंकज को ही जाता है। आज तुर्की का खेल मैदान रग्बी फुटबॉल का केंद्र बन गया है। चढ़ुवा चंद्रहिया, जवाडीह तुर्की, बड़कुरवा, छाजन, मधुबन, कफन समेत करीब एक दर्जन गांवों के 150 लड़के-लड़कियां खेल मैदान में सुबह-शाम प्रैक्टिस करने के लिए जुटते हैं, तो यहां का नजारा ही कुछ अलग दिखता है। खास बात यह है कि इनमें से आधे से अधिक लड़कियां होती हैं, जिनमें अधिकतर के माता-पिता दिहारी मजदूर है, तो किसी की मां दूसरे के खेतों में काम करती है। दूसरे के घरों में चूल्हा चौका करती हैं।

Bihar: Village girls made their mark in rugby football

कोच राहुल का संघर्ष

कोच राहुल कुमार इन सभी खिलाड़ियों को फ्री कोचिंग देते हैं. वह स्वयं रग्बी फुटबॉल के खिलाड़ी हैं. चाढुवा गांव के निवासी राहुल खुद एक गरीब-मजदूर परिवार से आते हैं. आठवीं कक्षा में थे तभी उनकी मां की मौत हो गई थी. मां के देहावसान के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली. आर्थिक संकट के कारण पिता दूसरे राज्यों में कमाने चले गए। पारिवारिक उलझनों के कारण राहुल की बीच में ही पढ़ाई छूट गई। इन सब परेशानियों के बावजूद उनका रग्बी फुटबॉल से लगाव जारी रहा और वह मैदान में जाते रहे. आज वह आसपास के गांव के युवा लड़के-लड़कियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. इसके लिए वह इनके अभिभावकों को भी समझाते हैं. वह बताते हैं कि लड़कियों के माता-पिता को समझाने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है. राहुल बताते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व खेल में उनकी कामयाबी और आर्थिक पृष्ठभूमि के बारे में जानने के बाद अर्जेंटीना में रह रहे सीतामढ़ी के एक एनआरआई विजय आनंद ने उन्हें आर्थिक मदद की पेशकश की। वह हर महीने उन्हें कुछ आर्थिक मदद भेजते हैं। इन पैसों को राहुल खुद के खेल पर खर्च करने के साथ-साथ गरीब खिलाड़ियों की मदद भी करते हैं।

सरकार भी बढ़ा रही है हौंसला

अनुसूचित जाति, अत्यंत पिछड़ी एवं पिछड़ी जातियों से आने वाले यह खिलाड़ी बिहार की जमीन पर अनूठी कहानी रच रहे हैं। बिहार सरकार की खेल नीति ने भी इन खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाया है। ‘मेडल लाओ और नौकरी पाओ’ के तहत तुर्की इलाके के खिलाड़ियों का चयन विभिन्न सरकारी विभागों में हुआ है। बरकूर्वा की अर्चना कुमारी, चढ़ुवा की सोनाली कुमारी एवं चंद्रहिया की सपना कुमारी का चयन पुलिस अवर निरीक्षक के पद पर हुआ है। वहीं चढुवा के हर्ष राज और विद्यानंद कुमार का चयन सचिवालय में लिपिक के पद पर हुआ है। यह नौकरी इन्हें बिहार खेल अधिनियम 2023 के तहत किया गया है। कोच राहुल कुमार बताते हैं कि बिहार के तीन जिले अरवल, नवादा व नालंदा में रग्बी फुटबॉल को बढ़ावा देने के उद्देश्य से साई सेंटर खोला गया है।

इन खिलाड़ियों के लिए संरक्षक की भूमिका निभाने वाले उत्क्रमित मध्य विद्यालय पश्चिम टोला तुर्की के प्रधानाध्यापक अरविंद आनंद कहते हैं कि

"इन लड़कियों को खेल मैदान तक लाना एक बड़ी चुनौती का काम था। लेकिन मैंने इनके अभिभावकों को समझा-बुझाकर तैयार किया। जहां तक होता है मैं जरूरतमंद बच्चों को खेलने वाले जूते, कपड़े एवं यात्रा खर्च के लिए आर्थिक सहयोग करता हूं।"

Bihar: Village girls made their mark in rugby football

जिला रग्बी फुटबॉल खेल संघ, मुजफ्फरपुर के सचिव मुकेश कुमार सिंह बताते हैं कि

"एक ही जिला और एक ही खेल से छह खिलाड़ियों का चयन सब इंस्पैक्टर एवं लिपिक पद पर होना बहुत बड़ी उपलब्धि है। इतना ही नहीं, चयनित यह सभी खिलाड़ी एक ही ब्लॉक के तीन-चार गांवों से हैं।"

मुकेश कहते हैं कि "जब से बिहार खेल प्राधिकरण के महानिदेशक के रूप में आईपीएस रविंद्रन शंकरण ने कार्यभार संभाला है तब से खेल के क्षेत्र में काफी बदलाव दिख रहे हैं। खेल कैलेंडर के हिसाब से स्पोट्स का आयोजन कराया जा रहा है। बिहार की खेल नीति ने खेल के क्षेत्र में क्रांति का आगाज किया है। जहां तक बिहार के रग्बी फुटबॉल की बात है, तो उसमें मुजफ्फरपुर जिला खासकर तुर्की ब्लॉक का अहम रोल है।

रग्बी फुटबॉल को ऊंचाई प्रदान करने में डीजी खेल के बाद कोच राहुल कुमार का सबसे अधिक योगदान है। लेकिन अफसोस है कि जिला खेल विभाग की रग्बी फुटबॉल को अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। इसके बावजूद नेशनल या इंटरनेशनल गेम के लिए यदि बिहार के चार खिलाड़ियों का चयन होता है, तो उसमें दो तुर्की के जरूर खिलाड़ी होते हैं।" कोच राहुल कुमार असली हीरो हैं. बहरहाल, सपना, गुड़िया, संध्या, ज्ञानश्री, प्रीति, उर्वशी और करीना जैसी लड़कियों का रग्बी फुटबॉल जैसे खेलों में उभर कर सामने आना न केवल इस खेल को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाएगा बल्कि समाज की उस सोच को भी बदलेगा जिसे लड़कियों के कपड़े पर भी आपत्ति होती है. आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार की इन लड़कियों की उपलब्धियां अन्य किशोरियों के लिए भी मार्गदर्शन करेगा. (चरखा फीचर)

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